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जनजाति धर्म संस्कृति रक्षा मंच ने कहा- हिंदुओं को बांटने की कोशिश नहीं होगी कामयाब

जनजाति धर्म संस्कृति रक्षा मंच झारखंड प्रदेश के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा है कि कुछ लोग जनजाति समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। वह अपनी कोशिश में कामयाब नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि जिन संगठनों को जनजाति समाज को हिंदू कहने पर तकलीफ होती है।

By Vikram GiriEdited By: Updated: Thu, 11 Mar 2021 12:01 PM (IST)
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जनजाति धर्म संस्कृति रक्षा मंच ने कहा- हिंदुओं को बांटने की कोशिश नहीं होगी कामयाब। जागरण

रांची, जासं । जनजाति धर्म संस्कृति  रक्षा मंच झारखंड प्रदेश के अध्यक्ष मेघा उरांव ने बयान जारी कर कहा है कि कुछ लोग जनजाति समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। वह अपनी कोशिश में कामयाब नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि जिन संगठनों को जनजाति समाज को हिंदू कहने पर तकलीफ होती है। वैसे लोगों को संविधान का अध्ययन कर लेना चाहिए। उन्होंने अपने बयान में कहा कि हिंदू दो प्रकार के हैं।

इसमें एक जनजाति हिंदू तथा दूसरा जेनरल हिंदू। जेनरल हिंदू पर हिंदू कानून ,मैरिज एक्ट कानून लागू है, लेकिन वहीं पर जनजातियों पर हिंदू कानून लागू नहीं हो सकता है। जनजातियों के लिए रूढ़ि और प्रथा ही कानून है। वह विधि का बल रखता है। जो अनुच्छेद 13 (3) ( क) में देखा जा सकता है। इसके खिलाफ कोई कानून नहीं बना सकता है।

दूसरा 25 (2) (ख) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक  प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के  सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है। हिंदुओं के इस वर्गों में आने वालों का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक पुत्र एवं भरण पोषण अधिनियम 1956, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989, इत्यादि कई कानूनों में  जनजातियों को हिंदू माना है।

इसी हिंदू जनजाति होने के कारण अपने रूढ़ि और प्रथा ,संस्कृति को पालन करने के कारण और सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण जनजाति समाज को आरक्षण और सुविधा प्राप्त हो रहा है। इस बात को भी भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केरल राज्य बनाम चंद्रमोहन 2004 के डिसीजन में कहा है कि जो जनजाति अपने पूर्वजों का रूढ़ि और प्रथा, संस्कृति , विवाह, विरासत, उत्तराधिकार  इत्यादि को अनुसरण और पालन नहीं करते हैं तो उन्हें उस जनजाति का सदस्य स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

जनजाति समाज व्यवहारिक रूप से भी और संविधान में भी जनजाति हिंदू हैं। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि जनजाति समाज में अलग-अलग नामों से महादेव, शिव, पर्वती, और हवा, पानी, धरती, सूर्य,पेड़ पौधा और सर्वप्रथम पूजा सामग्री में गोबर से शुद्ध करना सिंदूर अरवा चावल फूल पत्ती आम का पत्ता शुद्ध जल इत्यादि से पूजा आरंभ होता है। वहीं विवाह  में तेल सिंदूर हल्दी  मड़वा इत्यादि कई तरह के सामग्रियों से विवाह कराया जाता है इसी तरह जन्म से मृत्यु तक का  सारे नियम और परंपराएं है। जो हिंदू और हिंदू जनजाति में है।

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