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झारखंड में मांग के मुकाबले मछलियों का कम हो रहा उत्‍पादन, आंध्र व बंगाल से मंगाई जा रहीं मछलियां; यह सेहत के लिए खतरनाक

रांची सहित पूरे झारखंड में मांग के अनुरूप मछलियों का उत्‍पादन नहीं हो पा रहा है जिसके चलते यहां आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल जैसे राज्‍यों से मछलियां मंगाई जा रही है और खतरा यहीं है क्‍योंकि बाहर से मंगाई जा रहींं मछलियों को ताजा रखने के लिए उन पर केमिकल का छिड़काव किया जाता है जो सेहत के लिए काफी खतरनाक है।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Wed, 22 Nov 2023 09:49 AM (IST)
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झारखंड में मछलियों की मांग से उत्पादन कम, आंध्र से मंगाई जा रही मछलियां।
अनुज तिवारी, रांची। जिले व राज्य में मांग के अनुरूप मछली का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। यहां पर आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल से मछली मंगाई जाती है। इससे यहां की मांग पूरी होती है। सस्ता होने की वजह से आंध्र की मछलियों की खपत राज्य में अधिक है। लेकिन आंध्र की मछलियां रसायन से संरक्षित करके यहां पहुंच रही हैं। सेहत के लिए इसका सेवन खतरनाक है।

राज्‍य में मछली उत्‍पादन का लक्ष्‍य अधूरा

मछली उत्पादन में राज्य लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहा है। राज्य में सलाना 2.70 लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन की जरूरत है। इसमें से करीब 2.10 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन झारखंड में होता है।

यानी हर साल 60 हजार मीट्रिक टन मछली बाहर से आती है। राजधानी रांची में 12 हजार मीट्रिक टन मछली की खपत हर साल है। राज्य व जिले में आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल से मछलियां मंगाई जा रही है।

पांच सालों में मछलियों की आवक में गिरावट

हालांकि पिछले पांच वर्षों में मछलियों की आवक में गिरावट दर्ज की गई है, जिसका मुख्य कारण राज्य के युवाओं को मछली पालन के स्वरोजगार से जोड़ना माना जा रहा है। इससे स्थिति में ममूली सुधार आया है।

विभाग के अनुसार पहले हर दिन करीब 20 ट्रक दूसरे राज्यों से मछली आती थी, अब हर दिन करीब आठ से 10 ट्रक आ रही है।

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ऐसे भेजते हैं मछलियां

मछलियों को दूसरे राज्यों में भेजने से दो-तीन दिन पहले उनका भोजन बंद कर दिया जाता है। इससे उनका पेट पूरी तरह से खाली हो जाता है। इसके बाद इन मछलियों को बर्फ के साथ बाक्स में बंद कर भेज दिया जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तरह से मछलियां सड़ती या गलती नहीं हैं। इससे बैक्टेरिया नहीं पनपते हैं। इसी मौके पर फार्मेलिन केमिकल का प्रयोग किया जाता है।

बाक्स में फार्मेलिन का छिड़काव

दूसरे राज्यों से लाई जाने वाली मछलियों को सुरक्षित रखने के लिए बर्फ के बाक्स में फार्मेलिन का छिड़काव किया जाता है। जिससे मछलियां अधिक समय तक फ्रेस रहें। यह सेहत के लिए खतरनाक है। स्थानीय मछलियों में रसायन नहीं लगाया जाता है।

इस कारण से बिकती हैं बाहर की मछलियां अधिक

दूसरे राज्यों से आने वाली मछलियां लोकल की तुलना में काफी सस्ती होती हैं। यहां के किसान सस्ते दर पर मछलियों को नहीं बेच पाते हैं। इससे बाहर से आने वाली मछलियां अधिक बिकती हैं। यह मछलियां आठ से 10 दिनों तक सुरक्षित रहती हैं।

खतरनाक है फार्मेलिन

रिम्स के मेडिसिन विभाग के डा. सीबी शर्मा बताते हैं कि फार्मेलिन जहरीला रसायन है। इसके निरंतर सेवन से अस्थमा, कैंसर, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया, अंधापन, लीवर, फेफड़े और हृदय से जुड़ी समस्या हो सकती है। गर्भवती व बच्चों पर बुरा असर हो सकता है।

2023-24 के लिए मछली उत्पादन का लक्ष्य 3.30 लाख मीट्रिक टन रखा गया है। इस वर्ष अक्टूबर तक 1.51 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन किया जा चुका है। मार्च तक लक्ष्य प्राप्त किया जाएगा। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है। लगातार मत्स्य पालन को लेकर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है-एचएन द्विवेदी, निदेशक, मत्स्य विभाग।

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