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रांची विवि की कुलपति बोलीं- ऋग्वेद से सिद्ध होती है आयुर्वेद की प्राचीनता

रांची विवि की कुलपति प्रो. कामिनी कुमार ने कहा कि पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम् पुस्तक ऋग्वेद है। ऋग्वेद-संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण हैं। चरक सुश्रुत काश्यप आदि ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं।

By Vikram GiriEdited By: Updated: Mon, 21 Jun 2021 11:07 AM (IST)
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रांची विवि की कुलपति बोलीं- ऋग्वेद से सिद्ध होती है आयुर्वेद की प्राचीनता। जागरण

रांची, जासं। रांची विवि की कुलपति प्रो. कामिनी कुमार ने कहा कि पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम् पुस्तक ऋग्वेद है। ऋग्वेद-संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण हैं। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है। वह रांची वीमेंस कॉलेज के संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय तरंग संगोष्ठी के उद् घाटन के मौके पर बोल रही थी। इसका विषय सांप्रतिक परिप्रेक्ष्य में आयुर्वेद की उपादेयता है। कॉलेज की प्राचार्या डा. शमशुन नेहार ने कहा कि आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह चिकित्सा विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। आयुर्वेद भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान का संबंध मानव शरीर को निरोग रखने तथा आयु बढ़ाने से है।

आयुर्वेद आयु का विज्ञान

संस्कृत विभागाध्यक्ष डा. उषा किरण ने कहा कि आयुर्वेद के ग्रन्थ तीन शारीरिक दोषों वात, पित्त, कफ के असंतुलन को रोग का कारण मानता है। आयुर्वेद को त्रिस्कन्ध भी कहा जाता है। रांची विवि के रजिस्ट्रार डा. मुकुंद चंद मेहता ने कहा कि आयुर्वेदीय चिकित्सा विधि सर्वांगीण है। यह आयु का विज्ञान है। रांची विवि के सीसीडीसी डा. राजेश कुमार ने कहा कि आयुर्वेदिक औषधियों के अधिकांश घटक जड़ी-बूटियों, पौधों, फूलों एवं फलों आदि से प्राप्त की जाती है।

डा. सुरेश कुमार अग्रवाल ने कहा कि दिनचर्या, रात्रिचर्या एवं ऋतुचर्या का पालन करना हमें रोगमुक्त रख सकता है । प्रोे. गंगाधर पंडा ने कहा कि समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में एक धनवंतरि देव विष्णु के अंश और आर्युवेद के जनक माने जाते हैं । डा. विजय शंकर द्विवेदी ने कहा यद्यपि आयुर्वेद के दर्शन हमें ऋग्वेद के प्रथम एवं दशम मण्डल में ही प्राप्त हो जाते हैं, किन्तु जितने विस्तार से यह अथर्ववेद में पाया जाता है उतना किसी अन्य वेद में नहीं। मौके पर डा. चंद्रकांत शुक्ला ने भी अपनी बातें रखी। कार्यक्रम का संचालन डा. शैलेश कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. कुमारी उर्वशी ने किया।

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