अतीत के आइने से! पहले दीवार पर लेखन से होता था चुनाव प्रचार, तकनीक के तौर पर रेडियो का किया जाता था इस्तेमाल
रांची से दो बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके रोशन लाल भाटिया ने अपने आपको सक्रिय राजनीति से दूर कर लिया है और लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे। अब भी हैं लेकिन उतने सक्रिय नहीं। अपने चुनाव प्रचार को लेकर उन्होंने कहा कि आज पोस्टर बैनर माइक आदि से प्रचार के लिए कई तरह की आचार संहिता है। 1967 के दौर में प्रचार का एक माध्यम था।
जागरण संवाददाता, रांची। रांची से दो बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके रोशन लाल भाटिया सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं। हालांकि लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे। अब भी हैं, लेकिन उतने सक्रिय नहीं।
अपने चुनाव प्रचार को लेकर कहते हैं कि आज पोस्टर, बैनर, माइक आदि से प्रचार को लेकर कई तरह की आचार संहिता है। उस दौर में प्रचार का यही एक माध्यम था। लोग दीवार लेखन भी कराते थे। गांव-गांव माइक से प्रचार होता था। बैनर-पोस्टर चिपकाया जाता। अब तो इसके लिए आदेश लेना पड़ता है।
पहले रेडियो से होता था चुनाव प्रचार
1967 से अब तक चुनाव प्रचार के कई रंग दिखे। आज चुनाव प्रचार भी हाइटेक हो गया है और इसके लिए मोबाइल से लेकर टीवी तक का इस्तेमाल होने लगा है। पहले रेडियो ही एक माध्यम था। सुदूर गांवों में समाचार के लिए भी लोग इसी पर निर्भर रहते थे।बैलेट से चुनाव होते थे और दबंग लोग बूथ लूटकर भी ले जाते थे। यह भी देखा जाता था कि किसी-किसी बूथ पर कोई कार्यकर्ता ही नहीं मिलता था। दबंग प्रत्याशियों की चांदी रहती थी।
अब बदल चुका है समय
चुनाव कराने वाले अधिकारी ही वोट डाल देते थे, लेकिन आज स्थिति बदली है। एक वह भी दौर था, जब इंदिरा गांधी की हवा चलती थी। आज दूसरे पार्टी की हवा बह रही है। समय ऐसे ही बदलता है। आज के चुनावी माहौल को लेकर भाटिया कहते हैं कि अब तो समय भी बदल गया है।कांग्रेस में उत्साह नहीं बचा है। इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। गांधी परिवार में भी नेतृत्व को लेकर संघर्ष चल रहा है। एक पक्ष प्रियंका गांधी वाड्रा को नेतृत्व देने के पक्ष में है। ऐसे समर्थकों में प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि दिखाई देती है।
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