नक्सलियों का रिमोट कंट्रोल राष्ट्रविरोधी ताकतों के हाथ में, देश में अस्थिरता फैलाने का रचते हैं षड्यंत्र
ग्रवादियों के बार-बार पीछे हटने और फिर से प्रभाव जमाने के पीछे यह एक बड़ा कारण है। अपने प्रभाव क्षेत्र में नक्सली विकास कार्य में अडंगा डालते हैं इन्हें संरक्षण देने वाले लोगों को भी बेनकाब करना होगा।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 06 Nov 2020 10:12 AM (IST)
रांची, प्रदीप शुक्ला। राज्य में रघुवर सरकार के दौरान लगभग नेस्तनाबूत होने की कगार पर पहुंच गए नक्सली उग्रवादी संगठन एक बार फिर फन उठा रहे हैं और लगभग हर दिन कहीं न कहीं किसी घटना को अंजाम दे रहे हैं। इससे राज्य में एक बार फिर दहशत का माहौल कायम होना शुरू हो गया है। शासन-प्रशासन नक्सली गतिविधियों को रोकने के लिए सख्ती बरते जाने के दावे तो कर रहा है, लेकिन धरातल पर उस तरह काम होता नहीं दिख रहा है। कानून व्यवस्था का पटरी से उतरना झारखंड के लिए अच्छे संकेत नहीं है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि नक्सलवाद राज्य के विकास में कितना बड़ा अड़ंगा रहा है और जब एक बार राज्य सही दिशा में बढ़ रहा था तो फिर से ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों का उभरना बहुत घातक हो सकता है।
नक्सलियों-उग्रवादियों में पुलिस का खौफ कम : लोहरदगा जिले में पुलिस गश्ती दल पर हमला हो अथवा रांची में दो व्यवसायियों को प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट आफ इंडिया के उग्रवादियों द्वारा वीडियो कॉल कर मांगी गई एक करोड़ रुपये की रंगदारी। दोनों ही घटनाओं में जिस तरह का दुस्साहस दिखाया गया उससे किसी को भी यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि नक्सलियों-उग्रवादियों में पुलिस का खौफ कम होता जा रहा है। रांची में जिन दो व्यवसायियों से रंगदारी मांगी गई उन्हें वाट्सएप के वर्चुअल नंबर से कॉल की गई। व्यवसायियों को धमकाया गया कि वह संगठन से वार्ता कर लें और जहां कहा जाता है, वहां बताई गई धनराशि लेकर पहुंच जाएं अन्यथा फौरी कार्रवाई की जाएगी।
प्रवासी मजदूरों पर नक्सलियों की नजर : विगत कुछ वर्षो खासकर पूर्व की भाजपा की रघुवर दास की सरकार में लगातार पुलिस और अर्धसैनिक बलों के अभियान ने इनकी कमर तोड़ दी थी। इस दौरान कई नक्सली मारे गए और दर्जनों उग्रवादियों ने पुलिस के समक्ष हथियार डाल दिए। नोटबंदी के दौरान भी इन्हें जोर का झटका लगा था। सुरक्षा एजेंसियों की सक्रियता के कारण बड़े पैमाने पर नकदी भी बरामद की गई। नक्सलियों को मदद पहुंचाने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई हुई, लेकिन हाल के महीनों में इनकी सक्रियता एकाएक बढ़ गई है। अपने प्रभाव क्षेत्र में पोस्टर के माध्यम से नक्सली उपस्थिति दर्ज कराने की कवायद कर रहे हैं। इनकी नजर लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे प्रवासी मजदूरों पर है। वे उन्हें पैसे और रुतबे का लालच देकर अपने संगठन से जोड़ने में लगे हैं, ताकि फिर से प्रभुत्व कायम कर सकें।
राज्य के पुलिस महानिदेशक एमवी राव ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि प्रवासी मजदूरों पर नक्सलियों की नजर है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि प्रवासी मजदूरों को नक्सली समूहों से जोड़ने में उन्हें अभी सफलता नहीं मिल रही है, क्योंकि ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। कुछ माह पूर्व ओडिशा की सीमा से सटे राज्य के चाईबासा में मुठभेड़ के बाद भी इसकी पुष्टि हुई है कि विभिन्न धड़ों में बंटे नक्सली समूह नए इलाकों में भी घुसपैठ की कोशिश में हैं।
कोयला खनन क्षेत्रों में व्यवसाय कर रहे लोगों को धमकाना भी उनकी कारगुजारी में शुमार है। पुलिस अभियान का मंद पड़ना भी इनकी गतिविधियों को तेज करने में मददगार रहा है। पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में नक्सली कांडों से संबंधित 19 केस दर्ज किए गए हैं। इसी तरह मई महीने में 31, जून में 33 व जुलाई में नक्सल कांडों से संबंधित 29 मामले दर्ज किए गए हैं। गुरिल्ला लड़ाई में माहिर नक्सली पुलिस को अक्सर छकाते रहते हैं। लोहरदगा की ताजा घटना भी इसका उदाहरण है। इसमें दो सिपाही गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
गांवों के बेरोजगार युवाओं की भर्ती : कोल्हान के सारंडा वन क्षेत्र, सरायकेला-खरसांवा व खूंटी सीमा क्षेत्र, पारसनाथ का इलाका और बूढ़ा पहाड़ का क्षेत्र इनकी शरणस्थली बना हुआ है। यही वह जगह है, जिसके रास्ते नक्सली सारंडा से गिरिडीह-पारसनाथ आते-जाते हैं। पूर्व की सरकार में अभियान चलने से नक्सलियों का यह रूट ध्वस्त हो गया था। इस रूट को एक बार फिर से मजबूत करने के लिए नक्सली जुटे हैं, ताकि उनकी गतिविधियां तेज हो सके। सूचना मिल रही है कि इसके लिए वे गांवों के बेरोजगार युवाओं की भर्ती भी कर रहे हैं।
हालांकि इन्हें राजनीतिक संरक्षण भी खूब मिलता है। उग्रवादियों के बार-बार पीछे हटने और फिर से प्रभाव जमाने के पीछे यह एक बड़ा कारण है। अपने प्रभाव क्षेत्र में नक्सली विकास कार्य में अडंगा डालते हैं, इन्हें संरक्षण देने वाले लोगों को भी बेनकाब करना होगा, क्योंकि यह प्रमाणित हो चुका है कि नक्सलियों का रिमोट कंट्रोल राष्ट्रविरोधी ताकतों के हाथ में है जो देश में अस्थिरता फैलाने का षड्यंत्र रचते हैं। ऐसे तत्वों के फिर से पनपने के पहले ही कुचलना होगा।[स्थानीय संपादक, झारखंड]
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