'शिल्पकारी' ने झारखंड की कला को दिया प्लेटफॉर्म, बैंबू आर्ट व सोहराई पेंटिंग की जबर्दस्त मांग
Jharkhand. 25 हजार रुपये से शुरू हुआ स्टार्टअप लगातार आगे बढ़ रहा है। स्थानीय शिल्पकारों के प्रोडक्ट की ऑनलाइन बिक्री हो रही है।
By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Thu, 02 Jan 2020 02:53 PM (IST)
रांची, राज्य ब्यूरो। महज 25 हजार रुपये की लागत से शुरू हुए स्टार्टअप 'शिल्पकारी' ने रफ्तार पकड़ ली है। झारखंड के शिल्पकारों और कलाकारों को बाजार मिल रहा है तो स्थानीय युवाओं को रोजगार। इसने स्थानीय शिल्पकारों को एक प्लेटफार्म दिया है वहीं यहां के शिल्प और हैंडीक्राफ्ट की जबर्दस्त मांग बढ़ी। राज्य में हो रहे बड़े आयोजनों में भी इसे लगातार वर्क आर्डर मिल रहे हैं।
हम बात कर रहे हैं सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र अतुल शौर्य के स्टार्टअप शिल्पकारी की। शौर्य ने झारखंड की सिमटती शिल्पकला को बाजार उपलब्ध कराने का बीड़ा अपने स्टार्टअप के माध्यम से उठाया। आज इनका सपना पूरा हो रहा है। शिल्पकारी के जरिए अतुल झारखंड की लोककला डोकरा, बैंबू एंड वुड आर्ट और सोहराई पेंटिंग को ऑनलाइन दूसरे राज्यों में भी पहुंचा रहा है। शिल्पकारी से झारखंड के लगभग 800 शिल्पकार और कलाकार जुड़े हैं जो अपना प्रोडक्ट ऑनलाइन व ऑफलाइन बिक्री के लिए इसे देते हैं।
शिल्पकारी डॉट कॉम पर ये प्रोडक्ट बिक्री के लिए उपलब्ध होते हैं। हालांकि अभी यह वेबसाइट शुरुआती स्टेज में ही है। सोच ऑनलाइन शो-रूम की स्थापना की है जहां देश भर के शिल्पकारों के प्रोडक्ट इस पर बिक्री के लिए उपलब्ध हो। अतुल कहते हैं, सबसे पहले उन्होंने 3 सितंबर 2017 को करमा पूजा के दिन सबसे पहले रांची स्थित सेंट्रल यूनिवर्सिटी में झारखंड से जुड़े शिल्प का स्टॉल लगाया। इसमें सफलता मिलने के बाद वे लगातार राज्य के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों, पीएसयू आदि से जुड़कर स्टॉल लगाते रहे।
बड़े कार्यक्रमों में स्थानीय शिल्पकारों से तैयार मोमेंटो, शॉल आदि का सप्लाई शुरू की। बकौल अतुल, झारखंड के लोगों खासकर आदिवासियों में लोक कला कूट-कूट कर भरी होती है। लेकिन उन्हें मंच और बाजार नहीं मिलने से न केवल यहां की लोककला विलुप्त हो रही है, बल्कि लोग इससे कट रहे हैं। शिल्पकारी का मकसद ऐसे शिल्पकारों और स्थानीय कलाकारों को बाजार उपलब्ध कराने का ही है।
शिल्पकारी झारखंड में आयोजित कई बड़े इवेंट में स्टेज से लेकर मुख्य द्वार डेकोरेशन के लिए ट्राइबल थीम भी दे चुकी है। पिछले वर्ष खेलगांव में आयोजित लोकमंथन और ऑड्रे हाउस में एक्जीबिशन में शिल्पकारी के ट्राइबल डेकोरेशन की खूब सराहना हुई। इसमें शिल्प की जानकारी रखने वाले स्थानीय कारीगरों ने भी बड़ी भूमिका निभाई। जमशेदपुर में टाटा स्टील की ओर से आयोजित लिटरेरी मीट में मशहूर लेखक रस्किन बांड भी शिल्पकारी के प्रयास की सराहना कर चुके हैं।
नहीं मिली कोई आर्थिक सहायतास्टार्टअप पॉलिसी में प्रावधान के बावजूद अतुल को आज तक राज्य सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है। उम्मीद है कि नई सरकार अतुल जैसे अन्य वैसे युवाओं को जो नई आइडिया रखते हैं उन्हें आगे बढऩे में आर्थिक सहयोग भी देगी।
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