ठंड ने रांची में बढ़ाई बेघरों की मुश्किलें, फुटपाथ पर कांपते हुए सोने को हैं मजबूर, रैन बसेरा का भी हाल बेहाल
इस ठिठुरती ठंड में रांची के बस स्टैंड रेलवे स्टेशन रांची रिम्स के बाहर व कई अन्य स्थानों पर लोग जमीन पर प्लास्टिक या बोरी बिछाते हुए कांपते हुए सोते नजर आ जाएंगे। एक तरफ रैन बसेरा का हाल बेहाल है दूसरी तरफ अलाव भी नहीं जल रहे हैं।
जयंतेय विकाश, रांची। राजधानी में लगातार कड़ाके की ठंड पड़नी शुरू हो गई है। मंगलवार को रात के 10 बजे शहर के रैन बसेरा की पड़ताल की गई। रिम्स, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन व अन्य स्थानों पर लोग ठंड में ठिठुरते हुए दिखे। रैन बसेरों में व्यवस्था नहीं है। जिम्मेदार प्रशासन की ओर से शहर में ठंड से बचने के लिए अलाव जलते कहीं नहीं नजर आ रहे हैं। फुटपाथ पर और दुकानों के सामने फर्श पर लोग प्लास्टिक के बोरे, चटाई बिछाकर खुद को किसी तरह ढंकते हुए नजर आए। प्रशासन ने लोगों को कंबल तक मुहैया नहीं कराया हैं। इन दिनों रिम्स और रांची रेलवे स्टेशन पर फर्श पर दर्जनों लोग सोकर रात काट रहे हैं। बता दें कि शहर में निगम के द्वारा 10 आश्रय गृह चलाया जा रहा है।
रिम्स में फर्श पर गुजर रही रात
रैन बसेरा में जगह न होने के कारण रिम्स ओपीडी के गलियारे में दर्जनों लोग फर्श पर ही चटाई बिछाकर सोने को मजबूर हैं। वहीं, रिम्स के रैन बसेरा में ठंड को देखते हुए व्यवस्था नहीं है। रैन बसेरा में घुसते ही फर्श पर एक आदमी सोया हुआ था। रैन बसेरा के रूम में लाइट तक नहीं है।
रैन बसेरा में केवल बेड है। बिछाने को न बिछावन दिया गया है और ना ओढ़ने को कंबल मुहैया कराया गया है। रैन बसेरा में ठहरने के लिए प्रत्येक लोगों से 50 रुपये चार्ज भी वसूला जाता है। वहीं, रिम्स के पास स्थित निगम के शेल्टर होम में भी लाइट की व्यवस्था नहीं है। एक ही बेड पर दो-दो लोग सो रहे हैं।
सड़काें पर ठिठुरते बुजुर्गों पर किसी का ध्यान नहीं
इधर, शहर के काली मंदिर के सामने बुजुर्गों पर भी किसी का ध्यान नहीं गया है। यहां एक बुजुर्ग महिला के साथ-साथ कई और बुजुर्ग सड़क किनारे ही सो रहे थे। ये लोग प्लास्टिक की बोरियों पर ठंड में सोते ठंड से लड़ते हुए नजर आए। वहींं, अल्बर्ट एक्का चौक के पास सड़क किनारे आधा दर्जन लोग बिना कंबल के सोए मिले।
शहर में महिला आश्रय गृह असुरक्षित
खादगढ़ा बस स्टैंड में पुरुष और महिलाओं के लिए 50 बेड का आश्रय गृह बनाया गया है। लेकिन महिला आश्रय गृह के दरवाजे पर ही असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है। जिस कारण महिलाएं यहां नहीं रहना चाहती। इसके साथ ही आश्रय गृह के दरवाजे पर बस लगा रहता है जिससे लोगों को आश्रय गृह के बारे में पता भी नहीं चलता।