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जान‍िए, इस तरह झारखंड की माटी से जुड़े हैं 'जंगल के दावेदार' की लेख‍िका महाश्‍वेता देवी के संबंध

Mahasweta Devi birthday Today भारत की महान लेख‍िका महाश्‍वेता देवी का आज जन्‍मद‍िन है। भले ही वह पश्‍चिम बंगाल के कोलकाता में रहती थीं उनका संबंध झारखंड से भी रहा है। भगवान ब‍िरसा मुंडा पर उनका उपन्‍यास सबका द‍िल जीत लेता है।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Fri, 14 Jan 2022 08:21 AM (IST)
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Mahasweta Devi birthday Today : भारत की महान लेख‍िका महाश्‍वेता देवी का आज जन्‍मद‍िन है।
रांची, ड‍िज‍िटल डेस्‍क। भारतीय साहित्य में जिन साहित्यकारों की चर्चा बेहद सम्मान के साथ होती है उनमें एक नाम है- महाश्‍वेता देवी। महाश्वेता देवी अपने उपन्यास और कहानियों के कारण हिंदी साहित्य में जानी जाती हैं। उन्होंने नाटक भी लिखा है और ऐतिहासिक उपन्यास भी। महाश्वेता देवी की पहचान एक उपन्यासकार और निबंधकार के रूप में भी है। विश्व भारती शांतिनिकेतन कोलकाता से उनका गहरा संबंध रहा है।

बांग्लादेश के ढाका में जन्मी महाश्वेता देवी

14 जनवरी 1926 को बांग्लादेश के ढाका में जन्मी महाश्वेता देवी का कार्यक्षेत्र कोलकाता था, लेकिन वह पूरे हिंदुस्तान की साहित्यकार थींं। भले ही वह कोलकाता में रहती थीं, लेकिन झारखंड से उनका गहरा नाता था। अपने साहित्य के माध्यम से महाश्वेता देवी ने झारखंड के क्रांतिकारी बिरसा मुंडा पर शानदार उपन्यास लिखकर देश और आदिवासियों का दिल जीता है।

भगवान ब‍िरसा मुंडा पर ल‍िखा जंगल के दावेदार

महाश्वेता देवी के उपन्यास का नाम है जंगल के दावेदार। इस उपन्यास के कारण ही महाश्वेता देवी का झारखंड से गहरा रिश्ता है। यहां की माटी महाश्वेता देवी को आज भी इसीलिए याद करती है। महाश्वेता देवी ने जंगल के दावेदार पुस्तक में भगवान बिरसा मुंडा के जीवन संघर्ष और अंग्रेजों के जुल्म अत्याचार की जो कहानी बयान की है, उसे पढ़कर किसी को भी रोना आ जाएगा।

आजादी की लड़ाई में आद‍िवास‍ियों के संघर्ष का च‍ित्रण

यह उपन्यास बिरसा मुंडा के जीवन संघर्ष को इस तरीके से प्रस्तुत करता है, जैसे आप किसी सिनेमा हॉल में बैठकर फिल्म देखते हैं। जिन लोगों ने कभी बिरसा मुंडा को नहीं देखा है उन्हें एक बार महाश्वेता देवी के इस उपन्यास को अवश्य पढ़ना चाहिए। यह उपन्यास बिरसा मुंडा के संघर्ष का चित्रण तो करता ही है, साथ ही यह भी बताता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समाज का कितना महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

महाश्‍वेता देवी ने झांसी की रानी पर ल‍िखी पहली रचना

महाश्वेता देवी ने सिर्फ बिरसा मुंडा पर ही नहीं, बल्कि झांसी की रानी पर भी रचनाएं लिखी हैं। झांसी की रानी उनकी पहली रचना थी। इसका प्रकाशन 10956 में हुआ था। आज भी इस रचना को पढ़ते समय गौरव बोध होता है। इस रचना में उन्‍होंने झांसी की रानी का शानदार च‍ित्रण क‍िया है।

पद्मश्री, पद्मभूषण समेत म‍िल चुके थे कई पुरस्‍कार

बांग्ला भाषी महाश्वेता देवी को कई पुरस्कारों से सरकार ने नवाजा है। 1979 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। 1986 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया था। वर्ष 1997 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2006 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया। वर्ष 2011 में महाश्वेता देवी को बंद विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

नेल्सन मंडेला के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार ग्रहण क‍िया 

महाश्वेता देवी ऐसी पहली लेखिका थी जिन्होंने दक्षिण अफ्रीकी अश्वेत आंदोलन के महान नेता नेल्सन मंडेला के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार ग्रहण किया था। महाश्वेता देवी अपने उपन्यास मास्टर साब के कारण भी चर्चा में रही हैं। मास्टर साब उपन्यास बिहार के भूमि आंदोलन पर केंद्रित है। उन्होंने 100 से ज्यादा उपन्यास और लघु कथाओं की रचना की।

गरीबों और आदिवासियों के बारे में काफी रचनाएं लिखी

महाश्वेता देवी ने गरीबों और आदिवासियों के बारे में काफी रचनाएं लिखी हैं। एक हजार चौरासी की मां उनकी चर्चित रचनाओं में से एक है। महाश्वेता देवी की रचनाओं का समय-समय पर अंग्रेजी जापानी फ्रेंच और कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

श‍िक्षक और पत्रकार की भूम‍िका में रह चुकी थीं

महाश्वेता देवी के पिता का नाम मनीष घटक तथा मां का नाम धरित्री देवी था। पिता मनीष घटक ख्याति प्राप्त कवि और साहित्यकार थे। मां धरित्री देवी भी साहित्य की गंभीर अध्येता थीं। वह हमेशा समाजसेवा में लगी रहती थीं।

महाश्‍वेता देवी ने विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन से बीए अंग्रेजी में क‍िया था। एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में भी उनकी पहचान रही है। 1984 में उन्होंने कोलकाता यून‍िवर्स‍िटी से सेवानिवृत्ति ले ली थी। महाश्वेता देवी का न‍िधन 28 जुलाई 2016 को हुआ था।

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