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Good News: झारखंड के बाघ करेंगे छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश का सैर, टाइगर कारिडोर विकसित करने की कवायद शुरू

National Tiger Conservation Authority झारखंड छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के जंगल आपस में जुड़े हुए हैं। इसे ध्यान में रखकर टाइगर कारिडोर बनाने की कवायद शुरू की गई है। वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट देहरादून के रिसर्च बायोलाजिस्ट पलामू टाइगर रिजर्व में काम कर रहे हैं।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Wed, 20 Jul 2022 05:47 PM (IST)
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Jharkhand News: झारखंड के बाघ करेंगे छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश का सैर, टाइगर कारिडोर विकसित करने की कवायद शुरू

पलामू, {मृत्युंजय पाठक}। यूं तो टाइगर कारिडोर चिह्नित कर जंगलों के विस्तार के साथ बाघों के लिए अनुकूल माहौल बनाने की कार्ययोजना एक दशक पहले बनाई गई थी, लेकिन इस पर काम अब जाकर शुरू हुआ है। इसे साकार करने के लिए झारखंड के इकलौते टाइगर रिजर्व-पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में सर्वे चल रहा है। पीटीआर के जंगल छत्तीसगढ़ से लगे हैं और छत्तीसगढ़ के जंगल मध्य प्रदेश तक फैले हैं। देश में सबसे ज्यादा बाघ मध्य प्रदेश में ही हैं। क्या झारखंड और मध्य प्रदेश के बीच बाघों का मूवमेंट होता है? तीनों राज्यों के बीच टाइगर कारिडोर की कितनी संभावना है? इसे लेकर सर्वे चल रहा है।

पलामू टाइगर रिजर्व में एक महीने से चल रहा सर्वे

पीटीआर लगभग 1,014 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका कोर क्षेत्र 414 वर्ग किमी. है और इसका बफर क्षेत्र 600 वर्ग किमी के आसपास है। टाइगर कारिडोर के सर्वे को लेकर वाइल्ड लाइफ इंस्टिट््यूट देहरादून के रिसर्च बायोलाजिस्ट रोहण देसाई पीटीआर में करीब एक महीने से कैंप कर रहे हैं। इस काम में पीटीआर के कर्मचारियों समेत वन्य क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोगों की मदद ली जा रही है।

बाघ संरक्षण के लिए कारिडोर की आवश्यकता

रिसर्च बायोलाजिस्ट रोहण देसाई कहते हैं कि देश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। आबादी के लिहाज से सामान्य वन क्षेत्रों को वन्य प्राणी क्षेत्र बनाने की जरूरत है। झारखंड और छत्तीसगढ़ लगा हुआ है। छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व बनने वाला है। पीटीआर से लेकर एमपी के बांधवगढ़ तक जंगल मिलते हैं। बाघों के मूवमेंट के दौरान मानव का हस्तक्षेप न हो, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कारिडोर पर काम चल रहा है। सर्वे रिपोर्ट नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी (एनटीसीए) को सौंपी जाएगी। रिपोर्ट के आधार पर कारिडोर का रेखांकन होगा। एनटीसीए प्रत्येक पांच वर्ष में टाइगर कंजर्वेशन प्लान तैयार करता है। इसी प्लान के माध्यम से बाघों के संरक्षण का कार्य किया जाता है।

झारखंड में कितने बाघ

देश में बाघों की गिनती वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट देहरादून द्वारा की जाती है। यह गिनती प्रत्येक चार साल पर होती है। इसकी रिपोर्ट 29 जुलाई को राष्ट्रीय बाघ दिवस पर प्रधानमंत्री करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार पीटीआर में साल 2010 में पांच, 2014 में तीन बाघ थे। 2018 कि गिनती में एक भी बाघ नहीं पाए गए। हालांकि तब की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पांच बाघ पाए गए थे। 1995 में पीटीआर में 71 और 2002 में 34 बाघ थे। राष्ट्रीय बाघ दिवस पर पता चलेगा कि झारखंड में बाघ बढ़े या घट गए। पीटीआर के निदेशक कुमार आशुतोष के मुताबिक गिनती में दो बाघ और दस तेंदुए होने के साक्ष्य मिले हैं। यहां सौ से ज्यादा हाथी हैं।

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