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ढल गए दिन हो गई शाम लेकिन अब तक न शहर में चल सकी मोनो रेल, सैर-सपाटे की ख्‍वाहिश में बैठे लोग

रांची में मोनोरेल चलाने की योजना अब तक बस कागजों तक ही सीमित रह गई है। इसे अभी तक धरातल पर उतारा नहीं जा सका है। साल 2015 में रघुवर दास की सरकार ने इसे चलाने की मंजूरी दी थी लेकिन बीते आठ सालों में कुछ भी काम नहीं हुआ। इसके बाद लाइट मेट्रो चलाने की योजना बनाई गई लेकिन इसका भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Fri, 27 Oct 2023 11:43 AM (IST)
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रांची में मोनो ट्रेन चलाने की योजना पर नहीं हुआ काम।
जागरण संवाददाता, रांची। रांची में मोनो रेल चलाने की योजना धरातल पर नहीं उतर सकी। आठ साल पहले 2015 में रघुवर दास की सरकार ने मोनो रेल चलाने की स्वीकृति दी थी, लेकिन इन आठ सालों में आठ कदम भी नहीं बढ़ सके।

डिवाइडरों के बीच बिछानी थी पटरी

सरकार की स्वीकृति के बाद मोनो रेल निर्माण कार्य को लेकर आइडीएफसी को परामर्शी चुना गया। पहले फेज में शहर के 14 किमी क्षेत्र में मोनो रेल चलाने की योजना बनाई गई। शहर में रातू रोड, मेन रोड, लालपुर, कांटाटोली, बिरसा चौक जैसे व्यस्त इलाकों में मोनो रेल चलाने की योजना थी।

इसके लिए यह योजना बनी कि जिन सड़कों पर यह रेल चलेगी, उन सड़कों को चौड़ा करने के बजाय डिवाइडरों के बीच खंभे खड़े किए जाएंगे। खंभों के ऊपर पटरी बिछाई जाएगी। स्टेशन भी सड़क के ऊपर ही बनाने की योजना थी।

कुल 14 किलोमीटर ट्रैक बिछाने का था काम

2015 में ही प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार के पास भेजा गया था। इसमें अनुमान लगाया गया था कि प्रति किमी 200 करोड़ रुपए खर्च होंगे। कुल 14 किलोमीटर ट्रैक बिछाना था और 14 किमी में 19 स्टेशन बनाए जाने थे, लेकिन इसके बाद यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई और फिर लाइट मेट्रो चलाने की योजना बनने लगी। इसके एक साल बाद ट्राम चलाने की योजना बनी, लेकिन तीनों योजना कागजों पर ही बनती रही।

सांसद ने पीएम से की थी मांग

2021 में रांची के सांसद संजय सेठ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात कर रांची में मोनो मेट्रो रेल चलाने की मांग की थी। इसके बाद क्या हुआ, पता नहीं चला। सांसद सेठ ने बताया कि रांची में इसकी संभावना है।

केंद्र की सूची में रांची भी है। इधर पता नहीं किए हैं, लेकिन जल्द सर्वे की उम्मीद है। रांची की बढ़ती आबादी को देखते हुए यह जरूरी है। हर दिन जाम की समस्या से भी निजात मिलेगी। हमें भविष्य को देखकर ही योजना बनानी है। आबादी भी बढेगी और शहर की सड़कों पर ट्रैफिक का लोड भी कम होगा।

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और अब बस चलाने की योजना

रांची नगर निगम की अभी शहर में चालीस बसें चलती हैं। हर बस 35 से 40 सीटर है। सिटी बस सुबह सात से संध्या सात बजे चलती है। दिन में एक बस चार से पांच ट्रिप चलती है।

अभी दो रूट पर चलती है एक रातू रोड से तुपुदाना और दूसरा मेन रोड से बिरसा चौक तक। शहर की आबादी भी पंद्रह लाख से अधिक है।

शहर में ऑटो करीब पंद्रह हजार चलते हैं। महिलाओं के लिए दो बस है गुलाबी रंग की। अब सरकार 244 बस शहर में उतारने वाली है।

शहर की सभी रूटों पर चलाने की योजना बना रही है। टेंडर भी हो गया है। अभी तक नागपुर की एकमात्र एजेंसी ने टेंडर भरा है।

बनने थे 19 स्‍टेशन

मोनो रेल में 14 किलोमीटर ट्रैक बिछाना था। 14 किमी में 19 स्टेशन बनना था। धुर्वा में तैयार होने वाली ग्रेटर रांची से कचहरी चौक तक। बीच में सीआरपीएफ कैंप, जगन्नाथपुर मंदिर, विधानसभा, एचईसी गेट, बिरसा चौक, हिनू चौक, डोरंडा, अनंतपुर, स्टेशन रोड आदि बनने थे।

लेकिन लाइट मेट्रो में नए विधानसभा परिसर से एचइसी, स्मार्ट सिटी, बिरसा चौक, हिनू, राजेंद्र चौक, सुजाता चौक, मेन रोड होते हुए कचहरी चौक तक योजना बनी। लेकिन मोनो रेल को केंद्र सरकार ने रांची के लिए अनुपयुक्त बताते हुए रद्द कर दिया था।

केंद्र का तर्क था कि जहां पर पीक आवर में प्रति घंटे 10000 लोग ट्रेवल नहीं करते, वहां ऐसी ट्रेन नहीं चलाई जा सकती। इसके बाद 2018 में ट्राम चलाने की बात उठने लगी। पर तीनों योजनाओं का हश्र एक ही रहा।

फाइलों में बंद हो गया लाइट मेट्रो रेल चलाने का प्रस्ताव

मोनो रेल चलाने की योजना फाइलों में ही बंद हो गई। इसके दो साल बाद 2017 में लाइट मेट्रो रेल का डीपीआर बन गया। नगर विकास विभाग ने मंजूरी के लिए इसे केंद्र सरकार के पास भेज दिया। विभाग के प्रधान ने तब बताया था कि केंद्र से मंजूरी मिलते ही आगे की कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।

इसका रूट भी बदल गया। नए विधानसभा परिसर से कचहरी चौक तक चलाने की बात की गई। 15 किमी लंबे इस लाइट मेट्रो रूट पर 4200 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान लगाया गया। इसमें 20 प्रतिशत राशि राज्य सरकार और 20 फीसदी राशि केंद्र सरकार वहन करेगी। शेष 60 प्रतिशत राशि वर्ल्ड बैंक से ली जाएगी।

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