Mahashivratri 2022: जानिए, झारखंड के इन चार शिव मंदिरों की रोचक कहानी, जहां शिवरात्रि पर पूरी होती हैं मनोकामनाएं
Mahashivratri 2022 शिवरात्रि 01 मार्च को है। शिव मंदिरों की सजावट शुरू हो गई है। शिव बारात की तैयारियां शुरू हो गई हैं। झारखंड में भी कई प्राचीन शिव मंदिर हैं जो आस्था के बड़े केंद्र के रूप में जाने जाते हैं। इन मंदिरों की अपनी रोचक कहानी भी है।
By M EkhlaqueEdited By: Updated: Sun, 27 Feb 2022 05:07 PM (IST)
रांची, डिजिटल डेस्क। Mahashivratri 2022 झारखंड में यूं तो कई शिव मंदिर हैं, जहां हर दिन लोग पूजा-पाठ करने जाते हैं। लेकिन, चार मंदिर ऐसे भी हैं, जो हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं। इन शिव मंदिरों की अपनी रोचक कहानी है। इसी वजह से यह मंदिर झारखंड में धार्मिक आस्था के महत्वपूर्ण केंद्र बना गए हैं। सावन और शिवरात्रि में यहां भक्तों की भीड़ देखते बनती है। चूंकि यहां सबकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, इसलिए यहां लोगों की आस्था अधिक है। अगर आप झारखंड में मौजूद हैं तो इन चार मंदिरों को देखना कतई नहीं भूलें।
देवघर : यहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ का एक साथ होगा दर्शन
देवघर को बाबा नगरी कहा जाता है। यहां भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु जल चढ़ाने के लिए आते हैं। इसके अलावा अन्य दिनों में भी यहां पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। शिव मंदिर के कारण ही इस शहर की पहचान है। भारत का 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में से एक यहां पर स्थापित है। भारत में कुल 51 शक्ति पीठ हैं, उनमें से एक यहां हैं। देवघर को बैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल है। यह ऐसा पवित्र स्थल है जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों एक साथ है। जुलाई और अगस्त के महीने में यहां सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर श्रद्धालु 108 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर पहुंचते हैं। इसे एशिया का सबसे लंबा मेला भी कहा जाता है, कारण यह कि 108 किलोमीटर लंबी लाइन यहां नजर आती है। चहुंओर भगवा रंग ही नजर आता है। बहरहाल, देवघर का शाब्दिक अर्थ होता है भगवान का घर। देवी देवताओं का घर। चूंकि यहां भगवान शिव विरजमान हैं, इसलिए इस शहर को लोग देवघर कहकर पुकारते हैं। इसे लोग प्यार से बाबा धाम और बैद्यनाथ धाम भी पुकारते हैं। यहां शिवरात्रि के दिन भी पूजा अर्चना के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। दूर दूर से लोग यहां पहुंचते हैं।
मुर्गा महादेव : कोल्हान प्रमंडल और ओडिशा के लिए आस्था का केंद्र झारखंड के कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिलों पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां जिले के अलावा पड़ोसी राज्य ओडिशा के कई जिलों के लोगों की आस्था का केंद्र रहा है मुर्गा महादेव मंदिर। यहां हर वर्ष शिवरात्री पर बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। इस बार भी शिव रात्रि को लेकर यहां विशेष तैयारी की गई है। कोरोना संक्रमण को लेकर करीब ढाई साल तक मंदिर दर्शन के लिये पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में कमी आई थी।दो साल तक मंदिर बंद रहा। मंदिर खुलते ही लोगों का आना जाना शुरू हो चुका है। इस बार मंदिर प्रांगण में शिव बारात लिकालने की तैयारी चल रही है। पति की दीर्घायु के लिये व्रत रखने वाली महिलाओं के लिये सुबह से देर रात तक मंदिर कपाट खुले रहेंगे। इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था देखते बनती है। बेहद प्राचानी मंदिर है। कहा जाता है कि ओडिशा के जोड़ा प्रखंड के निवासी एक दंपत्ति ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। पुत्र रत्न प्राप्ति के कारण इस दंपत्ति को मंदिर निर्माण कराने का ख्याल आया था। समय बदलने के साथ यह झोपड़ी के बदले अब शानदार मंदिर का रूप धारण कर चुका है। अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में शिव लिंग चुराने का प्रयास किया था, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाए थे। इस मंदिर को लेकर और भी कई दंत कथाएं प्रचलित हैं।
पहाड़ी मंदिर : 300 सीढ़ियां चढ़ने के बाद होगा भगवान का दर्शन झारखंड की राजधानी रांची में आस्था का बड़ा केंद्र है- पहाड़ी मंदिर। इस पहाड़ी पर भगवान का शिव मंदिर है। शिवरात्रि के दिन यहां काफी संख्या में भीड़ उमड़ती है। सच कहा जाए तो पूरा शहर इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए उमड़ पड़ता है। यहां आस्था का जनसैलाब देखते बनाता है। इस पहाड़ी को फांसी टोंगरी भी कहा जाता है, कारण यह कि यहां ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी कर सजा दी गई थी। यहां स्थित शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 300 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। लोक समाज में ऐसी मान्यता है कि यहां जो भी मन्नत लोग मांगते हैं, उसे भगवान शिव पूरा कर देते हैं। इस मंदिर के पास पहुंच कर आप चाहें तो रांची शहर का विहंगम नजारा भी देख सकते हैं। यहां पर सावन के महीने में लोग भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए भी पहुंचते हैं। यह रांची शहर में सबसे बड़ा धार्मिक पर्यटन केंद्र माना जाता है। यहां पहुंचना भी बेहद आसान है।
दलमा बाबा मंदिर : तीन हजार फुट ऊंचाई पर विरजमान भगवान रांची-जमशेदपुर एनएच-33 किनारे स्थित है दलमा पहाड़। यह पश्चिम बंगाल की सीमा से भी सटा हुआ है। हाथियों के लिए यह पहाड़ संरक्षित है। पर्यटन का बड़ा केंद्र है। इस पहाड़ की चोटी पर भगवान शिव का शानदार मंदिर है। वन विभाग की मानें तो 3000 फुट ऊंचाई पर भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर मौजूद है। करीब 193 वर्ग किलोमीटर में यह दलमा पहाड़ फैला हुआ है। जब आप पहाड़ की चोटी पर पहुंचेंगे तो एक गुफा में भगवान शिव का मंदिर नजर आएगा। लोग इसे प्राकृतिक मंदिर बताते हैं। श्रद्धावश लोग इन्हें दलमा बाबा के नाम से पुकारते हैं। सावन और शिवरात्रि के समय यहां पूरा जमशेदपुर शहर उमड़ आता है। बड़ी संख्या में आसपास के ग्रामीण भी यहां पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार से भी लोग पूजा करने आते हैं, लेकिन इनकी संख्या कम होती है। मंदिर के बारे में एक दंतकथा प्रचलित है कि माता मंदिर से शिवलिंग तक गुफा थी। एकबार पूजा के बाद पुजारी गुफा से बाहर निकला, लेकिन अपना हथियार अंदर ही भूल गया। उसने हथियार लाने के लिए बेटी को अंदर भेजा, परंतु बेटी वापस नहीं आई। इसके बाद से माता मंदिर से शिवलिंग तक जाने वाली गुफा बंद हो गई।
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