Ranchi News: कक्षा व पाठ्यक्रम एक... लेकिन क्यों 10 गुना हो जाती है किताबों की कीमत, शिक्षा के नाम पर चल रहा 'काला खेल'
किताबों की कक्षा एक और पाठ्यक्रम भी एक लेकिन पुस्तकों की कीमत अलग-अलग है और इसका कारण प्रकाशन है। यहां शिक्षा नहीं प्रकाशन की कीमत चुका कर ही ज्ञान का प्रकाश मिलेगा और ऐसे में अगर स्कूल अलग है तो मर्जी भी अपनी-अपनी है। रांची में शिक्षा के नाम पर किस दर्जे का काला व्यापार चल रहा है इस बात का अंदाजा किताबों की बढ़ी कीमत से लगा सकते हैं।
जागरण संवाददाता, रांची। एक ही कक्षा और एक ही पाठ्यक्रम मगर पुस्तकों की कीमत अलग-अलग। वजह है प्रकाशन। शिक्षा नहीं, प्रकाशन की कीमत चुका कर ही ज्ञान का प्रकाश मिलेगा। स्कूल अलग है तो मर्जी भी अपनी-अपनी है।
प्रत्येक स्कूल में एनसीईआरटी की पुस्तकें पढ़ाने का नियम है भले हो, मगर स्कूल प्रबंधक पैसे की उगाही के लिए दूसरे पब्लिकेशन की पुस्तकें पढ़ाते हैं। जहां केंद्रीय विद्यालय में पुस्तक की कीमत 600 रुपये है तो वहीं निजी स्कूल में उसी पुस्तक की कीमत 6000 रुपये से अधिक है।
शिक्षा के नाम पर हो रहा व्यापार
इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिक्षा के नाम पर शहर में किस दर्जे का व्यापार चल रहा है। पुस्तकों से भारी है फीस और उससे भी भारी है महंगी पुस्तक का बोझ। राजधानी में सीबीएसई-आइसीएससी की किताबों के मूल्य में इस वर्ष लगभग 30 प्रतिशत का इजाफा किया गया है। इस इजाफे से आम आदमी की कमर टूट गई है।इस कारण लोगों का बजट बिगड़ गया है। दूसरी ओर, केंद्रीय विद्यालय में पुस्तकों का बोझ ना के बराबर है। विद्यालय प्रशासन ने बताया कि स्कूल में सिर्फ एनसीईआरटी की पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं। केंद्रीय विद्यालय में जहां कक्षा प्री-नर्सरी की पुस्तकों की कीमत लगभग 500 रुपये है।
किताबों की कीमत
वहीं, आईसीएससी बिशप गल्र्स हाई स्कूल के प्री-नर्सरी में किताबों की कीमत 2890 रुपये है। वहीं, दसवीं कक्षा के लिए एक विद्यार्थी को पुस्तकों पर 6847 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। सबसे महंगी पुस्तक, 8872 रुपये की कक्षा छठी के लिए है।पुस्तक पथ में नहीं मिलती सारी किताबें
रांची के अपर बाजार पुस्तक पथ पर सभी स्कूल, कालेज की किताबे आसनी से मिलती हैं। फिर भी सीबीएसई-आईसीएसई स्कूलों की सारी किताबें उपलब्ध नहीं है। किताब दुकानदारों ने बताया कि स्कूल वाले अब एजेंसी को टेंडर देकर किताब खरीद-ब्रिकी का खेला खेल रहे हैं।
इसमें लाखों रुपये का कमिशन स्कूल प्रबंधक को जाता है। पुस्तक पथ में अगर किताब मिलने लगेगी तो यहां हर दुकान में प्रतिस्पर्धा है, जिसके कारण कम कीमत पर ही विद्यार्थियों को सभी किताब मिल जाएगी। तब कमिशन पर विराम लग जाता।
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