Karma Puja 2022: करमा पूजा आज, पर्व को लेकर तैयारियां पूरी; प्रकृति के इस महापर्व का महत्व जानें
Karma Puja 2022 प्रकृति के महापर्व करमा पूजा आज है। यह झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हालांकि आदिवासी समुदाय द्वारा यह पर्व झारखंड के अलावा ओडिशा बंगाल छत्तीसगढ़ और असम में भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व के महत्व को जानें...
By Sanjay KumarEdited By: Updated: Tue, 06 Sep 2022 02:26 PM (IST)
रांची, जासं। Karma Puja 2022 प्रकृति पर्व करमा आज हर्षोल्लासपूर्वक मनाया जाएगा। करम पूजा की तैयारी लगभग पूरा हो चुकी है। अखड़ा की विशेष साज-सज्जा की गई है। कुंआरी कन्याएं दिनभर का व्रत रखकर करम देव की पूजा अर्चना करेंगी। करमदेव से अपने भाई की सुख-समृद्धि की कामना करेंगी। अच्छे वर व सफल दांपत्य जीवन की प्रार्थना करेंगी। संध्या में नवयुवक की टोली करम डाली लायेंगे। अखड़ा में करम डाली स्थापित करने के बाद पाहन पूजा करायंगे। देशवासियों की खुशहाली के लिए लाल मुर्गे की बलि दी जाएगी। करम-धरम की कथा सुनायेंगे। पूजा के बाद रात भर अखड़ा में नृत्य संगीत का दौर चलेगा। मंगलवार को सुबह में करम देव की विधिवत विसर्जन किया जाएगा।
रांची में इन सभी अखड़ों में होगी पूजाबता दें कि कारोना संक्रमण के कारण दो साल करमा पूजा धूमधाम से नहीं मनाया जा सका था, ऐसे में इस बार पर्व को लेकर दोगुना उत्साह है। राजधानी रांची में सभी अखड़ा में पूजा होगी। मुख्यरूप से हातमा, सिरमटोली, करमटोली, वीमेंस कालेज, आदिवासी हास्टल, हरमू, डंगराटोली में भव्य रूप से पूजा होगी। मुख्य पाहन जगलाल पाहन हातमा अखड़ा में पूजा करायेंगे।
एकता और भाईचारगी का संदेश देता है करमा पूजा
मुख्य पाहन जागलाल पाहन का कहना है कि करमा पूजा एकता और भाईचारगी के साथ जीवन जीने की सीख देता है। करम-धरम की कथा में सामूहिकता का पाठ विद्यामान है। सभी वर्गों को मिलजुल कर अपनी-अपनी तरक्की का संदेश देता है। वर्तमान परिपेक्ष्य में करमा पर्व की महत्ता ज्यादा है। आज समाज में ईषर्या-द्वेष काफी बढ़ गया है। सामूहिकता का भाव घटता जा रहा है। समाज की चिंता के बजाय खुद की तरक्की व आयोजन हावी है। इसका समाज में नकारात्मक भाव पैदा हो रहा है। करमा पूजा में शामिल हों तो कथा जरूर सुने। कथा सुनकर उसको अपने व्यक्तिगत जीवन में भी उतारें। इस बार करमा पूजा पर सामूहिकता, सौहार्द्र और समाज हित को सर्वोपरी रखकर जीवन जीने का संकल्प लें।
करमा पर्व में जीवंत होती हैं परंपराएंआदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा का कहना है कि करमा पर्व प्रकृति और अध्यात्म के बीच अटूट संबंध को दर्शाता है। पर्व में आदिवासी परंपराएं जीवंत होती है। लोक कथाओं में मान्यता है कि आदिवासी समाज खेती बारी करने के बाद अच्छी फसल की कामना से करम देव की पूजा अर्चना करते हैं। इस कारण इसे कृषि पर्व भी कहा जाता है।
करम पर्व हमें कर्म ही पूजा और कर्म ही धर्म की सीख देता है। हालांकि, आज करमा की महत्ता और व्यापकता को संजोने की आवश्यकता है। पर्व को सिर्फ खाने-पीने और नाच गान का त्योहार न समझे। समाज के बुद्धिजीवियों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। हमारी संस्कृति कैसे पल्लवति हो इसका भी ध्यान रखना चाहिए।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।