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Raghubar Das: क्या झारखंड की सियासत में वापसी करेंगे रघुवर दास, हिमंत सरमा की मुलाकात से अटकलें तेज

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास आगामी विधानसभा चुनाव से दूर रहेंगे। हालांकि उनके वापसी की हवा भी उड़ती रहती है। फिलहाल वह ओडिशा के राज्यपाल हैं। ऐसे में वह राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकते। झारखंड विधानसभा चुनाव से उनकी यह दूरी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। हाल ही में हिमंत सरमा से मुलाकात के बाद वापसी की अटकलें तेज हो गई हैं।

By Pradeep singh Edited By: Mohit Tripathi Updated: Sun, 29 Sep 2024 08:42 PM (IST)
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रघुवर दास की राजनीति में वापसी की चर्चा तेज। (फाइल फोटो)
प्रदीप सिंह, रांची। 2014 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद लगातार पांच साल झारखंड के मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास आगामी विधानसभा चुनाव से चुनावी राजनीति से दूर रहेंगे। ओडिशा का राज्यपाल होने के नाते वे सक्रिय रूप से राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकते। इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है।

रघुवर दास की सक्रियता नहीं होने से उनके समर्थकों में घोर निराशा भी है। इसी वजह से उनपर राज्य की सक्रिय राजनीति में वापसी का भी काफी दबाव है।

राज्य से उनके समर्थक बड़ी संख्या में इन दिनों उनसे मुलाकात के लिए भुवनेश्वर स्थित राजभवन का भी रुख कर रहे हैं। अंदरुनी बातचीत में रघुवर दास सबकी भावनाओं से अवगत होते हैं।

क्या वापसी करेंगे रघुवर दास

कुछ माह पूर्व नई दिल्ली में पीएम नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद यह चर्चा जोरों पर भी थी कि उनकी राज्य की राजनीति में फिर से वापसी हो सकती है।

हाल ही में असम के सीएम और झारखंड में भाजपा के चुनाव सह प्रभारी हिमंत बिस्व सरमा ने उनसे भुवनेश्वर जाकर मुलाकात की तो एक बार फिर इन अटकलों को हवा मिली। इस मुलाकात के मायने-मतलब भी निकाले जा रहे हैं। इसमें उनके समर्थकों को साधने का संदेश है।

ओबीसी समुदाय में रघुवर दास की अच्छी पकड़

ओबीसी समुदाय की राज्य में बड़ी आबादी है और इसका झुकाव रघुवर दास की तरफ रहा है। इसमें प्रभावी तेली-साहू समुदाय सबसे अधिक 22 से 24 प्रतिशत तक है। यह समुदाय भाजपा का परंपरागत वोटर रहा है।

रघुवर दास के समर्थकों का कहना है कि एक नैरेटिव बनाकर उन्हें राज्य की राजनीति से दूर किया गया। पार्टी से जुड़े ऐसे कई नेता हैं, जो अतीत में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं और उनके कार्यकाल पर भी सवाल उठते रहे हैं।

ऐसे में उन्हें पूरी तरह अलगथलग करने का गलत संदेश जा रहा है। रघुवर दास ने कभी दलीय मर्यादा की सीमा नहीं लांघी। उन्हें चुनाव से दूर करने से समर्थकों में निराशा स्वाभाविक है।

परंपरागत सीट पर तालमेल भी असहज करने वाली

रघुवर दास के समर्थकों के लिए यह स्थिति भी असहज करने वाली है कि उनके परंपरागत जमशेदपुर पूर्वी सीट पर चिर प्रतिद्वंद्वी सरयू राय की दावेदारी एनडीए गठबंधन के तहत है।

राजनीति के चतुर खिलाड़ी सरयू राय ने जदयू में शामिल होकर भाजपा पर दबाव बनाने में कामयाबी हासिल की है।

भाजपा से बगावत कर सरयू राय ने पिछला विधानसभा चुनाव जमशेदपुर पूर्वी सीट से लड़कर जीत हासिल की थी। रघुवर दास इस सीट से लगातार पांच बार निर्वाचित हुए हैं।

ऐसी परिस्थिति में तालमेल के तहत यह सीट जदयू के खाते में जाने की अधिक संभावना से उनके समर्थकों की नाराजगी बढ़ सकती है।

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