Lohardaga News : कभी ईंट उठाने वाली ललिता उरांव अब उडूमुडू पंचायत का उठा रही विकास का भार
लोहरदगा कुडू लोकतंत्र की मजबूती यही है कि यहां जनता जिसे चाह ले उसे जनता मतों के रूप में समर्थन दे कर देश के किसी भी लोकतांत्रिक पद पर बैठा सकती है। कुडू प्रखंड के उडूमुडू पंचायत से तीसरी बार भारी मतों से विजयी होकर ललिता उरांव मुखिया बनीं।
लोहरदगा, कुडू : लोकतंत्र की मजबूती यही है कि यहां जनता जिसे चाह ले, उसे जनता मतों के रूप में समर्थन दे कर देश के किसी भी लोकतांत्रिक पद पर बैठा सकती है। भारतीय लोकतंत्र की इसी खूबसूरती और मजबूती के कारण झारखंड में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में कुडू प्रखंड के उडूमुडू पंचायत से तीसरी बार भारी मतों से विजयी होकर ललिता उरांव मुखिया बनी। दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करने वाली समाज के एक निचले पायदान की महिला पंचायत की मुखिया लगातार तीसरी बार बनी है। एक वक्त था कि यह महिला दिन भर ईंट-भट्टे या खेतों में काम कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती थी, आज वहीं ललिता अब मुखिया पद पर बैठ कर पंचायत का विकास कर रही हैं। उनका सपना है अपने पंचायत को आदर्श पंचायत बना कर एक उदाहरण प्रस्तुत करे। ललिता के विकास कार्यों को यहां की जनता ने खूब पसंद किया। यही कारण है कि ललिता लगातार तीसरी बार मुखिया चुनी गई।
विकास कार्य के कारण जनता ने दिल में बैठाया
इनकी मीठी बोली ओर शांत स्वभाव के कारण लोग उन्हें पसंद करते है। किसी भी समय किसी के कार्य के लिए यह ना नहीं बोलती हैं। गरीबों को सरकार की योजनाओं से अवगत करती रहती हैं। अपने पंचायत में इन्होंने सड़क, नाली, स्कूलों में हैंडवाश यूनिट आदि लगाने का काम किया है। विकास कार्य के कारण जनता ने दिल में बैठाया है। यह प्रत्येक कार्यालय दिवस पर पंचायत भवन में कुछ घंटे मौजूद रह कर लोगों की समस्याओं को सुनती हैं। प्रत्येक दिन क्षेत्र भ्रमण कर समस्याओं का कल करती हैं। प्रखंड कार्यालय पहुंच कर जनता की समस्याओं से अधिकारियों को अवगत कराती हैं। गांव में सड़क, नाली, पेयजल की व्यवस्था को सबसे पहले ठीक करने का काम किया।
गरीबी को बहुत नजदीक से देखा
ललिता उरांव दिन भर दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती थी। मजदूरी से वह जो कमाकर लाती थी, उसी से उसके घर में चूल्हा जलता था। यह उन दिनों के दर्द को याद कर कुछ बोल भी नहीं पाती, लेकिन पंचायत में विकास के कार्यों को अंजाम देने का जज्बा इनके दिलों में कूट-कूट कर भरा है। इनका कहना है कि गरीबी को बहुत ही नजदीक से देखा है, इसलिए गरीबों को उनका हक दिलाना ही बतौर मुखिया पहली प्राथमिकता है। आगे भी वह अपना काम करती रहेंगी।
कितनी बार कितने वोट से जीत की दर्ज
ललिता ने पहला पंचायत चुनाव 2010 में लड़ा था। जिसमें 11 प्रत्याशियों के बीच यह 26 वोट से जीती थी। दूसरा पंचायत चुनाव इन्होंने वर्ष 2016 में सात प्रत्याशियों के बीच लड़ा था। तब यह 700 वोट से चुनाव जीतने में कामयाब रही थी। इसके बाद इस बार वर्ष 2022 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में दो प्रत्याशियों में हुई टक्कर में यह बड़े अंतर से 1250 वोट से चुनाव जीतने में कामयाबी पाई है। देखने वाली बात यह है कि इनके जीत का अंतर हर बार बढ़ता ही गया है।
खेती कार्य में विशेष रुचि
ललिता के पति का निधन वर्ष 2005 में हुआ था। तब इनकी दोनों बेटियां छोटी थी। खेती बाड़ी में इनकी विशेष रुचि रही है। खेतों में यह स्वयं कार्य करती हैं। इनके यहां 50 डिसमिल में आम बागवानी है और 1.5 एकड़ में आदी, गोभी, धनियां, ओल आदि सब्जियों की खेती करती हैं। सब्जियों की खेती से भी इनकी अच्छी आमदनी हो जाती है।
क्या कहती हैं ललिता
ललिता का कहना है कि वह विकास के संकल्प के साथ ही मुखिया बनी हैं। लोगों ने उन पर विश्वास किया है तो वह विश्वास पर खरा भी उतरेंगी। वह प्रत्येक दिन घर में और खेती में सुबह के समय कुछ घंटे देती हैं, इसके बाद शेष समय आम लोगों के लिए होता है। मुखिया बनने के बाद भी उन्होने अपने आप को नहीं बदला। जिसके कारण लोग उन्हें आज भी उतना ही स्नेह देते हैं, जितना पहले देते थे। उन्होने पंचायत के लोगों को ही अपना परिवार समझा है।