बारिश का पानी रोक हो रहे मालामाल, टपक सिंचाई से कर रहे आम-अदरक-ओल की खेती
Jharkhand Khunti News खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड के किसानों का पलायन रुक गया है। यहां एक परिवार एक से डेढ़ लाख की कमाई साल में कर रहा है। चेकडैम और तालाब बनाकर पहाड़ का पानी रोक रहे हैं।
By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Sat, 26 Jun 2021 12:56 PM (IST)
रांची, [संजय कृष्ण]। झारखंड के खूंटी का नाम आते ही कई तरह की चिंताएं, शंकाएं मन को घेर लेती हैं। उसी खूंटी के तोरपा प्रखंड के ऐसे 75 गांव हैं, जो अपनी तकदीर खुद लिख रहे हैं। पंजाब-हरियाण, यूपी से लेकर अंडमान तक पलायन करने वाले इन गांवों के पुरुष और महिलाएं अब न केवल आम की पैदावार कर खुद के जीवन में मिठास घोल रही हैं, बल्कि आर्थिक समृद्धि के द्वार पर दस्तक देकर अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा भी रही हैं।
तोरपा का दियांकेल पंचायत के गुफू गांव में कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं। एक तो यहां बारिश का पानी बचाया जा रहा है। छोटे-छोटे नंगे पहाड़ पर पौधारोपण किया जा रहा है और उसके अंतिम छोर पर नाली बनाकर उसका पानी तालाब में स्टोर किया जा रहा है। छोटे-छोटे तीन चेक डैम से होते हुए पानी विशाल तालाब में चला जाता है। इस तरह गांव का पानी गांव में ही रोक दिया जा रहा है। एक बूंद भी पानी की बर्बादी नहीं होती।
दूसरे, प्रदान संस्थान ने तकनीकी साधन मुहैया कराकर टपक सिंचाई से खेती शुरू कराई है। आम के बाग लगवाए हैं। किसान महेश्वर सिंह पानी के अभाव में ठीक से खेती नहीं कर पाते थे, अब तीन-तीन फसल उगाते हैं। पथरीली जमीन होने के कारण भी परेशानी होती थी, लेकिन ये समस्याएं भी दूर हो गईं। अब उसी पथरीली जमीन पर आम की बागवानी के साथ वे अदरक, लहसुन, मिर्ची, ओल, टमाटर आदि की खेती कर रहे हैं। खेतों को समय पर पानी मिले, इसके लिए सोलर सूक्ष्म लिफ्ट की व्यवस्था की गई है।
पिछले साल लॉकडाउन में अच्छी खासी कमाई हुई थी। इस बार भी आम के फल खूब लगे हैं। प्रदान संस्था के टीम कोआर्डिनेटर प्रेम शंकर पिछले एक दशक से आदिवासी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। आदिवासियों की समस्या सुनना, उसके समाधान के रास्ते तलाशना और आधुनिक तकनीक से समृद्ध करना यही उनका मकसद है। वे किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
वे कहते हैं कि तोरपा क्षेत्र में ही करीब 75 गांवों में संस्था मदद कर रही है और खूंटी में करीब 125 गांवों में। गुफू की इतवारी देवी कहती हैं कि गांव की सभी महिलाएं आत्मनिर्भर हैं। खेती करती हैं। खुद बेचती हैं और आमदनी होती है। महिला मंडल से जुड़कर वे काम करती हैं। जरूरत के हिसाब से ऋण लेती हैं और फिर ब्याज सहित चुकता करती हैं। आम की बागवानी से हर परिवार की करीब 40 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई है। वैसे साल भर में एक से डेढ़ लाख रुपये की कमाई ये किसान कर रहे हैं।
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