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Mann Ki Baat: झारखंड के हीरामन की साधना को पीएम मोदी ने खूब सराहा, वजह आप भी जानिए...

Mann Ki Baat हीरामण ने 12 सालों की अथक मेहनत के बाद कोरवा भाषा का शब्‍दकोश तैयार किया है। पीएम मोदी ने मन की बात में बताया कि हीरामण ने इस शब्‍दकोश में घर-गृहस्‍थ में प्रयोग होने वाले शब्‍दों को अर्थ के साथ लिखा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Mon, 28 Dec 2020 07:19 AM (IST)
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Mann Ki Baat गढ़वा के रहने वाले हीरामण। फाइल फोटो
रांची, जेएनएन। Mann Ki Baat प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात में गढ़वा के पारा शिक्षक हीरामन कोरवा की भी चर्चा की। गढ़वा जिले के रंका प्रखंड के सिंजो गांव निवासी हीरामन गांव के ही प्राथमिक विद्यालय ङ्क्षसजो में ही पारा शिक्षक हैं। प्रधानमंत्री ने मन की बात में उनका जिक्र करते हुए कहा कि शहरों से दूर जंगलों और पहाड़ों में निवास करने वाली कोरवा जनजाति विलुप्ति की कगार पर है। उनके संरक्षण के प्रयास हो रहे हैैं।

ऐसे में हीरामन कोरवा ने अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान को बचाने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने 12 वर्षों की अथक मेहनत से विलुप्त हो रही कोरवा भाषा का शब्दकोश तैयार किया है। इस शब्दकोश में घर-गृहस्थी से लेकर  दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाले ढेर सारे शब्दों को अर्थ के साथ लिखा है। हीरामन ने जो कर दिखाया है वह देश के लिए मिसाल है।

प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में जिक्र किए जाने के बाद हीरामन को ढेर सारे लोगों ने बधाई दी। हीरामन कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में उनकी कोशिश का जिक्र कर उनका हौसला बढ़ाया है। मैैं उन्हें धन्यवाद देता हूं। रविवार को कई लोगों ने कोरवा शब्दकोष को देखने-पढऩे की इच्छा जताई है।

हीरामन बताते हैैं कि इस शब्दकोश के माध्यम से कोरवा भाषा को संरक्षित करने व समृद्ध करने में काफी मदद मिलेगी। कोरवा भाषा में गांव को ऊंगा, राख को तोरोज, खाना खाएंगे को लेटे जोमाउह और आग को मड़ंग कहते हैं। यह शब्दकोश कोरवा भाषा के ऐसे ही शब्दों से आम लोगों का परिचय कराता है।

हीरामन कहते हैं बचपन से ही अपनी भाषा के प्रति प्रेम रहा। जबसे मैंने होश संभाला तभी से कोरवा भाषा के शब्दों को डायरी में लिखकर सुरक्षित करने लगा। बाद में ने निश्चय किया कि कोरवा भाषा को संरक्षित करेंगे। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई यह इच्छा और भी प्रबल होती गई। बाद में शब्दकोश लिखना शुरू किया तो इसे पूरी तरह तैयार करने में 12 वर्ष लग गए।

जब उन्होंने डायरी में सहेजे शब्दों का शब्दकोश बनाने की बात सोची तो इसमें आर्थिक तंगी आड़े आ गई। पलामू की मल्टी आर्ट एसोसिएशन ने  संस्था ने शब्दकोश प्रकाशित कराने में आर्थिक मदद की। कुल 50 पन्नों के इस शब्दकोश में कोरवा भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्द, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, फसलों, शाक-सब्जियों, रंग, दिन, महीने, आहार, अनाज, पूजा-पाठ, शादी-विवाह, जन्म, मृत्यु, पोशाक, परंपरा समेत घर-गृहस्थी से जुड़े कई शब्द शामिल हैं।

हीरामन के अनुसार, गांव के बुर्जुगों से बातचीत के दौरान मिले शब्दों को संकलित कर शब्दकोश तैैयार किया है। इस शब्दकोश का लोकार्पण हाल ही में एक दिसंबर को सांसद विष्णुदयाल राम ने किया था। उन्होंने ही प्रधानमंत्री तक इसकी सूचना पहुंचाने का आश्वासन दिया था। झारखंड में कोरवा जनजाति की आबादी महज छह हजार है। पलामू के रामगढ़, छतरपुर व गढ़वा के भंडरिया, रंका प्रखंड के सुदूर गांवों में ये निवास करते हैं। इनके पूर्वज छत्तीसगढ़ से आकर झारखंड में बसे थे।

पीएम मोदी ने बताया कि कोरवा जनजाति की आबादी महज 6 हजार है। यह समुदाय शहरों से दूर पहाड़ों और जंगलों में निवास करती है। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान का यह 19वां मन की बात है। आज 27 दिसंबर का मन की बात इस साल 2020 के आखिरी मन की बात थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महीने के आखिरी रविवार को मन की बात कार्यक्रम के माध्‍यम से आम जनता से जुड़ते हैं।

गांव में पारा शिक्षक हैं हीरामण

हीरामण प्राथमिक विद्यालय सिंजो में पारा शिक्षक हैं। उनका कहना है कि शब्दकोष के तैयार हो जाने के बाद कोरवा भाषा को संरक्षित एवं समृद्ध करने में मदद मिलेगी। कोरवा भाषा में गांव को ऊंगा, राख को तोरोज, खाना खाएंगे को लेटे जोमाउह, आग को मड़ंग कहते हैं। हीरामन कहते हैं कि शब्दकोष कोरवा भाषा के ऐसे ही शब्दों से आम लोगों का परिचय कराता है।

उन्होंने कहा कि जब से उन्होंने होश संभाला है, तब से कोरवा भाषा के शब्दों को एक डायरी में लिखकर सुरक्षित करने का प्रयास शुरू कर दिया। समय के साथ लोग कोरवा भाषा को भुलने लगे। यह उन्हें बचपन से ही कटोचना शुरू कर दिया। यहीं से उनके मन में कोरवा भाषा को संरक्षित करने की भावना जगी। वह आज भी जारी है। जैसे-जैसे इनकी उम्र बढ़ती गई, उनकी यह इच्छा और भी प्रबल होती गई।

50 पन्‍नों का है शब्‍दकोश

इनकी प्रारंभिक शिक्षा उसी विद्यालय में हुई जिसमें आज वे पारा शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि 12 वर्ष तक एक डायरी में सहेजे कोरवा भाषा के शब्दों का शब्दकोष बनाने की जब सोची तब इसमें आर्थिक तंगी आड़े आ गई। ऐसे में उनका सहयोग पलामू के मल्टी आर्ट एसोसिएशन ने किया और इस संस्थान ने कोरवा भाषा के शब्दकोष को छपवाने में हीरामण को आर्थिक मदद की।

कुल 50 पन्नों के छपे इस शब्दकोष में कोरवा भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्द, पशु-पक्षियों से लेकर सब्जी, रंग, दिन, महीना समेत घर-गृहस्थी से जुड़े शब्द शमिल हैं। प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में अपना जिक्र किए जाने की जानकारी मिलने के बाद हीरामण कोरवा अचानक से ही जिले में चर्चा का विषय बन गए हैं।

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