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Tribal Museum: कई मायने में खास होगा झारखंड का आदिवासी संग्रहालय

Jharkhand. अब संग्रहालय में आदिवासी जीवन का दर्शन कर सकेंगे। यहां झारखंड की परंपरा संस्कृति और खासियतों के बारे में मिलेगी जानकारी।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Sun, 02 Feb 2020 08:51 AM (IST)
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Tribal Museum: कई मायने में खास होगा झारखंड का आदिवासी संग्रहालय
रांची, [संजय कृष्ण]। Budget 2020 आम बजट में इस बार झारखंड को आदिवासी संग्रहालय की सौगात मिली है। झारखंड में इसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी। अभी तक राज्य में कोई आदिवासी संग्रहालय नहीं है। होटवार स्थित राज्य म्यूजियम में एक अलग विंग है, जहां आदिवासियों के जीवन-दर्शन को सहेजा गया है। वहीं, मोरहाबादी स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान में भी एक छोटा सा संग्रहालय है।

इसमें 32 जनजातियों के बारे में जानकारियां हैैं। मोरहाबादी स्थित इस संस्थान का मुख्य काम जनजातियों के जीवन, खान-पान पर शोध करना है। इस संस्थान के जिम्मे ही यह काम भी है कि शोध करके बताए कि किसे आदिवासी और जनजाति की श्रेणी में शामिल किया जाए और किसे किसे नहीं।

जीवंतता बनाएगी संग्रहालय को खास

साहित्यकार महादेव टोप्पो कहते हैं कि भोपाल, कोहिमा, शिलांग आदि जगहों पर भी आदिवासी संग्रहालय बने हुए हैं, लेकिन भोपाल का जो संग्रहालय जीवंत हैं। वहां लगता है कि हम सचमुच आदिवासी जीवन का दर्शन कर रहे हैं। झारखंड में जो संग्रहालय बने हुए हैं, उनके प्रदर्शित आदिवासी जीवन व सौंदर्य का दर्शन नहीं होता। लगता है, बेमन से किसी कलाकार ने बना दिया है।

यहां दिकू सौंदर्य झलकता है, लेकिन भोपाल में आदिवासी सौंदर्यबोध दिखता है। उसकी कलात्मकता ध्यान खिंचती है, इसलिए वहां छुट्टी के दिनों में काफी भीड़ होती है। हम उम्मीद करते हैं कि यहां जो संग्रहालय बनेगा, भोपाल से भी दो कदम आगे होगा और देश में अपनी एक अलग पहचान निर्मित करेगा।

लुप्त हो रही कला-परंपरा और औजारों का भी हो सकेगा संरक्षण

रांची विवि के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. गिरिधारी राम गौंझू कहते हैं कि इस संग्रहालय से हम न केवल इनके सांस्कृतिक वैशिष्ट्य को दिखा सकते हैं, वरन लुप्त हो रही परंपराओं को भी समेट सकते हैं। लोहा गलाने की प्राचीन तकनीक की जीवंत प्रस्तुति कर सकते हैं। प्राचीन काल से अब तक की आदिवासी यात्रा, पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र, खान-पान, पर्व-त्योहार, पारंपरिक आभूषण, वाद्ययंत्र, हस्तशिल्प व शिकार करने के हथियार भी सहेजे जा सकते हैं।

इस संग्रहालय से यह भी फायदा होगा कि यहां आदिवासी साहित्य, लोकगीत, लोक संस्कृति, लोकगाथा आदि की किताबें भी प्रकाशित हो सकेंगी। यहां अभी तक लोग अपने प्रयास से प्रकाशित कराते आ रहे हैं। हमारे जीवन से लोक गीत, लोकगाथा, सृष्टि कथा विलुप्त हो रही हैं। इनका दस्तावेजीकरण आज बहुत जरूरी है। यह काम संग्रहालय के माध्यम से बेहतर ढंग से किया जा सकेगा।

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