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238 बार हार चुका नेता इस बार भी लड़ेगा चुनाव, इलेक्‍शन किंग के नाम से हैं मशहूर; लिम्‍का बुक में भी नाम दर्ज

चुनाव नजदीक है इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने जीत के लिए कमर कस ली हैं। नेता भी अपने-अपने प्रचार में लगे हुए हैं। लेकिन इन सबके बीच कुछ नेता ऐसे भी हैं जिन्‍हें हार-जीत से कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये केवल अपने धुन में चुनाव लड़े जाते हैं। बाबा जोगिन्दर सिंह धरतीपकड़ का नाम ऐसे ही चुनावी खिलाड़ी के रूप में पूरा देश जानता है।

By Jagran News Edited By: Arijita Sen Updated: Wed, 03 Apr 2024 01:32 PM (IST)
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नागरमल बाजोरिया, बाबा जोगिन्दर सिंह धरतीपकड़ और के पद्मराजन की फोटो।
चुनाव डेस्क, रांची। चुनाव मैदान में सभी जीतने के लिए उतरते हैं, लेकिन अपने देश के चुनावी समर में कई योद्धा ऐसे भी नजर आते रहे हैं जिन्हें जीत-हार से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह केवल अपनी धुन में लड़े जाते हैं। बाबा जोगिन्दर सिंह धरतीपकड़ का नाम ऐसे ही चुनावी खिलाड़ी के रूप में पूरा देश जानता है।

अब तक 238 बार चुनाव हार चुके हैं पद्मराजन

धरतीपकड़ अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अभी भी कई लोग ऐसे हैं, जो उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। तमिलनाडु के मेट्टूर क्षेत्र के सलेम निवासी डा. के पद्मराजन भी ऐसे ही नेता हैं। वह भी स्थानीय चुनाव से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव लड़ चुके हैं।

वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, डीएमके प्रमुख करुणानिधि, एआइएडीएमके प्रमुख जयललिता तथा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। अब तक 238 बार चुनाव हारने के कारण उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज है। इस बार भी वह धर्मपुरी से मैदान में है।

पहला चुनाव 1986 में लड़े, पांच बार लड़ चुके हैं राष्ट्रपति चुनाव

टायर का व्यापार करने वाले 55 वर्षीय पद्मराजन ने सबसे पहले निर्दलीय के तौर पर 1986 में मेट्टूर से चुनाव लड़े थे। वह अब तक पांच बार राष्ट्रपति, पांच बार उपराष्ट्रपति, 32 बार लोकसभा, 72 बार विधानसभा, तीन बार एमएलसी और एक बार मेयर समेत कई चुनाव लड़ चुके हैं।

पिछले साल तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान पद्मराजन ने गजवेल सीट से नामांकन दाखिल किया था। इन्होंने इतिहास में एमए की डिग्री ली है।

चुनावी शपथ पत्र के अनुसार, पद्मराजन के पास कुल 15.16 लाख रुपये की संपत्ति है। साथ ही इनके ऊपर 48 हजार रुपये का कर्ज भी है। वहीं, घर पर 50 हजार रुपये का कैश है, जबकि बैंक में सिर्फ एक हजार रुपये ही जमा हैं।

एलआइसी, एनएससी या अन्य किसी भी सरकारी योजना में इनका कोई निवेश नहीं है। पद्मराजन ने साल 1987 में पांच हजार रुपये में टू व्हीलर बाइक खरीदी थी, जो आज भी इनके पास है। इनके पास 34 ग्राम के सोने की चेन और रिंग है, जिसकी कीमत उस समय 60 हजार रुपये थे, लेकिन आज इसकी कीमत 2.34 लाख रुपये से ज्यादा है।

इसके अलावा इनके नाम 11 लाख रुपये का व्यावसायिक भवन और तीन तीन लाख रुपये का घर है। कई मौकों पर पद्मराजन कह चुके हैं कि उन्हें हारना पसंद है और वह केवल विश्व रिकार्ड बनाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें एक चुनाव में सबसे अधिक छह हजार वोट मिले थे।

इन्हें भी रखिए याद

बरेली के रहनेवाला काका जोगिंदर सिंह धरतीपकड़ के नाम 282 बार चुनाव लड़ने और हारने का रिकार्ड है। हर चुनाव हारने के बाद वह अगले चुनाव की तैयारी करने लगते थे।

वह कहते थे कि जीत-हार की मेरी जिंदगी में अहमियत नहीं है। मैं समाज को यह संदेश देना चाहता हूं कि देश और लोकतंत्र में सबकी अहमियत बराबर है। 23 दिसंबर 1988 को उनका निधन हो गया।

बिहार के भागलपुर के रहने वाले नागरमल बाजोरिया अब 100 वर्ष के होने वाले हैं। उनके सिर पर भी चुनाव लड़ने का जुनून सवार है। वह नामांकन में अपने साथ गधों को ले जाते थे।

वह कहते थे कि नेता लोग जनता को मूर्ख बताते हैं। यह बताने के लिए गधों को साथ ले जाता हूं। बिहार और बिहार के बाहर बाजोरिया भी नगर निकाय से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव 260 से अधिक बार लड़ चुके हैं।

स्‍वास्थ्य कारणों से पिछले कुछ दिनों से वह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। lओडिशा के श्याम बाबू सुबुधी और नरेंद्र नाथ दुबे भी ऐसे ही प्रत्याशी हैं। नरेंद्र नाथ दुबे वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध लड़ते रहे हैं। यह भी 50 से अधिक चुनाव लड़ चुके हैं। 2019 के चुनाव में यह भगवान राम की तरह वेश-भूषा धारण कर नामांकन करने पहुंचे थे।

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