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Jharkhand Sthaniya Niti को 2002 में झारखंड हाईकोर्ट ने क्यों किया था निरस्त, विस्तार से जानें

Jharkhand Sthaniya Niti 1932 Khatian झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में राज्य में 1932 का खतियान लागू कर दिया है। क्या आपको पता है कि झारखंड हाई कोर्ट ने स्थानीय नीति को 2002 में निरस्त कर दिया था। विस्तार से जानिए...

By Sanjay KumarEdited By: Updated: Thu, 15 Sep 2022 08:44 AM (IST)
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Jharkhand Sthaniya Niti, 1932 Khatian: झारखंड हाईकोर्ट ने स्थानीय नीति को 2002 में निरस्त कर दिया था।

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Sthaniya Niti, 1932 Khatian झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस वीके गुप्ता की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने स्थानीय नीति को अगस्त 2002 में असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था। अदालत ने कहा था कि स्थानीय नीति के तहत राज्य में तृतीय या चतुर्थ वर्ग के पदों पर बाहरी व्यक्तियों को नियुक्ति से नहीं रोक सकते हैं। सरकार इसमें स्थानीय लोगों को भाषा और रीति-रिवाज के आधार पर प्राथमिकता दे सकती है। अदालत ने स्थानीय निवासी की परिभाषा को संविधान की धारा 14 और 16 का उल्लंघन बताया था।

फिर से स्थानीय निवासी को परिभाषित करने की दी थी छूट

हालांकि अदालत ने अपने आदेश में सरकार को इसकी छूट प्रदान की है कि सरकार चाहे तो फिर से स्थानीय निवासी को परिभाषित कर सकती है, लेकिन उसे पूर्व से रहने वाले लोगों, जो यहां की भाषा, रीति-रिवाज और रहन-सहन में बस गए हैं, भले ही वह बाहरी हों, उन्हें शामिल कर सकती है।

1932 के खतियान व 50 फीसदी से अधिक आरक्षण को अदालत ने करार दिया था असंवैधानिक

राज्य में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय निवासी तय करने और 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दिए जाने के झारखंड सरकार के निर्णय को हाई कोर्ट ने वर्ष 2002 में ही असंवैधानिक करार दिया था। संवैधानिक पीठ ने कहा था कि सरकार की यह नीति आम लोगों के हित में नहीं है। इस नीति से वैसे लोग स्थानीय होने के दायरे से बाहर हो जाएंगे, जिन्हें देश के विभाजन के बाद रांची में बसाया गया था। ऐसे लोग लंबे समय से झारखंड में रह रहे हैं और उन्हें स्थानीय के दायरे से बाहर किया जाना उनके साथ भेदभाव पूर्ण होगा।

एक ही सर्वे को आधार मानना उचित नहीं

अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य के हर इलाके में सर्वे भी नहीं हुए हैं। ऐसे में किसी एक सर्वे को ही आधार माना जाना उचित नहीं है और यह दूसरे लोगों के साथ भेदभावपूर्ण होगा। तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने इसे लागू किया था।

आरक्षण प्रतिशत बढ़ाना भी असंवैधानिक

वर्ष 2002 में ही झारखंड सरकार ने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव लाया था। इससे राज्य में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक हो गई थी। यह मामला भी हाई कोर्ट पहुंचा था और पांच जजों की बेंच ने इसे भी असंवैधानिक करार दिया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं देने का आदेश दिया है। इस आधार पर झारखंड में भी 50 फीसदी से अधिक आरक्षण को संवैधानिक करार नहीं दिया जा सकता।

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