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Lok Sabha Election 2024: इन नेताओं की लगने वाली है लॉटरी, सियासी हलचत तेज; जल्द हो सकता है नामों का एलान

Lok Sabha Election 2024 राजनीति में वोटर कब किस करवट पलट जाएंगे कहा नहीं जा सकता और इसी प्रकार कब किसकी किस्मत चमकेगी इस पर भी संशय बना रहता है। इन तमाम उलझनों के बावजूद एक बार फिर जातिगत आंदोलनों का झंडा ढोने वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं की पूछ बढ़ी है और कई इलाकों में इनकी सीधी एंट्री की संभावनाएं दिख रही हैं।

By Ashish Jha Edited By: Shashank Shekhar Updated: Sat, 09 Mar 2024 02:13 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: इन नेताओं की लगने वाली है लॉटरी, सियासी हलचत तेज

राज्य ब्यूरो, रांची। राजनीति में वोटर कब किस करवट पलट जाएंगे, कहा नहीं जा सकता और इसी प्रकार कब किसकी किस्मत चमकेगी इस पर भी संशय बना रहता है। इन तमाम उलझनों के बावजूद एक बार फिर जातिगत आंदोलनों का झंडा ढोने वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं की पूछ बढ़ी है और कई इलाकों में इनकी सीधी एंट्री की संभावनाएं दिख रही हैं।

झारखंड में ऐसा पहले भी होता रहा है। जिस प्रकार आदिवासी इलाकों में पार्टियाें से कहीं अधिक कारगर वे लोग साबित होते हैं जो सामाजिक और जातिगत आंदोलनों का हिस्सा होते हैं उसी प्रकार अन्य इलाकों में जाति आधारित नेताओं की पूछ बढ़ रही है। खासकर शहरी इलाकों में भी यह बीमारी फैलने लगी है।

पार्टियां ऐसे तय करती है उम्मीदवारों के नाम 

झारखंड में सभी पार्टियां अधिसंख्य मामलों में जातिगत समीकरणों पर फोकस करते हुए उम्मीदवारों का चयन करती हैं। कई बार उम्मीदवार भी सीधे जाति आधारित आंदोलनों का झंडा ढोने वाले कार्यकर्ता होते हैं। आम चुनाव में अभी तक घोषित उम्मीदवारों में ऐसा कोई दिख तो नहीं रहा है, लेकिन आगे इसकी संभावनाएं बनी हुई हैं। पहले भी कई दलों ने इस तरह के उम्मीदवारों को अलग-अलग चुनावों में मौका दिया है।

कांग्रेस में सक्रिय पूर्व मंत्री बंधु तिर्की का उदय ऐसे ही आंदोलनों से हुआ है। बंधु के बाद अब उनकी बेटी भी विधायक हैं। कांग्रेस ने रांची नगर निगम से पिछले दिनों अजय तिर्की को अपना उम्मीदवार बनाया था, जो सरना सभा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार के कई नेता दूसरे दलों में भी सक्रिय हैं।

आजसू और झामुमो के कई नेता जातिगत आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। इनकी पहचान भी जाति के आधार पर दूसरों से अलग रही है। भले ही ये लोग सभी बिरादरी का प्रतिनिधित्व करें, जाति का ठप्पा तो इनपर पड़ ही जाता है। यही कारण है कि सुदेश महतो, चंद्रप्रकाश चौधरी, मथुरा महतो आदि नेताओं को क्षेत्र में जातिगत आधार पर अलग पहचान मिलती है।

चुनाव में जातिगत समीकरणों को साधने में जुटी सभी दलें

भाजपा में भी ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जो जातिगत आधार पर बार-बार चुनकर आते हैं। धनबाद से पीएन सिंह हों, रांची के सीपी सिंह, खूंटी से अर्जुन मुंडा अथवा कोई और नेता, सबकी अपने-अपने इलाके में जातिगत पहचान बनी हुई है। तमाम बड़े नेता भी छोटे-छोटे इलाकों में इस प्रकार के जातिगत नेताओं को तरजीह देते हैं।

दरअसल, तमाम राजनीतिक दल चुनावी राजनीति में जातिगत समीकरणों को साधने में जुटे हुए हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पूर्व पार्टियों के सर्वे में भी जातियों का वर्णन रहता है और यह उम्मीदवारों के चयन को लेकर एक मजबूत आधार बनता है।

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