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झारखंड में भगवान श्रीकृष्ण के सखा उद्धव महाराज की पवित्र यज्ञ भूमि, देखिए आश्रम, पढ़िए रोचक इतिहास

Jharkhand Religious Places झारखंड के साहिबगंज जिले में छोटा-सा कस्बा है। नाम है- उधवा। यहीं भगवान श्रीकृष्ण के सखा और सांख्य योग के दार्शनिक उद्धव जी महाराज का आश्रम है। भगवान श्रीकृष्ण के शरीर त्याग करने के पश्चात‌ उद्धव महाराज ने यहीं यज्ञशाला की स्थापना की थी।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Wed, 10 Aug 2022 03:37 PM (IST)
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Jharkhand History: भगवान श्रीकृष्ण और उनके मित्र उद्धव महाराज का प्रतीक फोटो।
साहिबगंज, {नव कुमार मिश्रा}। मुगलकालीन ऐतिहासिक शहर राजमहल से दक्षिण की ओर महज दस किलोमीटर दूर एक छोटा-सा कस्बा है- उधवा। साहिबगंज जिले का एक प्रखंड। मुगलकाल ही नहीं महाभारत काल में भी उधवा के अस्तित्व के प्रमाण हैं। संताल परगना गजेटियर तथा प्रसिद्ध इतिहासकारों ने बताया है कि इसका धार्मिक तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि काफी गौरवशाली रहा है, जिसके प्रमाण आज भी यहां मौजूद हैं। यह जगह झारखंड के साहिबगंज जिले में पड़ता है। यहां पहुंचने के लिए पहले आपको राजमहल जाना होगा। वहां से उधवा।

उद्धव मुनि के नाम पर उधवा का नामकरण

उधवा की भूमि पर सदियों से प्रवाहित है- उदयनाला। इसको उधवानाला भी कहा जाता है। इसने अपने आंचल में कई ऐतिहासिक घटनाओं को समेट रखा है। इसी तट पर भगवान श्रीकृष्ण के परमसखा उद्धवजी महाराज ने एक यज्ञशाला की स्थापना की थी। आगे चलकर उद्धवजी महाराज के नाम पर ही इस गांव का नाम उधवा पड़ गया। उद्धवजी महाराज महाभारत काल के सांख्य योग के दार्शनिक थे। भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र थे। लोक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के शरीर त्याग करने के पश्चात‌ उद्धव जी महाराज ने यहां यज्ञशाला की स्थापना की थी। जिसे लोग आज भी उद्धव मुनि स्थान के रूप में जानते हैं। उधवा के भूदेव मंडल टोला में आज भी यज्ञशाला के अवशेष हैं। हाल ही में यहां विधायक अनंत कुमार ओझा ने सरकारी कोष से एक भवन का निर्माण कराया है। इस बात का उल्लेख पीसी राय चौधरी ने "बिहार जिला गजेटियर्स: संथाल परगना में इसका उल्लेख भी किया है।

मुगल शासन के पतन का साक्षी उदयनाला पुल

पूर्वी उधवा पंचायत में उदयनाला पर मुगलकाल में बने एक पुल का अवशेष आज भी मौजूद है। कहा जाता है कि बंगाल के अंतिम नबाव सिराजुद्दौला को दियारा क्षेत्र के सिराजमारी गांव से अंग्रेजों ने पकड़ लिया। कालांतर में मीरजाफर के बाद जब मीर कासिम को सत्ता मिली तो अंग्रेजों ने उसे बेदखल करने की ठान ली। उसी दौरान अंग्रेज व मुगल सैनिकों के बीच उदयनाला तट पर भीषण लड़ाई हुई। इसमें पुल पर से तोप चलाने के कारण पुल का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। वह क्षतिग्रस्त पुल आज भी मौजूद है। मीर कासिम और अंग्रेजों (1763) के बीच उधवानाला की लड़ाई यहीं पर केंद्रित थी। 1763 में बंगाल को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए उधवानाला में मुगलों तथा अंग्रेजों के बीच हुई लड़ाई से जुड़े विस्तृत साक्ष्य किताबों में भी उपलब्ध हैं। रामप्रसाद त्रिपाठी लिखित पुस्तक पलासी की लड़ाई में उल्लेख है कि मीर कासिम ने उधवानाला के निकट एक तरफ गंगा नदी दूसरी तरफ राजमहल की पहाड़ी तीसरी तरफ गहरी उधवा नदी व चौथी तरफ गहरी खाड़ी को देखकर इस स्थल पर अंग्रेजों से निर्णायक लड़ाई के लिए किलेबंदी की थी। 400 तोप की तैनात की थी। यहां के पहाड़ीनुमा जगह, पहाड़ गांव, दरगाह डांगा व बाघपिंजर में मुगलों ने सैनिक छावनी बना कर मजबूत किलेबंदी की थी।

इस तरह अंग्रेज जीत गए उधवानाला की लड़ाई

हरिनाथ शास्त्री अपनी पुस्तक मीर कासिम में इस बात का उल्लेख करते हैं कि मीर कासिम द्वारा उधवा नाला के समीप की गई मोर्चे बंदी को तोड़ने में अंग्रेज सेनापति एडम्स को एक महीना से ज्यादा का समय लगा। नाला से पहाड़ी तक मीर कासिम द्वारा बनवाई गई सुरक्षा दीवार को अंग्रेजी तोप अंत तक नहीं तोड़ पाईं। तब धोखे से रात के समय अंग्रेजों ने मीर कासिम की सेना पर हमला बोलकर 15 हजार सैनिकों को मौत के घाट उतारा। नवाब मीर कासिम अंग्रेजों से हार गया। अपने परिवार के साथ रोहतास, बिहार भाग गया। लेकिन रोहतासगढ़ किले में छिप नहीं पाया। रोहतास के दीवान शाहमल ने आखिरकार ब्रिटिश कप्तान गोडार्ड को सौंप दिया। इस युद्ध के संबंध में कर्नल मालेसन ने लिखा था कि यदि अंग्रेज उधवानाला की लड़ाई न जीतते तो उन्हें भारत में कहीं एक फुट जमीन न मिलती।

झारखंड राज्य का एकमात्र पक्षी अभयारण्य

राजमहल की पहाड़ियों के आंचल में लगभग 5.65 वर्ग किलोमीटर में फैला उधवा पक्षी अभयारण्य तथा मनोरम स्थल पतौड़ा झील है। यह झारखंड राज्य का एकमात्र पक्षी अभयारण्य है। यह प्रवासी तथा विदेशी पक्षियों का पसंदीदा स्थल है। गंगा नदी के ऊपर दो बैकवाटर झीलें शामिल हैं। इनका नाम पतौड़ा और बरहेल झील है। सर्दियों में साइबेरिया और यूरोप सहित दुनिया के कई हिस्सों से प्रवासी पक्षी यहां पहुंचते हैं। हजारीबाग वन प्रमंडल में उधवा पक्षी अभयारण्य का समुचित विकास नहीं हुआ था, लेकिन साहिबगंज वन प्रमंडल में इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। उद्धव मुनि आश्रम को भी विकसित किया जा रहा है। मुगल सत्ता के पतन के साक्षी तथा 15 हजार मुगल सैनिकों के बलिदान के याद में पुल के भग्नावशेष तथा सैनिक छावनी को स्मारक बनाया जा सकता है। उधवा के ऐतिहासिक धरोहरों को और विकसित कर पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाया जा सकता है।

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