Deori Temple: झारखंड के इस 700 वर्ष प्राचीन मंदिर को बनते किसी ने नहीं देखा... जानिए, इसकी विशेषताएं
Jharkhand Unique Temple पहाड़ों और जंगलों से घिरे झारखंड में कई रोचक कहानियां प्रचलित हैं। इन्हें सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं। यहां धार्मिक महत्व के भी कई स्थल हैं। इनकी भी अपनी कहानी है। ऐसा ही एक मंदिर है दिउड़ी मंदिर। यहां इसकी कहानी सुनकर आप हैरान रह जाएंगे।
By M EkhlaqueEdited By: Updated: Sat, 25 Jun 2022 03:00 PM (IST)
रांची, डिजिटल डेस्क। बिहार, उत्तरप्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से घिरे झारखंड की पहचान यहां के जंगल और पहाड़ हैं। प्रकृति से इसे अपने हाथों से संवारा है। जिधर भी नजर धुमाइए, यहां के हसीन मंजर आपके मन मोह लेंगे। यहां की आदिवासी लोक संस्कृति और लोक कलाएं इसे और विशिष्ट बनाती हैं। झारखंड हिन्दू धर्म पर्यटन स्थलों के लिए भी जाना जाता है। यहां अनेक ऐसे मंदिर हैं, जिनका पौराणिक महत्व है। ऐसी रोचक कथाएं इन मंदिरों से जुड़ी हैं, जिन्हें सुनकर आप दंग रह जाएंगे। ऐसा ही एक मंदिर है- दिउड़ी मंदिर।
यहां 16 भुजाओं वाली मां काली की है प्रतिमाझारखंड में मां काली का यह मंदिर हर किसी की जुबान पर रहता है। मौका मिलते ही लोग इस मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करना नहीं भूलते हैं। खुद भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी भी समय-समय पर इस मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां हर मानोकामनाएं पूरी होती हैं। यही वजह है कि झारखंड के अलावा अन्य प्रदेशों से भी लोग यहां दर्शन-पूजन के लिए समय-समय पर आते रहते हैं। यह मंदिर झारखंड विशेषकर रांची की पहचान बन चुका। यहां 16 भुजाओं वाली मां काली की करीब साढ़े तीन फुट ऊंची प्रतिमा है। जबकि अन्य मंदिरों में इतनी भुजाओं वाली प्रतिमा नहीं होती है। आठ या दस भुजाओं वाली प्रतिमा ही होती है।
मंदिर को लेकर दो तरह की कहानियां प्रचलित
मंदिर को लेकर कई रोचक कहानियां प्रचलित हैं। दावा किया जाता है कि यह मंदिर करीब 700 वर्ष प्राचीन है। इसका निर्माण 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच का बताया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर को निर्माण होते किसी ने नहीं देखा है। मंदिर के पुजारी की मानें तो एक रात एक भक्त को सपना आया। सुबह उठकर उसने जंगलों में मंदिर की खोज शुरू कर दी। काफी महनत के बाद उसे घने जंगल के बीच एक मंदिर नजर आया। वह देखकर दंग रह गया। इसके बाद उसने ग्रामीणों को इस मंदिर की जानकारी दी। इस मंदिर को लेकर एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि झारखंड के तमाड़ में तब एक राजा हुआ करते थे। नाम था- केरा। वह युद्ध में हर कर घर लौट रहे थे। देवी उनके स्वपन में आईं। उन्होंने राजा से कहा- मेरा मंदिर निर्माण कराओ। इसके बाद राजा ने अपने कर्मचारियों को मंदिर निर्माण कराने का आदेश दिया। जब उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया तो उनका राज्य दोबारा मिल गया।
रांची-टाटा हाइवे किनारे स्थित है यह मंदिर बहरहाल, जब आप रांची से टाटा के लिए एनएच 33 से होकर गुजरेंगे तो रास्ते में तमाड़ नामक एक जगह है। वहीं पर यह मंदिर स्थित है। रांची शहर से इसकी दूरी करीब 60 किलोमीटर है। यहां पहुंचना बेहद आसान है। हर क्षण यहां पहुंचने के लिए आपको रांची से बसें मिल जाएंगी। सड़क से ही इस मंदिर का आप दर्शन कर सकते हैं। जैसे ही आप ओवरब्रिज पर चढ़ेंगे, इस मंदिर का गुंबद नजर आएगा। ओवरब्रिज के नीचे से एक रास्ता मंदिर तक जाता है। यहां मां काली की प्रतिमा ओडिशा की मूर्ति कला पर आधारित है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर की स्थापना पूर्व मध्यकाल में करीब 1300 ई. में हुई होगी।
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