Yearender 2020: ये 20 खास इनोवेशन हमेशा रहेंगे याद, आप भी जानिए
Yearender 2020 कोरोना संक्रमण के इस कठिन दौर में झारखंड के होनहारों ने अपने इनोवेशन से देश-दुनिया का ध्यान खींचा। ये लोगों की जिंदगी को आसान बनाने में जितना काम आए उससे कहीं अधिक कोरोना जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में भी इनकी खूब आजमाइश हुई।
रांची, जेएनएन। Yearender 2020 साल 2020 ने गहरे जख्म दिए हैं। इस साल पूरी दुनिया कोरोना वायरस महामारी की चपेट में आ गई। लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई। नौकरी-चाकरी छोड़कर लोगों को घर का रुख करना पड़ा। व्यापार-धंधे, रोजी-रोजगार की चहुंओर मारामारी मच गई। ऐसे में कोरोना संक्रमण के इस कठिन दौर में झारखंड के होनहारों ने अपने इनोवेशन से देश-दुनिया का ध्यान खींचा। ये लोगों की जिंदगी को आसान बनाने में जितना काम आए, उससे कहीं अधिक कोरोना जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में भी इनकी खूब आजमाइश हुई। आइए जानते हैं 2020 के कोरोना काल के इन खास 20 इनोवेशन के बारे में...
चाईबासा में संक्रमण काल में बड़े काम आया को-बोट
चाईबासा : कोरोना काल में पश्चिम सिंहभूम जिले में को-बोट का इनोवेशन हुआ था। इससे कोरोना काल के शुरुआती दिनों में संक्रमण से बचने के लिए यह बेहद कारगार उपाय था। जिससे संक्रमित लोगों तक दवा, खाना समेत अन्य जरूरी सामान पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य कर्मी वार्ड के बाहर से ही को-वोट को रिमोट के जरिए चलाते थे। अप्रैल, मई में कोरोना को लेकर जिस प्रकार लोगों के अंदर दहशत था, उस माहौल में को-वोट एक राहत बन कर आया था। इसके इस्तेमाल से लोगों को संक्रमण से सुरक्षित रहने का अवसर मिला। शुरुआत में जब संक्रमित मरीजों तक दवा, खाना पहुंचाने में स्वास्थ्य कर्मी संकोच करने लगे तो प्रशासन के सामने विकट स्थिति उत्पन्न हो गई। शुरुआती दिनों में पीपीई कीट भी अधिक मात्रा में नहीं था। उस दौरान तत्कालीन डीडीसी आदित्य रंजन ने एक नई सोच के साथ को-वोट बनान कर मरीजों और स्वास्थ्य कमयों के लिए बड़ी राहत पहुंचाई थी। इसकी शुरुआत चक्रधरपुर स्थिति कोविड-19 अस्पताल में किया गया था। जो राज्य और देश में काफ सुखयां बटोरी थी।
पीपीई किट नहीं पहुंचने पर रेनकोट को ही बनाया बचाव का हथियार
हजारीबाग : हजारीबाग जिले में कोरोना संक्रमण के प्रारंभ में संदिग्ध लोगों की जांच के लिए पीपीई किट उपलब्ध नहीं थे। ऐसे में तत्कालीन डीसी उमेश प्रताप सिंह ने वैकल्पिक व्यवस्था के तहत रेनकोट को ही पहनने की सलाह दी। विशेषकर प्रवासी मजदूरों की जांच के लिए चुरचू प्रखंड के डाक्टर व स्वास्थ्य कर्मचारी ने इसका खूब इस्तेमाल किया। दिनभर इसे पहनकर जांच करते नजर आए। पसीने से तर होने के बावजूद अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटे। कोरोना संक्रमण से बचाव हुआ।
जमशेदपुर के अंकित ने वर्क फ्रॉम होम को किया आसान
जमशेदपुर : कोरोना की वजह से लगे लाकडाउन में जब कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम का फरमान जारी कर दिया, तो सबसे बड़ी समस्या लैपटॉप-कंप्यूटर की आ गई। जुगसलाई के युवक अंकित जाजोदिया को इसमें रोजगार का आइडिया आया। जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कालेज से कानून की पढ़ाई कर रहे अंकित ने फेसबुक-वाट्सएप से ऐसे लोगों को जुडे का अवसर उपलब्ध कराया, जिनके पास अतिरिक्त लैपटॉप व कंप्यूटर थे। लोग जुडे लगे, तो इसे किराये पर उन लोगों को उपलब्ध कराया, जिन्हेंंं इसकी आवश्यकता थी। 100 से 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से लोग घर बैठे कमाने लगे, जिसमें अंकित को 25-30 फीसद तक कमीशन मिल जाता है। इससे उन्हेंंं भी फायदा हो रहा है, जो 40-50 हजार रुपये का लैपटॉप-कंप्यूटर नहीं खरीद सकते। आज अंकित के इस रेंटो प्लेटफार्म से जमशेदपुर के अलावा रांची, धनबाद, हजारीबाग के अलावा बिहार के दरभंगा और मुंबई तक के करीब 100 लोग जुड़ चुके हैं। अंकित नए वर्ष में रेंटो का मोबाइल एप और वेबसाइट लांच करने की योजना बना रहे हैं। इस इनोवेशन को प्रोत्साहित करने के लिए भाजपा प्रदेश प्रवक्ता कुणाल षाडंगी ने भी अंकित को दो लैपटॉप उपहार में दिया है।
आनलाइन रांची रोजगार मेले में मिली सात हजार लोगों को नौकरी
रांची : रांची जिला प्रशासन ने अपना टाइम और स्वनीति इनिशिएटिव के साथ मिलकर रांची रोजगार मेला 2020 का आयोजन किया। 20 दिन के आनलाइन रोजगार मेले में कुल सात हजार लोगों को घर बैठे नौकरी मिली। न्यूनतम चार हजार रुपये प्रतिमाह व अधिकतम 50 हजार रुपये प्रतिमाह पर आवेदनकर्ताओं को नौकरी मिली। औसत 14 हजार पांच सौ रुपये हर महीने वेतन का रहा। लगभग 20 हजार से अधिक नौकरी तलाशने वाले लोगों ने अपना एप पर अपना रजिस्ट्रेशन कराया था। यह विशेष 20 दिवसीय प्लेसमेंट ड्राइव कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल आथक प्रभावों को कम करने और नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को एप के जरिए 48 घंटे के भीतर उपयुक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए आयोजित किया गया। 20 दिनों तक चले इस मेले की थीम है- चलो काम की बात करें। 66 से अधिक क्षेत्रों में नौकरी पाने के लिए गूगल प्ले स्टोर से युवाओं ने अपना एप डाउनलोड किया।
गुमला में बच्चों के भविष्य के लिए शुरू की रात्रि पाठशाला
भरनो (गुमला) : लाकडाउन की घोषणा के बाद जब सारे स्कूल बंद हो गए, ऐसे में शारीरिक दूरी का ख्याल रखते हुए बच्चों के लिए सिसई ओलमुंडा व बाकुटोली गांव में दो रात्रि पाठशाला खोले गए। अब भी इसमें साठ से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। दतिया बसाईर टोली गांव निवासी पूर्व आइपीएस डा. अरुण उरांव ने यह पहल की है। वह खुद पढ़ाने वाले शिक्षकों को ट्रेनिंग देकर तैयार करते हैं। अब अन्य सुदूर गांवों में भी रात्रि पाठशाला खोलने की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल, डा.अरुण उरांव वर्ष 2014 में जब गांव आए थे तो देखा कि छठवीं कक्षा के छात्रों को एबीसीडी तक नहीं आती है। तभी उन्होंने पहल करने की ठान ली थी। कोरोना संक्रमण के दौरान सपना हकीकत में बदल गई।
स्कूल बंद हुए तो जूठी देने लगे बच्चों को मुफ्त कोचिंग
लातेहार : जिले के बारियातू प्रखंड क्षेत्र के डाढ़ा गांव के सेवानिवृत शिक्षक जूठी सिंह ने कोरोना संक्रमण में स्कूल बंद होने पर वर्ग एक से पांच तक के बच्चों को सुबह शाम ढाई-ढाई घंटे कोचिंग मुफ्त में देने की कवायद शुरू की। शारीरिक दूरी का पालन व मास्क अनिवार्य कर पढ़ाना शुरू किया। मार्च के अंतिम सप्ताह में शुरू किया गया यह कार्य अब भी जारी है। जूठी सिंह कहते हैं कि जब तक स्कूल नहीं खुल जाएंगे, वे बच्चों को मुफ्त कोचिंग देते रहेंगे।
दो इंजीनियर दोस्तों ने बना डाला सैनिटाइजर चेंबर
लोहरदगा : उत्कर्ष बर्मन व हिमांशु जायसवाल सेना में भर्ती होने के लिए इंटरव्यू की तैयारी कर चुके थे। फोन आने के बावजूद लाकडाउन की वजह से शामिल नहीं हो पाए। मन में दुख हुआ कि कोरोना ने जिंदगी की रफ्तार रोक दी है। लेकिन इसे चुनौती मानते हुए दोनों दोस्तों ने एक हफ्ते की कड़ी मेहनत के बाद सैनिटाइजर चेंबर का निर्माण कर दिया। इस निर्माण को लेकर खूब प्रशंसा हुई। हिमांशु बीआइडी वेल्लोर से पढ़ाई कर एरिकेशन कंपनी मुंबई में इस समय नेटवर्क इंजीनियर हैं। लाकडाउन के दौरान घर में ही फंसे हुए थे। उत्कर्ष और हिमांशु दोनों अच्छे मित्र हैं। जुगाड़ तकनीक से इस सैनिटाइजर चेंबर को बनाया था। इसमें सेंसर, माइक्रोकंट्रोलर आदि उपकरण लगे हुए थे। डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार इसमें केमिकल डालने की भी सुविधा थी। 8-10 सेकंड में कोई भी व्यक्ति सैनिटाइज हो जाता था।
आइएसएम विज्ञानी बना रहे विशेष मास्क
धनबाद : कोरोना से लडऩे के लिए इंडियन स्कूल ऑफ माइंस आइआइटी के विज्ञानी एक ऐसा मास्क तैयार कर रहा है जो आपके चेहरे पर पूरी तरह से फिट बैठेगा। इस बात को इस तरह से समझिए कि जैसे हम जूता लेने जाते हैं तो अपने पसंद का और पैर के साइज का लेते हैं। ठीक वैसा ही मास्क आइएसएम तैयार कर रहा है। यह मास्क चेहरे के हिसाब से होगा। जो उस पर पूरी तरह फिट बैठेगा। केवल इतना ही नहीं मास्क की खासियत होगी कि मास्क बोझल नहीं लगेगा। आप चाहें जितनी देर पहन लें । यह कोरोना समेत अन्य संक्रमण से बचाव करेगा। यह मास्क स्वास्थ्य, सुरक्षा और मेडिकल मानकों को ध्यान में रख तैयार किया जा रहा है। आइआइटी प्रोफेसर केके सिंह का दावा है कि ऐसा मास्क दुनिया में पहली बार तैयार हो रहा है।
इस वार्ड में नहीं होगा संक्रमण
धनबाद : आइआइटी आइएसएम के प्रो। केके सिंह एक ऐसा वार्उ बना रहे हैं जिसमें किसी प्रकार के संक्रमण का खतरा नहीं होगा। इसमें अभी आठ माह का समय लगेगा।यह वार्ड केबिन की शक्ल में होगा। इस वार्ड की खासियत होगी कि इसमें रखे गए सक्रमित मरीज संक्रमण नहीं फैला सकेंगे। चिकित्सक या नर्स को संक्रमण का खतरा नहीं होगा।
आइआइटी विज्ञानी बना रहे कोरोना जांच को किट
धनबाद : कोरोना वायरस की जांच को आइआइटी आइएसएम विज्ञानी ऐसी किट बना रहे हैं जिसकी कीमत महज सौ रुपये तक होगी। इससे कोई भी अपने शरीर की भी कोरोना जांच कर सकेगा। इसका नाम पोर्टल रैपिड डायग्नोस्टिक सर्फेस प्लास्मोन रेजोनेंस सेंसर किट है। यह प्रोटोटाइप पोर्टेबल सेंसर किट होगी जो कोविड -19 के आणविक लक्ष्यों का प्रत्यक्ष और तीव्र परीक्षण करेगी।
लोगों की जिंदगी बचाने वाला वेंटिलेटर
धनबाद : आइआइटी आइएसम के प्रो. एआर दीक्षित ने प्रोटोटाइप वेंटिलेटर बनाया है। इस वेंटिलेटर का उपयोग कर एक साथ चार लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। इसका मॉडल तैयार कर आइआइटी आइएसएम ने शहीद निर्मल महतो मेडिलक कॉलेज व अस्पताल को दिया है। संस्थान इस वेंटिलेटर को कम लागत में तैयार कर रहा है। अमेरिका की तर्ज पर बनाए जाने वाले इस वेंटिलेटर की खासियत को हम ऐसे समझें कि अलग-अलग उम्र के मरीजों को इस वेंटिलेटर से जितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होगी उतनी मिलेगी।
सैनिटाइजर का हो रहा अस्पताल में उपयोग
धनबाद : केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के निर्देश पर आइआइटी आइएसएम विज्ञानियों ने सैनिटाइजर बनाया है। इसमें कम एल्कोहल लगता है। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार तैयार किया गया है। संस्थान रोज पांच लीटर सैनिटाइजर बनाकर धनबाद के एसएनएमएमसीएच में दे रहा है। वहां इसका प्रयोग हो रहा है।
इस्पात बनाने वाले हाथों ने बनाया वेंटिलेटर, अस्पताल में हो रहा प्रयोग
बोकारो : कोरोना के समय देश के प्रत्येक क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान चल रहे हैं। देश की जरूरत को पूरा करने के लिए कई स्तर पर नावाचार भी हो रहा है। इसी कड़ी में बोकारो इस्पात के युवा अभियंताओं ने लॉकडाउन के समय व स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखकर नवाचार किया है। सेल के एक दर्जन युवा अभियंताओं ने लो कॉस्ट मैकेनिकल वेंटिलेटर व आइशोलेशन पॉड बनाया है। वेंटिलेटर की सामान्य तौर पर कीमत दो से पांच लाख के करीब होती है। पर बोकारो में बने इस वेंटिलेटर की कीमत 45 हजार रुपये है।खास बात यह है कि इसके लिए 90 प्रतिशत सामान संयंत्र परिसर से ही लिया गया। इसी प्रकार आइसोलेशन पॉड को बनाया गया है। दोनों का प्रयोग बोकारो जनरल अस्पताल में हो रहा है। आइसोलेशन पॉड संभावित संक्रमित मरीज को अन्य मरीजों से दूर रखने एवं संक्रमण से बचाने के लिए एक प्रकार का पादर्शी बैग है। जो कि किसी भी सामान्य बेड पर लगाया जा सकता है।
इस चार्जर से ट्रक की बैटरी से लेकर मोबाइल की बैटरी तक होगा चार्ज
गोड्डा : आइटी इंजीनियर उज्ज्वल चौबे के मास्टर चार्जर को कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट, डिजाइन व ट्रेड मार्क से मान्यता मिली। इस चार्जर से ट्रक की बैटरी से लेकर मोबाइल की बैटरी तक को चार्ज किया जा सकता है। इस इंजीनयिर ने आॢटफिशिल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग कर फेफड़े के एक्सरे से कोरोना की जांच करने की विधि भी ईजाद की है।
केबल टीवी के माध्यम से पढ़ाई की व्यवस्था
गिरिडीह : कोरोना संक्रमण को लेकर स्कूल-कॉलेजों के बंद हो जाने के बाद केबल टीवी के माध्यम से सबसे पहले गिरिडीह में बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था की गई। शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने इसका उद्घाटन किया था। इसके बाद पूरे राज्य में इस व्यवस्था को लागू किया गया।
दिव्यांगों को सीढ़ी में चढ़ाने को बनाई स्टेयर क्लाइमबिंग ट्रॉली
जमशेदपुर : टाटा वर्कर्स यूनियन उच्च विद्यालय कदमा की छात्रा हेमा घोष ने दिव्यांग एवं घरेलू सामनों को सीढिय़ों में चढ़ाने के लिए स्टेयर क्लाइमबिंग ट्रॉली का निर्माण किया है। यह कार्य उन्होंने अपने सहयोगी अरूण कैवर्त व विज्ञान शिक्षिका शिप्रा मिश्रा के मागदर्शन में किया है। इस छात्रा के मॉडल की तारीफ राज्य स्तरीय इंस्पायर अवार्ड में हो चुकी है। इस ट्रॉली को बनाने में स्कूल के रॉड व बेंच का इस्तेमाल किया गया है। बेकार पड़े वाहन, वाइपर मोटर व बैटरी का इस्तेमाल किया है। इसके हैंडल में स्वीच लगाया गया है, इसे आसानी से ऑफ-ऑन कर सकते हैं। यह ट्रॉली 50 किलो तक का वजन बड़े आराम से ढो सकती है।
धालभूमगढ़ के आयुष ने किए पांच खोज
जमशेदपुर : पूर्वी सिंहभूम जिला के धालभूमगढ़ के रहनेवाले एनआइटी दिल्ली से एमटेक कर चुके छात्र आयुष ने लॉकडाउन एवं अनलॉक में कोराना को हराने के लिए पांच खोज किए। इसमें से दो खोज की पेटेंट हो चुकी है। अन्य तीन खोज को सीधे बाजार में उतार दिया है। वर्तमान में आयुष एनआइटी जमशेदपुर से पीएचडी कर रहा है। सबसे पहले इस छात्र ने कोरोना जांच एप बनाया। इस एप को ऑन करने के बाद सांस छोडऩे और सांस को रोके जाने की प्रक्रिया के सहारे से यह पता चलता है कि आप में कोरोना के लक्षण हैं या नहीं। दूसरी खोज सस्ता वेंटिलेटर है। घरेलू उपकरणों के सहारे एक छोटा सा वेंटिलेटर का निर्माण किया है। इसमें एंबुबैग लगाया गया है। एंबु बैग ऑक्सीजन चढ़ाने में कार्य आता है। इसी का स्वरूप बदलकर मैकेनिकली डिजाइन करते हुए सस्ता वेंटिलेटर का निर्माण कराया। इस वेंटिलेटर को सूटेकस में भी रखा जा सकता है। इस वेंटिलेटर के निर्माण में लगभग तीन हजार रुपये खर्च हुए हैैं। इसका भी पेटेंट हो चुका है। तीसरा नॉनटच ऑटोमेटिक एटेंडेंस मैनेजमेंट सिस्टम बनाया गया। इसमें जियोग्राफिकल लोकेशन के आधार पर आप ऑफिस के सीमित दायरे के अंदर जैसे ही प्रवेश करते हैं, वैसे ही अटेंडेंस बन जाता है और आप कंपनी के अंदर इन माने जाते हैं। इसी तरह जाते समय कंपनी से आउट हो जाते हैं। इस सिस्टम का इस्तेमाल जुस्को टाटा में किया जा रहा है। इस कार्य में आयुष का सहयोग जुस्को के पदाधिकारी गौरव आनंद व इंटर्न यासिर ने किया है। इसका पेंटेंट एनआइटी दिल्ली ने कर रखा है। इसी तरह कोरोना से लड़ाई के दो और इनोवेशन किए।
एनटीटीएफ गोलमुरी के छात्रों ने बनाई थ्री डी प्रिंटर मशीन
जमशेदपुर : एनटीटीएफ आरडी टाटा टेक्निकल इंस्टीट्यूट गोलमुरी के चार छात्रों ने थ्री डी ङ्क्षप्रटर मशीन बनाई है, जिसकी तारीफ बेंगलुरु की एक प्रदर्शनी में हुई है। इस मशीन के सहारे घरेलू सामान और स्कूल के प्रोजेक्ट को हूबहू ङ्क्षप्रट किया जा सकता है। सीबीएसई स्कूलों ने इस तरह की मशीन को अनिवार्य किया गया है। बाजार में इस मशीन की कीमत 35 हजार रुपये हैं, लेकिन आरडी टाटा टेक्निकल इंस्टीट््यूट के छात्रों ने इस मशीन को मात्र 21 हजार रुपये के कॉस्ट में तैयार किया है। इस मशीन को बनाने में संस्थान के इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के छात्र अमर कुमार, अभय रॉय, अभिषेक दे, ऋतिक की महत्वपूर्ण भूमिका रही।