145 साल पुराने रांची के इस चर्च की नींव में दफन है दान दाताओं के नाम, इतिहास जानकर हो जाएंगे हैरान
बताया जाता है कि इस महागिरजाघर को 21 वर्ष बाद कैथेड्रल का दर्जा मिला। यह रांची के प्रमुख चर्च में से एक है। आप जब कभी रांची आई तो इस चर्च को अवश्य देखिए। यह कई मायनों में ऐतिहासिक है। पहले यहां झोपड़ी में प्रार्थना होती थी।
By M EkhlaqueEdited By: Updated: Sun, 12 Dec 2021 10:16 AM (IST)
रांची, जागरण संवाददाता। संत पॉल महा गिरजाघर की नींव कर्नल डाल्टन ने सितंबर 1870 को रखी थी। स्थापना के पूर्व एक झोपड़ी में प्रार्थना होती थी। फरवरी 1870 में बिशप मिलमैन ने सभी के परामर्श से एक पक्का आराधनालय बनाने का निर्णय लिया। सितंबर 1870 में छोटानागपुर के कमिश्नर जनरल डाल्टेन ने नींव रखी।
बोतल में बंद कर नींव में डाला गया है दान दाताओं का नाम नींव की पत्थर के साथ दान दाताओं के नाम भी एक मोटे कागज पर लिखकर उसे बोतल में बंद कर नींव में डाला गया। आर्थर हेजोर्ग ने कैथेड्रल के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैथेड्रल बनाने में उस वक्त कुल खर्च 26 हजार रुपये खर्च आया था। इसमें डाल्टन ने 38 यूरो और मिलमैन ने 26 यूरो चर्च के निर्माण में लगाए गए थे। साथ ही रांची के लोगों ने चार हजार रुपये चंदा दिए थे।
धर्म प्रचारक पॉल के नाम पर रखा गया नाम चर्च का नाम धर्म प्रचारक पॉल के नाम पर रखा गया। नौ मार्च 1873 को नवनिर्मित संत पॉल महागिरजा घर, रांची का विधिवत संस्कार बिशप रॉबर्ट मिलमैन द्वारा संपन्न हुआ। चर्च को बने अब 145 साल हो चुके हैं। परिसर में एक बड़ी सी लोहे की खूबसूरत नाव बनी हुई है। यह उन मिशनरियों की याद में बनाया गया है। जो 18 वीं सदी में भारत आए थे।
जर्मन मिशनरी के हैजॉर्ग ने कराया था निर्माण कार्य ब्रिटिश आर्मी में आयरिशमैन ईटी डाल्टन 1870 में छोटानागपुर डायोसिस के कमिश्नर थे। उन्होंने क्षेत्र में एक बड़े कलीसिया की जरूरत को देखते हुए खुद 26 हजार रुपये एकठ्ठा कर बहुबाजार स्थित संत पॉल चर्च की नींव रखी। क्योंकि इससे पूर्व आराधना एक झोपड़ी में होती थी। इसका निर्माण कार्य जर्मन मिशनरी के हैजॉर्ग ने किया था। चर्च के निर्माण के साथ ही उन्होंने संत बरनाबास हॉस्पिटल की भी नींव रखी थी। जब इन दोनों भवनों का निर्माण हो रहा था। तब निरीक्षण के दौरान वे घोड़े से गिर गए और उनका पैर टूट गया। बेहतर इलाज के लिए वे जर्मनी चले गए। इस बीच दोनों भवनों का निर्माण बंद हो गया। वापस लौटकर उन्होंने फिर से दोनों भवनों का निर्माण शुरू किया और 1873 में चर्च बनकर तैयार हुआ।
निर्माण के 21 साल बाद मिला चर्च को कैथेड्रल का दर्जा 23 मार्च 1890 में संत पॉल चर्च को तब के कलकत्ता डायोसिस से अलग कर दिया गया। उस समय यह चर्च एंजलिकन चर्च के नाम से जाना जाता था। इसके बाद यह छोटानागपुर डायसिस का हिस्सा बना। बाद में चर्च को कैथेड्रल का दर्जा मिला था। मालूम हो कि कैथेड्रल का दर्जा उसी चर्च को दिया जाता है, जहां बिशप बैठते हों। डायोसिस के अलग होने के बाद इसके पहले बिशप बने थे बिशप जेसी विटली।
चर्च से जुड़ीं कुछ अन्य बातें बपतिस्मा कुंड : 1909 में व्यस्क लोगों को बपतिस्मा करने के लिए एक कुंड का निर्माण चर्च परिसर में कराया गया। बच्चों का बपतिस्मा चर्च के अंदर ही होता है।ऊकाबी स्तंभ : 1919 में ऊकाबी स्तंभ प्रतिष्ठित किया गया। आराधना के समय पाठ पढऩे के लिए उपयोग किया जाता है।पीतल का रैल : 1903 में पीतल का रैल लगाया गया, जहां विश्वासी वेदी के सामने घुटना टेकते हैं। 1980 में पीतल का रैल चोरी होने के बाद स्टील का रैल लगा दिया गया है।
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