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Jagannathpur Temple: भूख से तड़प रहा था नौकर... प्रभु खुद लेकर पहुंच गए थाली... जानिए, जगन्नाथ मंदिर की रोचक कहानी

Jagannath Temple Ranchi यूं तो भगवान जगन्नाथ का मंदिर ओडिशा के पुरी में है यह सब जानते हैं लेकिन आज हम बात करेंगे झारखंड की राजधानी रांची स्थित जगन्नाथ मंदिर की। आखिर यह मंदिर बना कैसे किसने बनवाया और क्यों? यह कहानी जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Mon, 27 Jun 2022 03:18 PM (IST)
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Jagannathpur Temple: भूख से तड़प रहा था नौकर... प्रभु खुद लेकर पहुंच गए थाली... जानिए, जगन्नाथ मंदिर की रोचक कहानी
रांची, डिजिटल डेस्क। Jagannathpur Temple Ranchi Jharkhand महाप्रभु जगन्नाथ का नाम जुबान पर जब भी आता है, मन ओडिशा के पुरी शहर पहुंच जाता है। समुद्र की लहरों से अटखेलियां करते इस शहर में विरजमान भगवान जगन्नाथ के प्रति मन और आस्थावान हो उठता है। महाप्रभु की कहानियां कानों में सुनाई देने लगती हैं। महाप्रभु की बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र बरबस याद आने लगते हैं। ओडिशा की रथयात्रा की अपनी ओर रथ के रस्सों की तरह अपनी ओर खींचने लगती हैं। ऐसे में अगर आप चाहकर भी ओडिशा नहीं पहुंच पा रहे हैं तो आपके लिए एक और शानदार मंदिर महाप्रभु के दर्शन के लिए उपलब्ध है।

रांची शहर में भी विराज रहे भगवान जगन्नाथ

झारखंड की राजधानी रांची में भी भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। विशाल और आकर्षक मंदिर। यहां भी वहीं सबकुछ होता है, जो ओडिशा के मंदिर में होता है। इस मंदिर की आकृति भी ओडिशा के पुरी स्थित मंदिर की तरह ही है। इसे देखकर आप महसूस करेंगे कि ओडिशा में महाप्रभु का दर्शन कर रहे हैं। यह मंदिर रांची के धुर्वा में है। काफी प्राचीन मंदिर है। नाम है- जगन्नाथपुर मंदिर। यहां हर साल रथयात्रा का भी आयोजन होता है। ओडिशा की तरह यहां की रथयात्रा भले ही मशहूर नहीं, लेकिन उतना ही आनंदामयी है।

वर्ष 1691 में हुआ था इस मंदिर का निर्माण

इस मंदिर के निर्माण की कहानी बेहद दिलचस्प और रोचक है। जानकार बताते हैं कि इसका निर्माणा वर्ष 1691 में हुआ था। तब बड़कागढ़ नामक इलाके पर नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव का शासन हुआ करता था। एक दिन की बात है कि राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने ओडिशा के पुरी शहर जाने का कार्यक्रम बना दिया। उन्होंने अपने एक नौकर को भी साथ चलने के लिए कहा। नौकर और अपने कर्मचारियों को लेकर राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ओडिशा के पुरी शहर पहुंच गए। पुरी पहुंचने के बाद महाप्रभु जगन्नाथ की कहानी सुनकर नौकर उनका भक्त हो गया। वह महाप्रभु का ही गुण गाने लगा। सोते-जागते उसकी जुबान पर बस महाप्रभु का ही नाम सुनाई देने लगा। आस्था की गंगा में वह डूब गया। महाप्रभु का भक्त हो गया। उसे लगा कि भगवान से उसका सीधा साक्षात्कार हो गया।

रात में भूख से व्याकुल हो उठा राजा का नौकर

एक रात की बात है कि राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव रात्रि विश्राम कर रहे थे। कर्मचारी और नौकर आदि भी सो रहे थे। इसी बीच नौकर भूख से व्याकुल हो उठा। उसे जोरों की भूख लग गई। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे और नोकर भूख से बिलबिला रहा था। जब उसे कुछ समझ में नहीं आया तो उसने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की। मन ही मन उसने गुहार लगाई- भगवान आप ही मेरी भूख मिटाइए। कुछ कीजिए। मेरी समझ में नहीं आ रहा क्या करूं।

भोगवाली थाली लेकर खुद पहुंच गए प्रभु जगन्नाथ

दंत कथाओं के अनुसार, उसी रात भगवान जगन्नाथ वेश बदलकर उस नौकर के पास पहुंच गए। उन्होंने नौकर से बात की। नौकर ने बताया कि उसे बहुत भूख लगी है। वह बर्दाशत नहीं कर पा रहा है। महाप्रभु जगन्नाथ जी ने अपनी भोगवाली थाली में भोजन लाकर उस नौकर को खिलाया। भोजन करने के बाद नौकर का मन तृप्त हो गया। वह आनंद से भर उठा। उसने बहुत शांति महसूस की। इस चमत्कार से वह हैरान था। हर्षित मन ही मन उस नौकर ने महाप्रभु को इसके लिए धन्यवाद दिया।

दूसरी रात राजा के सपने में भी आए जगन्नाथ जी

कहा जाता है कि सुबह होने के बाद नौकर ने यह कहानी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव को सुनाई। राजा यह कहानी सुनकर हैरान रह गए। इस कहानी ने राजा को बहुत प्रभावित किया। जब रात हुई तो भगवान जगन्नाथ ने पुन: राजा को स्वप्न दिया। भगवान ने कहा- राजन, यहां से लौटने के बाद तुम अपने राज्य में भी मेरे विग्रह की स्थापना करो। पूजा-अर्चना करो। इसके बाद राजा ने संकल्प लिया कि ओडिशा से लौटते ही वह अपने राज्य में भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनवाएंगे। ऐसा ही हुआ भी। लौटने के बाद राजा ने अपने मंत्रियों और कर्मचारियों को बुलाया। आदेश दिया कि पुरी की तरह ही भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर बनवाया जाए। देखते ही देखते कुछ वर्षों में यह मंदिर बन कर तैयार हो गया। तब यह इलाका जंगलों से घिरा हुआ था।

यहां मंदिर में हर जाति के लोगों के लिए तय है काम

कहा जाता है कि उसी समय राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने यह भी तय कर दिया कि भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर में घंटी बजाने और तेल-भोग की जिम्मेदारी आदिवासी उरांव परिवार की होगी। वहीं, आदिवासी मुंडा परिवार के लोग यहां झंडा फहराएंगे। पगड़ी देंगे। वार्षिक पूजा करेंगे। जबकि रजवार और यादव जाति के लोग भगवान जगन्नाथ को मुख्य मंदिर से गर्भगृह तक ले जाएंगे। बढ़ई परिवार के लोग मंदिर आदि का रंग-रोगन करेंगे। वहीं लोहरा समुदाय के लोग भगवान के रथ की मम्मत करेंगे। इसी तरह कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी का बर्तन आदि बनाकर उपलब्ध कराएंगे। आज भी इस परंपरा का यहां निर्वहन होता है।

छोटी-सी एक पहाड़ी पर स्थित है महाप्रभु का यह मंदिर

बहरहाल, वर्ष 1691 में बना भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर रांची शहर के जगन्नाथपुर धुर्वा क्षेत्र में है। यह एक छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित है। पुरी की तरह ही यहां भी हर वर्ष रथयात्रा का आयोजन होता है। इस वर्ष भी रथयात्रा की तैयारी चल रही है। एक जमाने में यह इलाका बड़कागढ़ रियासत का हिस्सा था। मंदिर की ऊंचाई करीब 85-90 मीटर है। यहां की हरियाली देखकर आपका मन खिलउठेगा। यहां आप वाहन लेकर सीधे पहुंच सकते हैं। रास्ता बनकर तैयार है। पहुंचने में असुविधा नहीं होगी।

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