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पत्रकार रवि प्रकाश को पेशेंट एडवोकेसी के लिए अमेरिका में मिलेगा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार

लंग कैंसर के क्षेत्र में काम करने वाली दुनिया की प्रतिष्ठित संस्था इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर (आईएएसएलसी) ने वरिष्ठ पत्रकार व लंग कैंसर के अंतिम स्टेज के मरीज रवि प्रकाश को इस साल के पेशेंट एडवोकेट एडुकेशनल अवार्ड के लिए चुना है। यह पुरस्कार लंग कैंसर के क्षेत्र में मरीज़ों के मुद्दों को उठाने वाले शख्स को हर साल दिया जाता है।

By Pradeep singh Edited By: Shashank Shekhar Updated: Sun, 26 May 2024 10:53 AM (IST)
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पत्रकार रवि प्रकाश को पेशेंट एडवोकेसी के लिए अमेरिका में मिलेगा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार। जागरण
राज्य ब्यूरो, रांची। लंग कैंसर के क्षेत्र में काम करने वाली दुनिया की प्रतिष्ठित संस्था इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी आफ लंग कैंसर (आईएएसएलसी) ने वरिष्ठ पत्रकार व लंग कैंसर के अंतिम स्टेज के मरीज रवि प्रकाश को इस साल के पेशेंट एडवोकेट एडुकेशनल अवार्ड के लिए चुना है।

उन्हें यह पुरस्कार सितंबर में अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया प्रांत के सैन डिएगो शहर में आयोजित होने वाले वर्ल्ड कांफ्रेंस ऑन लंग कैंसर (डब्लूसीएलसी) के दौरान सात सितंबर को दिया जाएगा।

यह पुरस्कार लंग कैंसर के क्षेत्र में मरीजों के मुद्दों को उठाने वाले शख्स को हर साल दिया जाता है। आइएएसएलसी का पेशेंट एडवोकेट एडुकेशनल अवार्ड दुनिया के अलग-अलग देशों में मरीज़ों की एडवोकेसी के क्षेत्र में काम कर रहे पांच लोगों को हर साल दिया जाता है। इस साल भारत से पत्रकार रवि प्रकाश को चुना गया है।

रवि जनवरी 2021 से लंग कैंसर से जूझ रहे

उल्लेखनीय है कि रवि जनवरी 2021 से लंग कैंसर से जूझ रहे हैं। उनका कैंसर चौथे स्टेज में पकड़ में आया था। उसके बाद वे न केवल अपने कैंसर का इलाज करा रहे हैं बल्कि उन्होंने कई मंचों पर मरीज़ों की आवाज उठायी है। इंटरनेट मीडिया पर भी वे दवाओं की कीमत और कैंसर मरीज़ों की परेशानियों को लेकर लगातार मुखर रहे हैं‌

अभी तक कीमोथेरेपी के 68 सत्रों से गुजर चुके रवि प्रकाश कैंसर के मरीज़ों के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संस्था लंग कनेक्ट इंडिया के निदेशक भी हैं। पिछले वर्ष उन्होंने काठमांडू में संपन्न सार्क फेडरेशन आफ अंकोलॉजिस्ट के सम्मेलन को भी संबोधित किया था।

क्या कहते हैं रवि प्रकाश 

इस बावत पत्रकार रवि ने कहा, 'जिंदगी आराम से चल रही थी। तब एक दिन अचानक कैंसर ने दस्तक दे दी। अंतिम स्टेज में मेरे शरीर में घुस आया। मेरी सांसें अब चंद घंटे, महीने या साल की मेहमान थीं। उसका भी कोई तय समय नहीं। दुनिया से जाने का वक्त कब आ जाए, इसकी कोई गारंटी आज भी नहीं है। तभी मैंने कैंसर को समझना शुरू किया। मरीजों की दिक्कतें समझी तो फिर इसकी आवाज उठानी शुरू की। मुझे खुशी है कि इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी आफ लंग कैंसर जैसी बड़ी संस्था ने मुझे इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना है।'

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