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Diwali 2023: यूपी से बुलाए जाते थे शहनाई वादक, कौड़ी खेल की थी अनोखी परंपरा; बड़ा रोचक है गढ़वा का दिवाली इतिहास

श्री बंशीधर नगर (तत्कालीन नगर उंटारी) नगर गढ़ का एक अलग इतिहास है। 1957 तक नगर गढ़ के दोनों तरफ एक सप्ताह पहले से ही शहनाई वादन शुरू होता था जो छठ के तीसरे दिन तक चलता था। यहां उत्तर प्रदेश के वाराणसी से शहनाई वादक को बुलाया जाता था। ये सभी वादक एक सप्ताह पहले से ही शहनाई वादन करते थे।

By Deepak sinhaEdited By: Shashank ShekharUpdated: Sun, 12 Nov 2023 03:11 PM (IST)
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यूपी से बुलाए जाते थे शहनाई वादक, कौड़ी खेल की थी अनोखी परंपरा

रजनीश कुमार मंगलम, श्री बंशीधर नगर (गढ़वा)। प्रकाश पर्व दिवाली का श्री बंशीधर नगर (तत्कालीन नगर उंटारी) नगर गढ़ का अपना एक अलग इतिहास रहा है। 1957 तक नगर गढ़ के दोनों तरफ सिंह दरवाजे के ऊपर सप्ताह भर पहले से ही शहनाई वादन प्रारंभ होता था, जो छठ के तीसरे दिन तक चलता था।

बताया जाता है कि 1957 तक नगर गढ़ के तत्कालीन राजा भैया रूद्र प्रताप देव द्वारा सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के वाराणसी से शहनाई वादक को बुलाकर दोनों तरफ गेट के ऊपर सप्ताह भर पूर्व से ही शहनाई वादन कराया जाता था। पहले दिन शहनाई की आवाज सुन आस-पास के लोग समझ जाते थे कि अब धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा व सूर्योपासना का महापर्व छठ पूजा नजदीक आ गया है।

शहनाई वादन प्रारंभ होने के साथ ही लोग दीपावली सहित अन्य त्योहार की तैयारी में जुट जाते थे। दीपावली के अवसर पर नगर गढ़, श्री बंशीधर मंदिर, सूर्य मंदिर, काली मंदिर की विधिवत साफ-सफाई कर रंग-रोगन किया जाता था।

कौड़ी खेल की थी परंपरा

नगर गढ़ के राजेश प्रताप देव ने बताया कि दीपावली के अवसर पर नगर गढ़ में कौड़ी खेल की भी परंपरा थी। भैया रूद्र प्रताप देव एवं भैया रामानुज प्रताप देव के बाद 1990 के करीब तक भैया शंकर प्रताप देव द्वारा भी नगर गढ़ में कौड़ी का खेल खेलाया जाता था।

संभ्रांत परिवार के लोग कौड़ी का खेल खेलने के लिए नगर गढ़ में पहुंचते थे। दीपावली से लेकर छठ महापर्व तक नगर गढ़ में कौड़ी का खेल खेला जाता था। लोग जमा होकर राज परिवार के लोगों के साथ आधी रात तक कौड़ी का खेल खेलते थे।

बाहर से आने वाले संपर्क खिलाड़ियों के लिए राज परिवार की ओर से ही ठहरने व भोजन की व्यवस्था किया जाता था। पर भैया शंकर प्रताप देव के बाद नगर गढ़ में कौड़ी खेल की परंपरा समाप्त हो गई।

मिट्टी के दीपक व घी से रोशन होता था गढ़ व मंदिर 

नगर गढ़ के राजेश प्रताप देव ने बताया कि दीपावली के अवसर पर नगर गढ़, श्री बंशीधर मंदिर, सूर्य मंदिर, मां काली मंदिर की विधिवत साफ-सफाई कर रंग-रोगन किया जाता था।

दीपावली को नगर गढ़, श्री बंशीधर मंदिर, सूर्य मंदिर, काली मंदिर को मिट्टी के दीपक व घी से दुल्हन की तरह सजाया जाता था। साथ ही विधिवत पूजन-अर्चन होता था। गढ़ के अंदर खंडा महारानी की विधिवत पूजन-अर्चन किया जाता था।

पटाखा छोड़ने नगर गढ़ पर आते थे लोग

नगर गढ़ के राजेश प्रताप देव ने बताया कि दीपावली के दिन बड़ी संख्या में संभ्रांत परिवार के लोग गढ़ परिवार के साथ पटाखा छोड़ने के लिए गढ़ में आते थे।

एक साथ मिलकर सभी लोग पटाखा छोड़ते थे, जो बड़ा ही आकर्षक लगता था। पटाखा छोड़ने के बाद सभी लोग पूजा का प्रसाद ग्रहण कर अपने-अपने घर को जाते थे।

जलाया जाता है दीपक, मंदिरों में होती है पूजा

राजेश प्रताप देव ने बताया कि 1990 के बाद दीपावली के अवसर पर गढ़ में होने वाला कौड़ी का खेल बंद कर दिया गया। अब सिर्फ साफ-सफाई व रंग -रोगन कर गढ़, श्री बंशीधर मंदिर, सूर्य मंदिर, काली मंदिर व गढ़ के अंदर खंडा महारानी के मंदिर में घी का दीपक जलाया जाता है।

साथ ही श्री बंशीधर मंदिर, सूर्य मंदिर, काली मंदिर के बाद गढ़ में खंडा महारानी की वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विधिवत पूजन-अर्चन कर प्रसाद का वितरण किया जाता है।

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