Jharkhand Sthaniya Niti: बड़ी आबादी के पास 1932 का खतियान नहीं, सांसद-विधायक हो जाएंगे गैर झारखंडी
Jharkhand Sthaniya Niti झारखंड में 1932 का खतियान लागू होने के बाद हेमंत सोरेन के कैबिनेट के कई मंत्री और विधायक बाहरी हो जाएंगे। उधर सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस विधेयक को पास कराने की तैयारी कर रही है। यहां अलग-अलग जिलों में भिन्न-भिन्न है सर्वे का वर्ष।
By M EkhlaqueEdited By: Updated: Thu, 15 Sep 2022 08:54 PM (IST)
रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Sthaniya Niti झारखंड कैबिनेट ने प्रदेश में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता को परिभाषित करने का निर्णय तो ले लिया है, लेकिन इसमें अभी कई अड़चनें हैं। बड़ी आबादी के पास 1932 का खतियान नहीं है और इस कारण झारखंड के कई सांसद-विधायक भी खुद को स्थानीय नहीं साबित कर पाएंगे। यहां तक कि कैबिनेट में शामिल कई मंत्री भी गैर झारखंडी कहे जाएंगे और बड़े पैमाने पर विधायकों का भी यही हश्र होगा। इसके साथ ही सरकारी दफ्तरों में बाबुओं से लेकर अफसरों तक के सामने यही समस्या आएगी।
विधेयक पास कराने के लिए विशेष सत्र की संभावनादरअसल, झारखंड के कई जिलों में तो 1960 एवं 1970 में सर्वे हुआ है, 1932 में नहीं। इन जिलों के लोगों के सामने बड़ी समस्या आएगी। हालांकि, अभी राज्य सरकार के पास समय भी है। कैबिनेट में जारी संकल्प के आधार पर विधेयक तैयार करने के क्रम में त्रुटियों के निराकरण का प्रयास किया जा सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार विधेयक को पास कराने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुला सकती है। उसी दौरान आरक्षण से संबंधित विधेयक भी पास कराने की कोशिश होगी।
झारखंड में 60 फीसद आबादी के पास खतियान ही नहीं झारखंड में स्थानीयता को एक बार फिर से परिभाषित करने की कोशिश शुरू हुई है। इसके पूर्व पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के कार्यकाल में ऐसी कोशिश हुई थी। फिर बवाल इतना बढ़ा कि बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री के पद से हाथ धोना पड़ा। झारखंड में एक बड़ी आबादी के पास 1932 का खतियान नहीं है। इसके दायरे में सांसद-विधायक भी आते हैं तो कैबिनेट के मंत्री भी। हेमंत सोरेन सरकार की आधी कैबिनेट बाहरी साबित हो जाएगी। एक आकलन के अनुसार 60 प्रतिशत आबादी के पास 1932 का खतियान नहीं होने की बात सामने आई है।
विधेयक को मूर्त रूप देने से पहले करना होगा संशोधन कई जिलों में 1932 के बाद भी सर्वे का काम हुआ है। कुछ जिलों में यह काम 1965 तो कुछ में 1972 में भी होने की सामने आ रही है। ऐसे में अभी से यह माना जा रहा है कि नियमों में बदलाव किया जाएगा और जिलों में अंतिम सर्वे की तिथि को विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। इसके बाद भी राज्य सरकार के सामने उन जिलों के लोगों की समस्या सामने आएंगीं जहां अभी तक सर्वे का काम नहीं हुआ है। सूत्रों के अनुसार विधेयक को मूर्तरूप देने के क्रम में कई और संशोधन संभव है। इसके लिए सरकार विभिन्न पक्षों से बात भी करेगी।
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