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Jivitputrika 2022: जितिया पर महिलाएं जिमूतवाहन की क्यों करती हैं पूजा, पढ़िए दिलचस्प कहानी

Jivitputrika 18 September बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक लोकप्रिय जितिया पर्व रविवार को है। घर-घर महिलाएं अपने बच्चों के लिए व्रत रखेंगी। इस पर्व की कहानी बेहद दिलचस्प है। इस व्रत के दौरान इस कहानी को सुनना भी जरूरी माना जाता है।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Sat, 17 Sep 2022 09:55 PM (IST)
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Jivitputrika Vrat 2022: झारखंड में रविवार को जितिया पर्व मनाया जाएगा।

रांची, डिजिटल डेस्क। Jivitputrika 2022 इस वर्ष 18 सितंबर को जितिया पर्व मनाया जाएगा। महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखकर भगवान से प्रार्थना करती हैं। यह व्रत 36 घंटे का होता है। छठ की तरह इस व्रत में भी एक दिन पहले नहाय-खाय की परंपरा है। महिलाएं बेहद पवित्रता और आस्था के साथ इस पर्व को मनाती हैं। बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखंड में यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन यह पर्व मनाया जाता है। इसमें व्रत रखने वाली महिलाएं एक बूंद पानी का सेवन नहीं करती हैं। यह एक कठिन परीक्षा की तरह है। इसे कई लोग जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं।

जितिया पर जिमूतवाहन की इसलिए की जाती है पूजा

जितिया पर्व के कहानी भी बेहद दिलचस्प है। ऐसी मान्यता है कि शंकर भगवान ने पार्वती जी को इस व्रत के बारे में बताया था। कहानी जिमूतवाहन से संबंधित है। कहा जाता है कि जिमूतवाहन एक राजकुमार थे। वह बड़े परोपकारी थे। उनका आचरण बहुत अच्छा था। वह सत्यवादी और परोपकारी भी थे। राज के सिन्हासन पर उन्हें बैठाकर उनके पिता जंगल में चले गए। पिता के जाने के बाद जिमूतवाहन का मन नहीं लग रहा था। उन्होंने अपने शासन की जिम्मेदारी अपने भाइयों को सौंप दी। इसके बाद वह खुद अपने पिता की सेवा करने के लिए जंगल में चले गए। जंगल में ही उनकी शादी मलयवती से हो गई।

...इसलिए गरुड़ ने जिमूतवाहन की बख्श दी जान

जिमूतवाहन ने जंगल में एक दिन एक बुजुर्ग महिला को रोते हुए देखा। उन्होंने उससे पूछा- तुम क्यों रो रही हो। उस महिला ने बताया कि वह नागवंशी समुदाय से आती है। वह एक पुत्र की मां है। उसके समाज ने गरुड़ को हर दिन एक नाग पुत्र भोजन के लिए देने का वादा किया है। आज उसके पुत्र शंखचूड़ की बारी है। जिमूतवाहन ने महिला से कहा- आप डरो नहीं। तुम्हारे पुत्र को कुछ नहीं होगा। इसके बाद जिमूतवाहन स्वयं शंखचूड़ की जगह एक पत्थर पर लेट गए। कहा जाता है कि गरूड़ भगवान आए और जिमूतवाहन को उठाकर ले गए। जब गरूड़ को शक हुआ तो उन्होंने पूछताछ शुरू कर दी। इसके बाद जिमूतवाहन ने पूरी कहानी सुना दी। गरुड़ भगवान दंग रह गए। जीमूतवाहन को जीवनदान दे दिया। इतना ही नहीं नागवंशियों की बलि नहीं लेने का वचन भी दिया। कहा जाता है कि तभी से जिमूतवाहन की पूजा होने लगी।

इस पर्व के दौरान इन पूजा सामग्री का होता इस्तेमाल

जितिया पर्व के दौरान जो पूजा सामग्री इस्तेमाल किया जाता है उसमें तमाम चीजें देसी रहती हैं। पंडित कुशल तिवारी के अनुसार इस पर्व में भगवान जीमूत वाहन और गाय के गोबर से चील-सियारिन की पूजा करने का नियम चला आ रहा है। चावल, पान, इलाइची, लौंग, पेड़ा, दूर्वा माला, सुपारी, सिंदूर, सौंदर्य सामग्री, फूल, धागा, जिमूतवाहन प्रतिमा, दीप, धूप, फल, मिठाई, बांस के पत्ते, खली, गोबर और सरसों तेल आदि की जरूरत पड़ती है। ये सभी पूजा के विशेष सामग्री हैं। इनके बिना पूजा संभव नहीं है।

इस तरह से पूजा करने के बाद ही मिलता फायदा

  • सबसे पहले सुबह उठकर स्नान कीजिए और स्वच्छ वस्त्र धारण कीजिए।
  • इसके बाद भगवान जीमूत-वाहन की पूजा करनी चाहिए। कुशा से बनी उनकी प्रतिमा को दीप दिखाएं। चावल व फूल चढ़ाएं।
  • इसके बाद मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील और सियारिन की प्रतिमा बनानी चाहिए। प्रतिमा बनाने के बाद उन्हें लाल सिंदूर का टीका लगाना चाहिए।
  • इसके बाद जितिया की कहानी सुननी चाहिए। इस कथा श्रवण को काफी अच्छा माना गया है। इसके बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाएगी।
  • बांस हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। वंश बढ़ाने के लिए सहायक माना जाता है। इसकी पूजा करनी चाहिए।
  • पूजा के दौरान पेड़ा, दूब माला, चावल, धागा, लौंग, इलायची, पान, सुपारी आदि अर्पित करना चाहिए।
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