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Sohrai and Kohbar Art: झारखंड ने देश को दी सोहराय व कोहबर कला, मिलेगा GI टैग

Sohrai and Kohbar Art जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में टैग प्रदान कर दिया जाएगा। जीआइ टैग मिलने के बाद यह कला विश्व के किसी भी कोने में जाएगी तो झारखंड से इसकी पहचान जुड़ी रहेगी।

By Alok ShahiEdited By: Updated: Sat, 28 Dec 2019 09:41 AM (IST)
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Sohrai and Kohbar Art: झारखंड ने देश को दी सोहराय व कोहबर कला, मिलेगा GI टैग
खास बातें

  • किसी भी श्रेणी में होगा पहला, कलाकृति के साथ इससे जुड़े कलाकारों को भी पहचान मिलेगी
  • नेशनल लॉ स्कूल आफ इंडिया यूनिवर्सिटी बेंगलुरु की टीम ने जीआइ टैग से जुड़ी प्रक्रिया की है पूरी
हजारीबाग, [विकास कुमार]। Sohrai and Kohbar Art झारखंड के हजारीबाग के गांवों के घरों की मिट्टी के दीवारों पर उकेरी जाने वाली सोहाराय व कोहबर कला पर कोई और दावा नहीं ठोक सकता। देश में अब कोई भी इसे अपनी या अपने राज्य की कलाकृति नहीं बता सकता। सोहराय व कोहबर कला को जल्द जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग (जीआइ टैग) मिलने जा रहा है। इसकी सभी प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। संभवत: जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में टैग प्रदान कर दिया जाएगा। जीआइ टैग मिलने के बाद यह कला विश्व के किसी भी कोने में जाएगी, तो झारखंड से इसकी पहचान जुड़ी रहेगी। जैसे मधुबनी पेटिंग के लिए बिहार जाना जाता है, वैसे ही सोहराय व कोहबर कला के लिए झारखंड जाना जाएगा। अब तक किसी भी श्रेणी में झारखंड से जुड़े किसी भी उत्पाद को जीआइ टैग प्राप्त नहीं है। ऐसे में यह सोहराय व कोहबर कला सीधे तौर पर झारखंड की पहचान से जुड़ जाएगा। कलाकृति के साथ इससे जुड़े कलाकारों को भी पहचान मिलेगी। प्रदेश की पहली कलाकृति होगी, जिसे यह टैग मिलेगा।

तत्कालीन उपायुक्त रविशंकर शुक्ला ने की पहल

सोहराय व कोहबर कला को झारखंड की पहचान बनाने के लिए 2017 में हजारीबाग के तत्कालीन उपायुक्त रविशंकर शुक्ला ने इसकी शुरुआत की। नेशनल लॉ स्कूल आफ इंडिया यूनिवर्सिटी बेंगलुरु के डॉ. सत्यदीप सिंह से संपर्क साधा। 2018 की शुरुआत में लॉ यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु से डॉ. सत्यदीप सिंह के नेतृत्व में टीम हजारीबाग सर्वे को पहुंची। फिर इस कला पर काम कर रहीं सोहराय कला महिला सहयोग समिति के संस्थापक अलाम इमाम के माध्यम से प्रजेंटेशन और दस्तावेज तैयार कर सौंपा गया। जीआइ टैग से जुड़े मूल दस्तावेज 39 पेज के हैं और इससे जुड़े दस्तावेज करीब 350 पेज के। पूरी प्रक्रिया को पूर कराने में उद्योग सचिव रहे रवि कुमार की भी भूमिका अहम रही है।

दिल्ली में हुई विशेषज्ञों की समीक्षा, चेन्नई कार्यालय से मिलेगा टैग

जीआइ टैग को लेकर अहम भूमिका निभा रहे डॉ. सत्यदीप सिंह दिल्ली में एक्सपर्ट समीक्षा में मौजूद थे। उनके द्वारा ही यह प्रक्रिया पूरी की गई। 23 अगस्त 2018 को आवेदन करने के बाद नवंबर माह में विशेषज्ञों की समीक्षा पूरी हुई। अब चेन्नई स्थित कार्यालय से जीआइ टैग को लेकर प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने मन की बात में की थी सोहराय व कोहबर कला की तारीफ

जीआइ टैग को लेकर डॉ. सत्यदीप सिंह की टीम ने काफी मेहनत की है। प्रधानमंत्री ने 2015 में अपने मन की बात कार्यक्रम में सोहराय व कोबहर कला की तारीफ की थी। प्रजेंटेशन के दौरान उनके बातों को भी रखा गया था। टीम ने सोहराय व कोहबर कला से जुड़ी हर बातों का ध्यान रखा था।

क्या है सोहराय व कोहबर कला

कोहबर और सोहराय कला झारखंड की दो प्रमुख लोककला हैं। चित्रकला मानव सभ्यता के विकास को दर्शाता है। मूल रूप में दोनों चित्रकला में नैसर्गिक रंगों का प्रयोग होता है। मसलन लाल, काला, पीला, सफेद रंग पेड़ की छाल व मिट्टी से बनाए जाते हैं। सफेद रंग के लिए दूधी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। काला रंग भेलवा पेड़ के बीज को पिस कर तैयार किया जाता है। इनकी पेंटिंग में ब्रश भी प्राकृतिक ही होते हैं। उंगलियां, लकड़ी की कंघी (अब प्लास्टिक वाली), दातुन से चित्र उकेरे जाते हैं। मिट्टी के घरों की अंदरूनी दीवार को ब्लैक एंड व्हाइट बेल बूटा, पत्तों, मोर का चित्र बनाकर सजाया जाता है।

जीआइ टैग से जुड़ी सभी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं। टैग प्राप्त होने के बाद इसके संरक्षण के लिए 11 सदस्यीय कमेटी भी बन चुकी है। उम्मीद है कि जनवरी के प्रथम सप्ताह में सोहराय व कोहबर को जीआइ टैग प्राप्त हो जाएगा - डॉ. सत्यदीप सिंह, विशेषज्ञ, नेशनल लॉ स्कूल आफ इंडिया यूनिवर्सिटी बेंगलुरु।

मैं जब हजारीबाग उपायुक्त था, तब इसकी शुरुआत की थी। जीआइ टैग मिलने के बाद सोहराय व कोहबर झारखंड की पहचान बन जाएगी। यह किसी भी श्रेणी में झारखंड के लिए पहला जीआइ टैग होगा। डॉ. सत्यदीप सिंह ने इसमें काफी मेहनत की है। पूरी प्रक्रिया को उन्होंने सफलतापूवर्क पूरा किया है - रविशंकर शुक्ला, उपायुक्त, जमशेदपुर।

सोहराय व कोहबर को जीआइ टैग मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। यह जिले व राज्य के लिए गर्व की बात है। जीआइ टैग के बाद चुनौती भी होगी कि हम इस कला को संरक्षित रखें। - भुवनेश प्रताप सिंह, उपायुक्त हजारीबाग 

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