झारखंड आएं तो जरूर लें इन जायकों का लुत्फ, एक से बढ़ एक इन लजीज पकवानों को देख खुद को रोक पाना होगा मुश्किल!
झारखंड के पकवानों में हम धुस्का से तो परिचित हैं लेकिन इसके अलावा भी यहां के कुछ पकवान ऐसे हैं जो खाने में बेहद लजीज होते हैं। इनमें से ज्यादातर चावल के बने होते हैं क्योंकि यहां खरीफ की फसल में मूल रूप से धान की पैदावार की जाती है।
जागरण डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड भारत का एक ऐसा राज्य है, जो न केवल अपनी प्राकृतिक खूबसूरती व आदिवासी संस्कृति के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां के लजीज पकवानों के भी लोग कायल हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी ही झारखंडी व्यंजनों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो स्वादिष्ट होने के साथ ही यहां की पहचान हैं। ऐसे में अगर आप भी कहीं झारखंड के दौरे पर जाएं, तो इनका लुत्फ उठाना न भूलें।
धुस्का
धुस्का-बर्रा खाएंगे झारखंड में बस जाएंगे...ठीक है। यह गाना तो आपने सुना ही होगा। यह झारखंड का एक ऐसा पकवान है, जिसके बिना यहां के लोगों का नाश्ता ही अधूरा रहता है। ऐसे में यहां के गली-चौराहों में ठेला लगाकर इसकी बिक्री होते देख सकते हैं। धुस्का आमतौर चावल और उड़द के दाल से बनाया जाता है और इसे आलू-चने की सब्जी के साथ पत्तल पर परोसा जाता है। कई बाद उड़द के साथ चना दाल भी मिलाकर इसे बनाया जाता है।
छिलका रोटी
गेहूं के आटे की रोटी खा-खाकर अगर बोर हो गए हैं, तो आप इस झारखंडी डिश को अपने खानपान में शामिल कर सकते हैं, जो चावल को पीस कर बनाया जाता है। इसमें चावल को धोकर साफ पानी में पूरी रात या चार-पांच घंटे के लिए भिगो दिया जाता है।
फिर इसे पीस लिया जाता है और फिर इसमें पानी मिलाकर इसका एक घोल तैयार कर लिया जाता है। इसमें नमक मिला लें। इसके बाद तवे पर तेल या घी डालकर इसे अच्छे से दोनों ओर से सेंक लेंगे। इसका जायका आलू-चने की सब्जी या चिकन या मटन करी के साथ खाने से और बढ़ जाता है।
पत्ता रोटी
इसके लिए सबसे पहले चावल और उड़द दाल को भिगोंंकर इसे पीस लिया जाता है। यह थोड़ा मोटा पीसा हुआ होता है। इसके बाद इसे एक मिट्टी के बर्तन में ढककर कुछ देर (2-3 घंटे) के लिए छोड़ देते हैं। फिर इसमें नमक मिला लें।
अब साल के पत्ते को अच्छे से धोकर इन्हें सुखाकर इन्हें कोन का आकार दिया जाता है। फिर पहले से तैयार पेस्ट को डाला जाता है। फिर इसे कूकर या स्ट्रीमर के भाप में पकाया जाता है। आखिर में इसे चिकन या मटन करी या टमाटर की चटनी के साथ परोसा जाता है।
ढकनी रोटी
इस पकवान को बनाने के लिए भी भिगोंकर रखे गए चावल की जरूरत पड़ती है, जिसे हल्के गुनगुने पानी के साथ पीस लिया जाता है। इसे न ज्यादा पतला और न मोटा पीसना है। ढकनी या डब्बा रोटी बनाने के लिए एक खास मिट्टी का बर्तन आता है, जो यहां आसानी से मिल जाता है। फिर बर्तन को हल्की आंच पर चढ़ाकर इसमें चावल का मिश्रण थोड़ा-सा डालकर ढक देना है। फिर चार से पांच मिनट तक इसे पका लिया जाता है और गर्मागर्म किसी सब्जी या करी के साथ परोसा जाता है।
बांस करील
यह कुछ और नहीं, बल्कि बांस के छोटे-छोटे नए पौधे हैं। इसे मसालों के साथ फ्राई कर खाया जाता है। इसे सेहत के लिहाज से भी काफी फायदेमंद माना जाता है।
फुटका (रुगड़ा)
झारखंड में इसे लोग वेज मटन भी कहते हैं। यह यहां के जंगलों में पायी जाने वाली मशरूम की एक प्रजाति है, जिसका स्वाद बिल्कुल मटन जैसा होता है। यह दिखने में छोटे आकार के आलू की तरह होता है, जो प्रोटीन से भरपूर होता है। इसे मिट्टी से निकालकर, अच्छे से धोकर, मसालों के साथ पकाकर खाया जाता है।
खुखड़ी की सब्जी
झारखंड में लोग खुखड़ी की सब्जी भी बेहद चाव से खाते हैं। यह भी मशरूम की ही एक प्रजाति है। यह एक ऐसी सब्जी है, जाे चिकन-मटन से भी महंगी बिकती है। इसकी कीमत लगभग 1200 रुपये प्रति किलो है।
यह भी जंगलों में पाई जाती है, जिसे लोग खूब अच्छे से मसालों के साथ भुनकर चावल या रोटी के साथ खाते हैं। इसके अलावा भी अनरसा या अरसा, पीठा, बर्रा या कचड़ी, मड़ुआ रोटी जैसे कई ऐसे स्थानीय पकवान है, जिनका स्वाद झारखंड जाने पर एक बार चखना तो बनता है।