Ranchi News: लाउडस्पीकर बजाकर हंगामा करने वालों की अब खैर नहीं, झारखंड हाईकोर्ट ने दिया ये सख्त आदेश
झारखंड में अब तेज आवाज में लाउड स्पीकर और डीजे बजाने वालों कड़ी कार्रवाई होगी। झारखंड हाईकोर्ट ने इसे लेकर गाइडलाइन जारी किया है। झारखंड हाईकोर्ट ने सख्त निर्देश देते हुए कहा कि अगर नियम का पालन नहीं होगा तो कड़ी कार्रवाई होगी। साथ ही अस्पताल और नर्सिंग होम के आस-पास भी लाउड स्पीकर बजाने पर रोक लगा दी है।
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने ध्वनि प्रदूषण पर रोक के लिए सरकार को सख्ती से कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। अदालत ने रात दस बजे से सुबह छह बजे तक बैंड-बाजा और लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि त्योहार पर ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमावली के तहत रात दस बजे से 12 बजे तक इसमें छूट दी जा सकती है। रात 12 बजे के बाद इसके इस्तेमाल पर रोक रहेगी।
अस्पतालों के 100 मीटर के दायरे में घोषित होगा साइलेंट जोन
अदालत ने अस्पतालों और नर्सिंग होम के 100 मीटर के दायरे को साइलेंट जोन घोषित करने का भी निर्देश दिया है। अदालत ने कहा है कि सार्वजनिक स्थानों पर बजने वाले ध्वनि विस्तारक यंत्र 10 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए। निजी स्थानों के लिए यह सीमा पांच डेसिबल ही रहेगी।
अदालत ने राज्य के सभी उपायुक्तों को इस संबंध में निर्देश और संबंधित अधिकारियों का मोबाइल नंबर जारी करने का निर्देश दिया है, जिस पर पीड़ित लोग शिकायत कर सकें। अदालत ने पीसीआर वैन के मोबाइल नंबर भी जारी करने का निर्देश दिया है ताकि लोग ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ शिकायत कर सकें।
अदालत ने ध्वनि प्रदूषण की शिकायत के बाद संबंधित अधिकारियों को उचित कदम उठाने को कहा है। साथ ही एंप्लीफायर, लाउड स्पीकर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम आदि जब्त कर नियमों के अनुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
5 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई
अदालत ने सरकार को इस मामले में प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देते हुए अगली सुनवाई पांच दिसंबर को निर्धारित की है।
इस संबंध में हाईकोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर और झारखंड सिविल सोसाइटी की याचिका पर एक साथ सुनवाई कर रहा है। प्रार्थियों की ओर से कहा गया है कि सरकार ने ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए जो नियम बनाए हैं उसका पालन नहीं होता। शिकायत करने पर कोई कार्रवाई भी नहीं होती। अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।
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