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टूट रही इनकी आस, पनाहगाह बना रिनपास

रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइक्रेट्री एंड एलाइड साइंसेस (रिनपास) में कई मरीज ऐसे हैं, जिनका कोई पता व ठिकाना नहीं है।

By Sachin MishraEdited By: Updated: Fri, 25 Aug 2017 04:47 PM (IST)
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टूट रही इनकी आस, पनाहगाह बना रिनपास
फहीम अख्तर, रांची। उनकी आंखों में गुजरे लम्हों की चमक अब भी बरकरार है। दरवाजे पर टकटकी लगाए वह अपनों के इंतजार में बैठे रहते हैं कि काश, कोई 'घर' ले जाने को आ जाए, लेकिन कोई नहीं आता। दिल में छिपा दर्द भी बस डबडबाई आंखों से रह-रहकर दुनिया के सामने जाहिर हो जाता है।

वह न किसी से कोई शिकायत कर सकते हैं और न ही बयां कर सकते हैं अपना दर्द। यह हाल रांची के कांके स्थित रिनपास (पागलखाना) में रह रहे सैकड़ों लावारिस मरीजों का है। रिनपास पनाहगाह बना हुआ है।

सैकड़ों मरीजों की कट रही उम्र:

रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइक्रेट्री एंड एलाइड साइंसेस (रिनपास) में सैकड़ों मरीजों की उम्र कट रही है। कई आखिरी पड़ाव पर हैं। पुरुष और महिला वार्ड को मिलाकर 110 मरीज ऐसे हैं, जिनका कोई पता और ठिकाना नहीं है। सालों से उन्हें कोई लेने भी नहीं पहुंचा है। या यूं कहें कि इन्हें यहां एडमिट कराने के बाद इनसे परिजनों ने जान छुड़ा लिया।

जानबूझकर पता गलत लिखाया। ऐसी हालत में इन लावारिस मरीजों को रिनपास ने ही अपना बना रखा है। इनमें कई मरीज ऐसे भी हैं, जो मानसिक रूप से स्वस्थ हो चुके हैं। अब लावारिस मरीजों के लिए आशियाना और परिवार रिनपास ही है। रिनपास में रह रहे कई मरीज ऐसे भी हैं, जो अपने घर लौटना चाहते हैं, लेकिन उनके परिजन उन्हें लेने नहीं आते। प्रबंधन की ओर से उनके पते का सत्यापन कराया जाता है, लेकिन कोई लाभ नहीं होता है। अधिकांश लावारिस मरीज बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हैं।

स्वस्थ हो चुके मरीजों के लिए हाफवे होम:

रिनपास में स्वस्थ हो चुके मरीजों के लिए हाफवे होम का निर्माण किया गया है। महिला वार्ड की ओर से हाफवे होम संचालित है। पुरुष वार्ड का हाफवे होम बनकर तैयार है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की गाइडलाइन के निर्देश पर सरकार ने हाफवे होम का निर्माण कराया है। जहां स्वस्थ हो चुके लावारिस मरीजों को रखा जाएगा।

कढ़ाई-बुनाई भी करते हैं मरीज:

रिनपास में स्वस्थ हो चुके मरीज कढ़ाई-बुनाई करते हैं। पुरुष और महिला दोनों वार्डो में कढ़ाई-बुनाई के उपकरण मौजूद हैं। खादी के कपड़ों की बुनाई भी होती है, जिसका उपयोग रिनपास में ही होता है। अधिक उत्पादन होने पर बाहर बिक्री के लिए भी भेजा जाता है। सालों से रिनपास के मनोरोगियों द्वारा बनाए गए वस्त्रों की प्रदर्शनी खादी मेलों में लगती है।

'स्वस्थ हो चुके मरीजों को वापस भेजने के लिए मरीजों द्वारा बताए गए पते का सत्यापन कराया जाता है, जो अमूमन गलत निकलता है। परिजन भी लेने नहीं आते। ऐसे में मरीजों को रिनपास में ही रखकर उनकी देखभाल की जा रही है।'

-डॉ. सुभाष सोरेन, निदेशक रिनपास।

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