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सुप्रीम कोर्ट का हाई कोर्ट को निर्देश, कहा- सुनील तिवारी के खिलाफ यौन उत्पीड़न केस में 4 सप्ताह में निर्णय लें

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट को सुनील तिवारी के खिलाफ दर्ज हुए यौन उत्पीड़न मामले में चार सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है। बता दें कि बाबूलाल मरांडी के सलाहकार सुनील कुमार तिवारी के खिलाफ एक युवती ने यह मामला साल 2021 में दर्ज कराया था। युवती ने जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल का आरोप भी लगाया था।

By Manoj Singh Edited By: Yogesh Sahu Updated: Mon, 09 Sep 2024 08:45 PM (IST)
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का हाई कोर्ट को निर्देश।
राज्य ब्यूरो, रांची। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के सलाहकार सुनील तिवारी की याचिका पर चार सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश झारखंड हाई कोर्ट को दिया है।

हाईकोर्ट ने सुनील तिवारी के खिलाफ यौन उत्पीड़न केस में आरोप तय करने के मामले पर 31 जुलाई को रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

खूंटी की एक युवती ने सुनील तिवारी पर दुष्कर्म करने और जाति सूचक शब्द का इस्तेमाल करते हुए गाली देने का आरोप लगाया है। युवती ने 16 अगस्त 2021 को रांची के अरगोड़ा थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई है।

इस मामले की जांच पूरी कर पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। इस पर ट्रायल कोर्ट की ओर से आरोप गठन की प्रक्रिया शुरू की गई थी। सुनील तिवारी ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

हाई कोर्ट में 30 को सुनवाई

झारखंड हाई कोर्ट में बाबूलाल मरांडी के सलाहकार सुनील कुमार तिवारी की खिलाफ यौन उत्पीड़न और गवाहों को धमकाने के लिए दाखिल याचिकाओं की सुनवाई हुई।

सुनवाई के दौरान सरकार ने जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा। अदालत ने दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

अदालत ने सुनील तिवारी के खिलाफ आरोप गठन पर रोक जारी रखा और गवाहों को धमकाने के मामले में तिवारी के खिलाफ पीड़क कार्रवाई नहीं करने का आदेश भी जारी रखा है।

दुष्कर्म और जाति सूचक शब्दों के इस्तेमाल का आरोप

सुनील तिवारी के खिलाफ दुष्कर्म एवं जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल को लेकर खूंटी की एक लड़की ने अरगोड़ा थाना में अगस्त 2021 में प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

प्रार्थी की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि इस मामले में शिकायतकर्ता ने रांची की अदालत में केस वापसी के लिए याचिका दाखिल की है।

इसमें शिकायतकर्ता ने कहा है कि उसने आरोप की सत्यता को समझे बिना कुछ गलतफहमी के कारण प्राथमिकी दर्ज कराई है, वह इस मामले में आगे नहीं बढ़ना चाहती है।

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