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राजा राममोहन राय विलियम डिगबी के रहे निजी दीवान, अंग्रेज 'साहब' के सामने न खड़े होने की शर्त पर की थी नौकरी

भारत के समाज सुधारक राजा राम मोहन राय का जन्म आज ही के दिन 22 मई साल 1772 में हुआ था। उन्‍होंने समाज में व्‍याप्‍त कुरीतियों को मिटाने में अपना अहम योगदान दिया है। राजा राममोहन राय ने ही सती प्रथा को खत्‍म किया था।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Mon, 22 May 2023 05:16 PM (IST)
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आज महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय की जयंती है।
संजय कृष्ण, रांची। Raja Rammohan Roy Birth Anniversary: राजा राममोहन राय आज के दिन ही 22 मई को पं बंगाल के हुगली जिले के राधानागर गांव में जन्मे थे। भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत अपने समाज सुधार आंदोलन से पहले रामगढ़ में नौकरी कर चुके थे।

बेरोजगार राममोहन को मिला था पुराने मित्र का सहारा

पहले वे 1803 में वुडफोर्ड के दीवान के रूप में मुर्शिदाबाद में रहे। 1805 के अगस्त में वुडफोर्ड बीमार पड़ गए और वे स्वदेश चले गए तो राममोहन बेरोजगार हो गए। उन्हें अब नौकरी की जरूरत थी। तभी उनके पुराने मित्र विलियम डिगबी ने राममोहन को अपने निजी दीवान के पद पर ले लिया। राममोहन संग उनकी दोस्‍ती  कलकत्ते में रहते हुए हुई थी। उन दिनों हजारीबाग जिले का सदर मुकाम रामगढ़ में डिगबी मजिस्ट्रेट के पद पर आसीन थे। 

राममोहन के मन में दोस्‍त ने छोड़ी थी अमिट छाप

डिगबी के साथ-साथ वे रामगढ़ से जसौर, वहां से भागलपुर और फिर वापस जसौर आए और अंत में 1809 में रंगपुर आए। यहां डिगबी कलक्टर पद पर पदोन्नत होकर आए। डिगबी के साथ राममोहन का यह निकट का संपर्क राममोहन के जीवन और विचारों के गठन में काफी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

अंग्रेज 'साहब' के सामने खड़े न रहने की राममोहन की थी जिद

राममोहन के बारे में लिखते हुए मोण्टगोमरी मार्टिन ने कोर्ट जर्नल में लिखा था कि राममोहन ने डिगबी के अधीन काम लेते समय शर्त रखी थी कि वे दूसरे कर्मचारियों की तरह 'साहब' के सामने पेश होते समय खड़े नहीं रहेंगे जैसा कि उन दिनों नियम था। डिगबी ने राममोहन के साथ अधीनस्थ कर्मचारी के रूप में कभी व्यवहार नहीं किया। वे हमेशा उनको एक परम मित्र का सम्मान देते थे।

दोस्‍त डिगबी ने ही वेस्‍टर्न कल्‍चर से राममोहन को कराया था रूबरू

कुछ विद्वानों के अनुसार वस्तुतः राममोहन को खोज निकालने का श्रेय डिगबी को ही जाता है, जिन्होंने राममोहन को हमेशा उत्साहित किया और पश्चिम जगत के विचार, दर्शन और बुद्धिवाद से राममोहन का परिचय कराया।

सन् 1805 में राममोहन ने डिगबी के अधीन नौकरी आरंभ की थी और डिगबी के साथ-साथ हजारीबाग जिले के रामगढ़, भागलपुर, जसौर और बाद में रंगपुर में रहे। डिगबी ने थोड़े समय के लिए ही मजिस्ट्रेट के पद पर काम किया।

ईस्‍ट इंडिया कंपनी में भी राममोहन कर चुके हैं काम

यहीं पहले पहल राममोहन ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी की। यहां तीन महीने के लिए फौजदारी अदालत में 'सरिस्तेदार' यानी रजिस्ट्रार के पद पर काम किया। जसीर और भागलपुर में राममोहन कंपनी की नौकरी नहीं, बल्कि डिगबी साहब के निजी मुंशी के रूप में काम करते रहे।

वे 1805 से 1809 तक काम किया। हजारीबाग में राजा राममोहन राय का आवास था। रामगढ़-चतरा-हजारीबाग तब एक ही था। इसके बाद वे रंगून में 1815 तक रहे।

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