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Ranchi News: इसाई मिशनरियों के प्रलोभन में आ रहे लोगों को सही दिशा दिखा रहे मेघा उरांव

Ranchi News देश को मिली आजादी से पहले की बात हो या फिर आज जब हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं। वक्त ने एक लंबा फासला तय कर लिया है। तब और आज के स्थिति की तुलना भी हम नहीं कर सकते हैं।

By Madhukar KumarEdited By: Updated: Tue, 23 Nov 2021 08:12 PM (IST)
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Ranchi News: इसाई मिशनरियों के प्रलोभन में आ रहे लोगों को सही दिशा दिखा रहे मेघा उरांव

रांची { संजय कुमार} देश को मिली आजादी से पहले की बात हो या फिर आज, जब हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं। वक्त ने एक लंबा फासला तय कर लिया है। तब और आज के स्थिति की तुलना भी हम नहीं कर सकते हैं, एक तरफ जहां लोग हाईटेक हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं, धर्म और संस्कृति के नाम पर लोगों को बहला-फुसलाकर धर्मांतरण का खेल, खेल रहे हैं।

इसाई मिशनरियों द्वारा जनजातीय समाज के लोगों के गरीब और भोले-भाले लोगों के धर्मांतरण की खबरें लगातार आती रहती है। खासकर, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडीशा में रहने वाले जनजातीय लोग ऐसे लोगों के प्रलोभन में आसानी से आ जाते हैं। लेकिन आज भी ऐसे लोग समाज में मौजूद हैं, जो धर्मांतरण के खेल को रोकने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे ही एक समाजसेवी का नाम है मेघा उरांव, जिन्होंने इसे रोकने का बीड़ा उठा है।

झारखंड में जनजातीय समाज के भोले-भाले व गरीब लोगों का ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतांतरण कराने का काम वर्षों से जारी है। इस काम को रोकने में कई लोग व संगठन लगे हैं। मेघा उरांव भी इनमें से एक हैं। मेघा जनजातीय समाज में फैले अंधविश्वास और धर्मांतांतरण को रोकने के लिए वर्षों से काम कर रहे हैं। डायन बिसाही और नशापान के प्रति भी लोगों को जागरूक करते हैं। उन्होंने अब तक जहां 200 से अधिक लोगों को सरना-सनातन समाज में वापसी कराई है, वहीं ग्रामीणों को धर्म व संस्कृति के प्रति जागरूक करने का लगातार अभियान चलाते रहे हैं।

जनजातीय समाज के गरीब परिवार की लड़कियों की शादियां कराने में भी उनकी अहम भूमिका है। संत ईश्वर फाउंडेशन और राष्ट्रीय सेवा भारती ने उन्हें इसी सेवा कार्यों के लिए रविवार को नई दिल्ली में संत ईश्वर सम्मान से सम्मानित किया है।

समाज का भी मिलता है पूरा सहयोग

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत और केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा के हाथों सम्मान प्राप्त करने के बाद मेघा उरांव बेहद खुश हैं। उन्होंने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा कि झारखंड में जनजातीय समाज में बड़े पैमाने पर हो रहे धर्मांतांतरण से पीड़ित होकर, मैंने तय किया कि धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए लोगों को जागरूक करने का काम करूंगा। इसके लिए पिछले 20 वर्षों से प्रयास कर रहा हूं। झारखंड सहित ओडिशा, बिहार व छत्तीसगढ़ के जनजातीय बहुल वैसे इलाकों में जो मिशनरियों से प्रभावित हैं, वहां जाकर लोगों को समझाने का काम करता हूं।

मेरे रास्ते में परेशानियां भी आती हैं।

ईसाई मिशनरियों से जुड़े लोग मेरे काम में रुकावट डालने का काम करते हैं। परंतु मेरे काम में झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति के सदस्यों के साथ-साथ दूसरे सामाजिक संगठनों का भी पूरा सहयोग मिलता है। पत्नी फलमैती उरांव तो कहती है, परिवार चलाने के लिए मैं मजदूरी भी कर लूंगी, परंतु अपनी धर्म, संस्कृति की रक्षा के लिए जिस मार्ग पर आप चल रहे हैं उससे पीछे मत हटना। अब इसका प्रभाव भी दिखने लगा है। जनजातीय समाज के लोग अब सरना-सनातन समाज के बारे में समझने लगे हैं। अब मिशनरियों के प्रलोभन में आने से बच रहे हैं।

जहां जरूरत पड़ती है जाने से नहीं हिचकते हैं

हाल ही में रांची जिला के कुटे गांव के मर्कुस तिर्की से मंगलेश्वर तिर्की और मरियम तिर्की से मीरा तिर्की बने परिवार का कहना है कि मिशनरियों के प्रलोभन में आकर अपना धर्म छोड़ दिया था। मेघा उरांव के प्रयासों से मैंने घर वापसी करने का निर्णय लिया। मेघा जनजातीय समाज के लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन के समय उन्होंने लोगों की काफी मदद की थी। आने वाले समय में और बेहतर परिणाम दिखेगा।

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