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Ram Mandir: राम काज के लिए छोड़ दी बैंक की सरकारी जॉब, नौकरी में रहते हुए 1991-92 में अयोध्या की कारसेवा में लिया था भाग

भगवान राम का काम करने की ऐसी लगन लगी कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआइ) में वरीय सहायक की नौकरी तक छोड़ दी। पहले तो यह किया कि भगवान राम का काम करने में बाधा नहीं आए इसलिए रांची से बाहर पोस्टिंग नहीं ली। इस कारण प्रोन्नति नहीं मिली। बाद में 17 वर्ष की नौकरी रहते हुए पूरा समय हिंदू समाज के लिए लगाने हेतु 2001 में नौकरी छोड़ दी।

By Jagran NewsEdited By: Prateek Jain Updated: Sun, 07 Jan 2024 05:00 AM (IST)
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राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर रांची में पूजित अक्षत वितरितक कर लोगों को निमंत्रण देते वीरेंद्र विमल। फोटो- जागरण

संजय कुमार, रांची। भगवान राम का काम करने की ऐसी लगन लगी कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआइ) में वरीय सहायक की नौकरी तक छोड़ दी। पहले तो यह किया कि भगवान राम का काम करने में बाधा नहीं आए इसलिए रांची से बाहर पोस्टिंग नहीं ली।

इस कारण प्रोन्नति नहीं मिली। बाद में 17 वर्ष की नौकरी रहते हुए पूरा समय हिंदू समाज के लिए लगाने हेतु 2001 में नौकरी छोड़ दी। नौकरी में रहते हुए भी विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के विभिन्न दायित्वों में रहे। 1991 और 92 में कारसेवकों का नेतृत्व करते हुए अयोध्या गए।

यह हैं विहिप के क्षेत्र मंत्री वीरेंद्र विमल। वर्तमान समय में झारखंड और बिहार का प्रवास करते हैं। अभी पूजित अक्षत घर घर बांटने में लगे हैं और 15 जनवरी के बाद व्यवस्था में लगने के लिए अयोध्या जाने को तैयार हैं।

1980 में लगी थी बैंक में नौकरी

वीरेंद्र विमल ने बताया कि 1980 में बैंक की नौकरी लग गई थी। शुरू से ही भगवान राम का काज करने के प्रति उत्साह था। 1981 में वह विश्व हिंदू परिषद के सदस्य बन गए और 1987 से सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। फिर अलग-अलग दायित्वों का निर्वहन करते रहे।

नौकरी करते हुए भी उन्होंने यह नहीं देखा कि रामकाज करने के दौरान यदि कोई परेशानी होती है तो नौकरी चली जाएगी या रहेगी। 1989 में रामशिला पूजन में बढ़ चढ़कर भाग लिया।

1990 में जो कार सेवा हुआ, उस दौरान रांची में रहकर ही विरोध प्रदर्शन किया। 1991 में प्रतीकात्मक कार सेवा अयोध्या में हुआ उसमें भाग लेने का मौका मिला।

100 लोगों की टोली का नेतृत्व किया

विमल कहते हैं,

6 दिसंबर 1992 का वो दिन याद है जब कारसेवकों ने जर्जर विवादित ढांचे को तीन से चार घंटे में ढाह दिया था। उस कारसेवा में रांची के 100 लोगों की टोली का मुझे प्रमुख बनाया गया था। गंगा प्रसाद यादव जी साथ में थे। हम लोग रांची से गोमो ट्रेन से गए।

फिर गोमो से अयोध्या जी का टिकट नहीं लेकर उसके आसपास के स्टेशनों का लिया। अयोध्या जी का टिकट लिए पैसेंजरों को यूपी के नजदीक बिहार के स्टेशनों पर उतार लिया जा रहा था। वहां तीन दिसंबर को पहुंच लोगों के ठहरने की व्यवस्था घरों में की गई थी।

हम लोग अयोध्या में स्थित रांची निवास में ठहरे थे। चार दिसंबर को अखबार पर सोया था। फिर अगले दिन एक बोरा मिला उस पर सोया। छह दिसंबर को कार सेवा के लिए टोली चली थी।

विवादित ढांचे को चारों तरफ से जिस पाइप से घेरा गया था, उसे कार सेवकों के समूह ने उखाड़ दिया। पाइप से दीवार को लोग ढहाने लगे। तीन-चार घंटे में ही वह विवादित ढांचा ध्वस्त हो गया। फिर उस रात से ही वहां पर मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया गया। सात दिसंबर की सुबह तक अस्थाई मंदिर बनकर तैयार हो गया।

आरा गेट पर ट्रेन का सिग्नल डाउन कर उतार लिया गया

एक बहुत सुखद अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा कि अयोध्या से रांची स्टेशन पहुंचने को थे तो आरा गेट पर राजदेव यादव नामक व्यक्ति ने ट्रेन का सिग्नल डाउन कर हमलोगों को रोक लिया और उतरने को कहा। ऐसा क्यों, बोले हम लोग आज यही स्वागत करेंगे।

हुआ यह कि‍ रांची स्टेशन पर स्वागत करने के लिए लोग पहुंचे थे। वहां पुलिस भी मौजूद थी। पुलिस से बातचीत के दौरान पता चला कि पुलिस अयोध्या से लौटने वाले लोगों को गिरफ्तार करने के लिए पहुंची है। उन्हीं पुलिसवालों में से किसी ने कहा कि यदि स्वागत करना है तो आप रांची स्टेशन से पहले ही उनको उतार लीजिए। आरा गेट पर हम लोग उतर गए। लोगों ने स्वागत किया।

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