Shardiya Navratri 2019: प्रथम दिन श्रद्धा से पूजी जा रहीं मां शैलपुत्री, कलश स्थापना के साथ आराधना में लीन हुई रांची
नवरात्र के पहले दिन मठ-मंदिरों शक्ति केंद्रों और घरों में कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जा रही है।
By Alok ShahiEdited By: Updated: Sun, 29 Sep 2019 01:44 PM (IST)
रांची, [जागरण स्पेशल]। Shardiya Navratri 2019 नमो देव्यै महादेव्यै...शारदीय नवरात्र आज से शुरू हो रहा है। मां दुर्गा की आराधना के नौ दिनों के इस पावन मौके पर प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा-अर्चना की जा रही है। नेम-नेमत और विधि-विधान के साथ रविवार को मठ-मंदिरों और घरों में श्रद्धालुओं ने कलश स्थापना कर मां का आह्वान किया। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना करने से व्यक्ति को धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।
मां की उपासना के लिए व्रत रखने वाले लोगों ने अराध्य का ध्यान लगाकर मां दुर्गा के पहले रूप शैलपुत्री की पूजा की। पौराणिक कथाओं के अनुसार शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण मां के इस रूप का नाम शैलपुत्री पड़ा। मां शैलपुत्री का वाहन बैल होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। मां शैलपुत्री के दो हाथों में से दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।
वन्दे वान्छित लाभाय चन्द्र अर्धकृत शेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ऐसा कहा जाता है कि नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा करने और उनके मंत्र का जप करने से व्यक्ति का मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। माता शैलपुत्री का मंत्र कम से कम 11 बार जप करने से धन-धान्य, ऐश्वर्य और सौभाग्य में वृद्धि होगी और साधक को आरोग्य तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होगी।
शारदीय नवरात्र का शुभ मुहूर्त : 7 बजकर 40 मिनट से कलश स्थापना शुरूमठ-मंदिरों और घरों में सुबह 7 बजकर 40 मिनट से कलश स्थापना शुरू होगा। दोपहर 12 बजकर 12 तक कलश स्थापित किया जा सकता है। 11 बजकर 50 मिनट से 12 बजकर 12 मिनट के बीच अभिजित मुहूर्त रहेगा। इस मुहूर्त को बेहद फलदायक माना जाता है।
मां शैलपुत्री की पूजन विधिमां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना के लिए उनकी प्रतिमा के समीप अखंड ज्योत जलाकर कलश स्थापना करें। कलश के ऊपर आम के पत्ते रखकर नारियल रखें। मां शैलपुत्री की उपासना के लिए - ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। मां शैलपुत्री को सफेद फूलों की माला चढ़ाएं, साथ ही खीर का भोग लगाएं। नवदुर्गा पाठ के बाद मां की आरती करें।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुतेमहालया पर शनिवार की देर शाम दुर्गाबाटी में महिषासुरमर्दिनी संगीतमय नृत्य को देखने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी हुई थी। झमाझम बारिश के बीच भक्तों के बीच आस्था का सैलाब देखते बन रहा था। सब मां की भक्ति में लीन थे। सभी को मां के आगमन का इंतजार था। महालया के दिन बंगाली समुदाय द्वारा विशेष तौर पर यहां पूजा की जाती है।
महालया अमावस्या को देवी पक्ष की शुरुआत और पितृपक्ष के अंत को माना जाता है। इस दिन शक्ति के उपासक मां की प्रतिक्षा करते हैं। वहीं दुर्गाबाटी में इस अवसर पर आयोजित महिषासुरमर्दिनी संगीतमय नृत्य को देखने के लिए पूरा प्रागंण भरा रहा। एक तरफ बारिश तो दूसरी तरफ हर बीतते क्षण के साथ भक्तों के आंखों में मां दुर्गा के दर्शन की बेचैनी थी। पिछले 136 सालों से यहां मां की पूजा होती आ रही है। इस साल पूजा का 137 वां साल है। इस बार भी दुर्गाबाटी मां की भक्ती का रंगा हुआ है।
शनिवार को देर शाम भक्तों द्वारा पूजो-पूजो गान्धो निये, नोतुन गानेर छंदो निये आबार एलो मां... के श्लोकों से पूरा वातावरण गुंजयमान हो रहा था। दुर्गाबाटी के मंच पर गंधक रौशनी के बीच महाबली महिषासुर तपस्या करता दिखता है। तपस्या का फल भी उसे मिलता है। इसके बाद उसकी भयानक हंसी से दर्शकों सहित पूरा दुर्गाबाटी कांपने लगता है।
शक्ति स्वरुप मां का होता है आगमन
किसी भी प्राणी को शक्ति का अहंकार उसे अत्याचारी बना देता है। महिषासुर के अत्याचार से देव, मानव, धरती स्वर्ग सभी त्रस्त हो जाते हैं। मंच पर कई तरह की रौशनी से विश्व को त्रस्त दिखाया जाता है। तीनों लोकों को दानवों के अत्याचार से मां ही अब बचा सकती हैं। मां के धरती पर अवतार लेने की आनंदमयी गाथा भक्तों को अपने से बांधे आकार लेने लगती है। रोशनी और चीतकार में मां के आह्वान की ध्वनि का समावेश होता है। वीर रस में शक्ति स्वरुप मां का आह्वान किया जाता है।
मंच पर विविध मंत्रों के साथ मां की पूजा गंध दीप फुल से होती है। मां के आते ही धरती इठलाने लगती है। सभी देवता जगदम्बा को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र देते हैं। इसके बाद महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र की पंक्तियां पूरे दुर्गाबाटी में वाद्य यंत्रों के स्वर के साथ गूंजने लगती है। अयि गिरि नंदिनी नंदित मेदिनि विश्व विनोदिनि नंदनुते गिरिवर विंध्य शिरोधि निवासिनि विष्णु विलासिनि जिष्णुनुते। वाद्य और धुआं और रौशनी के बीच मां और असुर का संग्राम शुरू हो जाता है। संग्र्राम महोत्सव में मां भक्तों को कष्ट देने वाले महिषासुर का नाश करती हैं।
मां के रूप को तियाषा ने किया जीवंतमहालया में मां दुर्गा के रूप को तियाषा राय ने प्रस्तुति दी। इसके साथ ही महिषासुर के रूप में गौतम रंजन, शिव के रूप में अंकुश दत्ता, मां काली के रूप में गुलमोहर चक्रवर्ती के अलावा त्रिशा, तानिया सेन,अंकिता चक्रवर्ती, रोहिणी एवं दीपांजलि अन्य कलाकारों ने भी मंच पर अपनी-अपनी भूमिका निभाई। मंच पर सूत्रधार के रुप में त्रिशा सेन थी।
मां के रूप को जीवंत करने के लिए मन की शक्ति की जरूरतमहालया में मां के रुप को जीवंत करने वाली तियाषा राय ने बताया कि वो कक्षा तीन से महालया में हिस्सा ले रही हैं। उन्होंने कई सालों तक मां के रुप को पढ़ा और जीवंत करने का अभ्यास किया। मां के रुप को जीवंत करना आसान नहीं है। इसके लिए शुद्ध मन से मां की आराधना करनी होती है। इसके लिए मन की शक्ति जरुरी है।
मेकॉन में भी मनाया गया महालयाश्यामली कॉलोनी के मेकॉन कम्युनिटी हाल में शनिवार को महालया कार्यक्रम का आयोजन किया गया। आयोजन में मां दुर्गा के अवतरण की कथा का भव्य प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में कलाकारों के द्वारा मां के विभिन्न रुपों के दर्शन दर्शकों को कराया गया। मां के अवतरण की कथा मंजलिश के कलाकारों के द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया।नवरात्र को लेकर हाई कोर्ट में अवकाशझारखंड हाई कोर्ट में नवरात्र को लेकर दस अक्टूबर तक अवकाश रहेगा। शनिवार को हाई कोर्ट में अंतिम कार्य दिवस था। इसके बाद 12 दिनों का अवकाश रहेगा और 11 अक्टूबर को हाई कोर्ट पुन: खुलेगा।
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