झारखंड में साख बचाने उतरेंगे दो केंद्रीय मंत्री, BJP नेताओं के सामने विपक्ष से ये चेहरा; क्या होगी रणनीति?
वैसे तो लोकसभा चुनाव में झारखंड में कई सीटें हॉट होने की पूरी संभावना है लेकिन दो ऐसी सीटें हैं जहां वर्तमान केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। वहां की जनता अन्य मुद्दों के साथ-साथ मुख्य रूप से शिक्षा और आदिवासी कल्याण की कसौटी पर दोनों को कसेगी। दोनों केंद्रीय मंत्री इन दाेनों सेक्टरों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए कार्यों को भुनाने का प्रयास करेंगे।
नीरज अम्बष्ठ, रांची। वैसे तो लोकसभा चुनाव में झारखंड में कई सीटें हॉट होने की पूरी संभावना है, लेकिन दो ऐसी सीटें हैं, जहां वर्तमान केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। वहां की जनता अन्य मुद्दों के साथ-साथ मुख्य रूप से शिक्षा और आदिवासी कल्याण की कसौटी पर दोनों को कसेगी।
दोनों केंद्रीय मंत्री इन दाेनों सेक्टरों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए कार्यों को भुनाने का प्रयास करेंगे। वहीं, विपक्षी खेमा के नेता भी इन दोनों क्षेत्रों में कमियों के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहराएंगे।
जी हां, हम बात कर रहे हैं कोडरमा और खूंटी संसदीय सीटों पर होनेवाली सिसायी भिड़ंत पर। भाजपा ने जहां पहले ही चरण में दोनों सीटों पर क्रमश: केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी तथा केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा पर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दे दिया था, वहीं बाद में ही सही, आइएनडीआइ गठबंधन ने भी अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है।
कालीचरण मुंडा पिछले चुनाव में अर्जुन मुंडा के विरुद्ध खड़े थे
आइएनडीआइ गठबंधन ने इस बार अन्नपूर्णा के विरुद्ध माले विधायक विनोद कुमार सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने इस बार भी कालीचरण मुंडा पर अपना दांव लगाया है। कालीचरण मुंडा पिछले लोकसभा चुनाव में भी अर्जुन मुंडा के विरुद्ध खड़े थे। उन्होंने मुंडा को कड़ी टक्कर दी थी और वे बहुत कम ही मतों से पीछे रह गए थे।
यहां गौरतलब है कि कालीचरण मुंडा भाजपा नेता नीलकंठ सिंह मुंडा के अपने भाई हैं जो वर्तमान में खूंटी विधानसभा क्षेत्र से ही विधायक हैं। अन्नपूर्णा की बात करें तो पिछले चुनाव में उन्होंने कोडरमा सीट से ही 62 प्रतिशत मत लाकर बडे़ अंतर से भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को हराया था। उस समय अन्नपूर्णा जहां राजद को छोड़कर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। वहीं, बाबूलाल ने झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था।
सियासी बयार में मुद्दों की बात करें तो इन दोनों संसदीय क्षेत्रों में कई मुद्दे हैं। लेकिन दोनों के केंद्रीय मंत्री होने के कारण इनके विभागों से जुड़े मुद्दे अधिक उठेंगे। केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी कई मौकों पर केंद्र द्वारा समग्र शिक्षा अभियान के तहत आवंटित राशि के खर्च नहीं होने पर सवाल उठाती रही हैं।उन्होंने पीएम श्री योजना के तहत स्कूलों के प्रस्ताव समय पर नहीं भेजे जाने पर भी राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि राज्य सरकार शिक्षा की बेहतरी के लिए गंभीर ही नहीं है। उन्होंने राज्य के स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी और समय पर नियुक्ति नहीं करने के आरोप लगा चुकी हैं।
वहीं, झामुमो केंद्र से समय पर राशि नहीं मिलने तथा राशि में कटौती करने का आरोप लगाता रहा है। उच्च शिक्षा में झारखंड काफी पीछे है तो इसके लिए भी राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत लगातार दो वर्षों तक केंद्र से कोई अनुदान नहीं मिलने के आरोप लगते रहे हैं। हाल के कुछ महीनों को छोड़ दें तो अर्जुन मुंडा की अधिक जिम्मेदारी केंद्रीय जनजातीय मामले का मंत्रालय की ही रही है।ऐसे में चुनाव में झारखंड में आदिवासियों के कल्याण के लिए केंद्र से मिले सहयोग का निश्चित रूप से आकलन किया जाएगा। हालांकि जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री के रूप में अर्जुन मुंडा ने लगातार खूंटी को फाेकस में रखा और वे लगातार वहां कार्यक्रम भी करते रहे। हालांकि, सरना धर्म कोड लागू करने में केंद्र से स्वीकृति नहीं दिला पाने जैसे मुद्दे पर विपक्षी खेमा भी इन्हें घेरने के लिए पूरी तरह तैयार होगा।आदिवासी बहुल सीट होने कारण भी खूंटी में प्रत्याशी आदिवासी कल्याण की कसौटी पर ही कसे जाएंगे।
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