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Teachers Day 2024: झारखंड के इन 5 शिक्षकों को नमन, जो बिना किसी स्वार्थ के समाज में दे रहे योगदान

शिक्षक दिवस पर हम उन अद्भुत शिक्षकों और मार्गदर्शकों के योगदान को याद करते हैं जिन्होंने समाज में शैक्षणिक और आध्यात्मिक माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस लेख में हम कुछ ऐसे शिक्षकों से मिलेंगे जिन्होंने अपने शिष्यों को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो खेल के मैदान में हो या आध्यात्मिक मार्गदर्शन में हो।

By kumar Gaurav Edited By: Sanjeev Kumar Updated: Thu, 05 Sep 2024 08:21 AM (IST)
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झारखंड के 5 शिक्षकों की कहानी (जागरण)
जागरण संवाददाता,रांची। Famous Teachers of Jharkhand: आज हम ऐसे शिक्षकों व मार्गदर्शकों की बात करेंगे, जिन्होंने अपने दम पर समाज में शैक्षणिक व आध्यात्मिक माहौल तैयार करने में महती भूमिका निभाई है। अपने अथक प्रयास की बदौलत उन्होंने पठन-पाठन का क्षेत्र हो, खेल का मैदान हो या फिर आध्यात्मिक क्षेत्र, हर जगह गुरुजनों ने अपने शिष्यों को शीर्ष तक पहुंचाया। ऐसे भी शिक्षक व गुरु हैं जिन्होंने निश्शुल्क अध्यापन कार्य किया।

शहर के स्कूल से लेकर कालेजों तक शिक्षक दिवस को लेकर उत्साह का वातावरण है। इसी क्रम में आज हम कुछ ऐसे शिक्षकों व मार्गदर्शकों की बात करेंगे, जिन्होंने अपने शिष्यों का करियर बनाया और समाज के लिए मिशाल कायम की। किसी ने बाल संस्कारशाला की शुरुआत कर समाज के वंचित बच्चों को पठन-पाठन की मुख्यधारा से जोड़ा तो किसी ने बाक्सिंग, क्रिकेट जैसे खेलों में युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। पेश है शिक्षकों से बातचीत के अंश...

प्रतिभाओं को तलाशकर तराश रहे हैं कैप्टन डीबी मोहंती

वर्ष 1992 से झारखंड समेत देश के कई अन्य राज्यों में बाक्सिंग का प्रशिक्षण दे रहे कैप्टन डीबी मोहंती ने इन दिनों शहरी क्षेत्रों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिभा तलाशने की मुहिम चलाई है। जेएसपीपीएस से जुड़े कैप्टन मोहंती ओलिंपियन गुरचरण सिंह, अर्जुन अवार्डी पद्मश्री एनजी डिंकोसिन, एशियन गेम्स के गोल्ड मेडलिस्ट शिवा थापा जैसे धुरंधरों को तैयार कर चुके हैं।

कैप्टन डीबी मोहंती कहते हैं कि वर्तमान में अमीषा केरकेट्टा अबूधाबी में जूनियर एशियन बाक्सिंग चैंपियनशिप 2024 में परचम लहरा रही हैं। ऐसी कई प्रतिभा ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी है, यदि सरकारी मदद मिले तो झारखंड में प्रतिभाओं को तलाशना और तराशना आसान हो जाएगा। यहां नेशनल लेवल चैंपियनशिप कराए जाने की आवश्यकता है।

स्कूल की छुट्टी के बाद बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देते हैं रंथू साहू

खलारी प्रखंड अंतर्गत उत्क्रमित मध्य विद्यालय महावीर नगर खलारी के प्रधानाध्यापक रंथू साहू कई वर्षों से ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को स्कूल से छुट्टी के बाद निश्शुल्क पढ़ा रहे हैं। गांव में शाम की पाठशाला और बाल संस्कारशाला सजाते हैं। जहां आसपास के बच्चों को बुलाकर न सिर्फ पठन-पाठन से जोड़ते हैं बल्कि निजी स्तर पर बच्चों को आइ-कार्ड समेत अन्य पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं।

उन्हें ग्रामीणों का भी भरपूर सहयोग मिलता है। जिले का कोयलांचल होने के कारण इस पूरे क्षेत्र में कम उम्र से ही बच्चे अपने परिवार के कार्यों में हाथ बंटाना शुरू कर देते हैं। जिस कारण वे स्कूल से भी विमुख हो जाते हैं। ऐसे बच्चों को स्कूल व शाम की पाठशाला से जोड़ने के लिए तरह-तरह के गीत की रचनाकर स्वयं धुन और आवाज देते हैं और गाना गाकर बच्चों को आकर्षित करते हैं।

ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन सिखा रही हैं जीवन जीने की कला

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की संचालिका ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन कहती हैं कि शिक्षक विद्यार्थियों के जीवन को शिक्षा से श्रेष्ठ व महान बनाकर जीवन जीने की कला सिखाते हैं। इस केंद्र में कई वर्षों से योग के माध्यम से जीवन जीने की कला सिखाई जा रही है।

शिक्षक दिवस अतीत में परम शिक्षक, परमपिता निराकार शिव परमात्मा के इस धरा पर दिव्य कर्तव्यों द्वारा मानव से देवता समान बनाने के कर्तव्यों का प्रतीक है। अच्छा विद्यार्थी विद्या ग्रहण कर शिक्षक के समान बन जाता है। यहां इसी समानता के कारण शिक्षक के अति समीपता का विद्यार्थी अनुभव करने लगता है। शिक्षक के भीतर भी ऐसे छात्रों के प्रति प्यार तथा सम्मान रहता है। वह इतना खुश हो जाता है कि वरदान के रूप में विद्यार्थी को सबकुछ देने में अपूर्व आनंद अनुभव करता है।

प्रयास से स्कूल का किया कायाकल्प, सम्मानित किए गए डा. अवनींद्र

एसएस प्लस टू हाईस्कूल चिलदाग के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक डा. अवनींद्र सिंह को बेहतर पठन-पाठन के लिए राज्य सरकार सम्मानित कर चुकी है। उनका मानना है कि मेहनत जरूर रंग लाती है। विद्यार्थी हित में लिए गए फैसले ने उन्हें सम्मानित कराया। बताया कि वर्ष 2013 में जब चिलदाग हाईस्कूल ज्वाइन किया तो बुनियादी सुविधाएं गायब थीं। बिजली तक नहीं थी।

धीरे-धीरे भौतिक संरचना में बदलाव और नित्य प्रयास से रूपरेखा बदलने लगी। अब यहां सात प्रोजेक्टर के अलावा एक जनरेटर सेट भी है। दस वर्षों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ गई। 2013 में यहां 800 के आसपास बच्चे थे, ये संख्या 2085 हो चुकी है। अवनींद्र कुमार सिंह 1988 से 2009 तक नवोदय विद्यालय में बतौर शिक्षक कार्यरत थे। सेवानिवृत्त होने के बाद भी पठन-पाठन से जुड़े हैं।

नक्सल क्षेत्रों में शैक्षणिक सेवा देतीं थीं पूनम, पढ़ा रहीं हैं अब भी

झारखंड प्रशासनिक सेवा अंतर्गत विभिन्न पदों पर राज्य के कई हिस्सों में अपनी सेवा दे चुकीं पूनम झा कहती हैं कि पठन-पाठन की कोई उम्र नहीं होती है। पढ़ाई मेरी रूचि रही है और टोले-मोहल्ले में घूमने वाले बच्चों को पठन-पाठन की ओर उन्मुख करती हूं।

एडीएम नक्सल के पद पर रहते कई बार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के स्कूलों में जाकर बच्चों को एकाध घंटे पढ़ाती थी। इससे संतुष्टि मिलती थी। आज भी 15 से 20 बच्चों को प्रतिदिन पढ़ा रही हूं। अपने खर्च पर पढ़ाई की सामग्री भी प्रदान करती हूं तो लगता है कि समाज के लिए कुछ कर रही हूं। पिताजी भी शिक्षक थे। उन्हीं के दिए संस्कार हैं कि आज भी पढ़ाई से जुड़ी हूं। कई बार मोरहाबादी के स्कूल, गर्ल्स हाईस्कूल समेत अपने पैतृक गांव में भी स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाती हूं।

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