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Jharkhand Temple: झारखंड में अनूठा मंदिर जहां भक्त प्रसाद में चढ़ाते हैं नमक, जानिए क्या है नूनबिल देवी की मान्यता

Jharkhand Unique Temple मंदिरों में तरह तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं लेकिन झारखंड में एक ऐसा मंदिर है जहां भक्त देवी को नमक और बताशा चढ़ाते हैं। दुमका जिले के मसलिया गांव स्थित इस पावन स्थल का नाम है- नूनबिल मंदिर। देवी की कहानी पढ़कर आप दंग रह जाएंगे।

By M EkhlaqueEdited By: Updated: Wed, 27 Jul 2022 02:59 PM (IST)
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Jharkhand Hindu Temple: नूनबिल देवी मंदिर में भक्त प्रसाद स्वरूप चढ़ाते हैं नमक व बताशा।
दुमका, {राजीव}। Jharkhand Unique Hindu Temple झारखंड के संताल परगना प्रमंडल के दुमका जिले के मसलिया प्रखंड के दलाही में नमक की देवी के रूप में विख्यात नूनबिल माता की पूजा नमक से होती है। यहां नूनबिल देवी को प्रसाद में नमक और बताशा चढ़ाने की परंपरा है। खासतौर पर मकर संक्रांति पर यहां दूर-दूर से नमक का भोग चढ़ाने दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। झारखंड के अलावा बिहार और पश्चिम बंगाल से श्रद्धालुओं का आगमन होता है। मकर संक्रांति पर यहां आठ दिवसीय मेला भी लगता है।

सरकारी संचिकाओं में दर्ज है यहां का मेला

सरकारी दस्तावेजों में यह नूनबिल मेला के नाम से दर्ज है, जो नूनबिल नदी के किनारे लगता है। यहां देवी और नदी, दोनों का नाम नूनबिल है। कुछ लोग इसे नूनबिल बूढ़ी के नाम से भी पुकाराते हैं। नूनबिल में दो शब्द है जिसका शाब्दिक मतलब नून यानी नमक और बिल मतलब बिला जाना या गायब हो जाना। इस क्षेत्र के पुराने लोग यह बता पाने में सक्षम नहीं हैं कि नमक की देवी की नमक से पूजा की परंपरा कितनी पुरानी है। वर्ष 1910 में प्रकाशित एसएसएल ओमैली के बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर संताल परगना के मुताबिक वर्ष 1900 के बहुत साल पहले भी यहां पूजा प्रचलन में थी और उस स्थान पर तब भी मेला लगता था।

एक समय यहां एक लाख लोग आया करते थे

प्रोसिडिंग आफ द रायल आयरिश एकेडमी 1893 में अंकित जानकारियों के मुताबिक, उस दौर में नूनबिल मेला में एक लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जुटती थी। उस वक्त नूनबिल मेला दिसंबर में लगता था। उस समय यहां साल का एक विशाल पेड़ था। लोगों की मान्यता थी कि नूनबिल देवी का वास इसी पेड़ में है। बाद के वर्षों में यह मेला जनवरी में मकर संक्रांति के ठीक दूसरे दिन से लगने लगा। आरएम दास के मेनू आन क्राइम एंड पनिशमेंट में दी गई जानकारियों के मुताबिक 1907-08 से 1935-36 तक जितनी भीड़ बासुकिनाथ मेले में जुटी थी, तकरीबन उतने ही लोग नूनबिल मेले में भी पहुंचे थे।

बिहार डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में भी इसका उल्लेख

जर्नल आफ द एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल 1891 और पीसी राय चौधरी के बिहार डिस्ट्रिक्ट गजेटियर संताल परगना 1957 में भी इसका साक्ष्य मौजूद है कि नूनबिल मेला संताल परगना का अत्यंत प्रमुख मेला रहा है। सेंसस आफ इंडिया 1961 में यह पहाड़िया आदिवासी मेला के रूप में दर्ज है, जो माघ के महीने लगता था। बताते चलें कि संताल परगना के विभिन्न जिलों में मकर संक्रांति पर और इसके बाद कई स्थानों पर मेले लगते हैं। कई मेले गर्म जल कुंडों और जलस्रोतों के निकट भी लगते हैं। इन स्थलों में भी लोक देवियों की सालाना पूजा की परंपरा है और वहां के पुजारी भी आदिवासी समाज के हैं। यहां आदिवासी और गैर आदिवासी दोनों समुदाय के लोग जुटते हैं। दोनों की मान्यताओं और आस्था का स्वरूप समान है, लेकिन कहीं भी नमक से देवी की पूजा की परंपरा नहीं है।

हथेली पर नमक पड़ते सुंदर हो गई बुढ़िया

पुराने लोग बताते हैं कि नूनबिल मेला, नूनबिल बूढ़ी और नूनबिल नदी को लेकर कई दंत कथाएं हैं। इनके मुताबिक प्राचीन काल में कुछ बैलगाड़ी के गाड़ीवान नमक के बोरों से भरी बैलगाड़ी लेकर नूनबिल नदी के रास्ते से गुजर रहे थे। नदी के तट तक पहुंचने पर जब रात हो गई तो गाड़ीवानों ने यहीं पड़ाव डाला दिया।

रात में जब सभी खाना खाने के लिए बैठे तब अचानक ही एक बुढ़िया प्रकट हुई। वह अत्यंत कुरूप थी। उसका शरीर घावों से भरा था। उसने गाड़ीवानों से खाना मांगा, जबकि कुछ लोग बताते हैं कि बुढ़िया ने खाना के बजाए नमक मांगा था। तब गाड़ीवानों ने उसे दुत्कार दिया था, लेकिन एक नौजवान गाड़ीवान को उस पर दया आ गई और उसने चुटकी भर नमक दे दिया।

हथेली पर नमक के पड़ते ही बुढ़िया स्वस्थ और सुंदर हो गई। बुढ़िया ने उस गाड़ीवान से कहा कि वह तुरंत वहां से चला जाए, क्योंकि थोड़ी देर में भीषण तूफान आने वाला है। उस गाड़ीवान ने बुढ़िया की बात मान ली। वहां से चला गया। थोड़ी देर बाद वास्तव में भीषण तूफान आया और भारी वर्षा होने लगी। देखते-ही-देखते बाकी गाड़ीवानों की बैलगाड़ियों पर लदा नमक गल गया और दलदल में बदल गया। गाड़ीवान अपने बैलों सहित उस दलदल में समा गए।

गांव के चरवाहे को देवी ने दिया था स्वप्न

दूसरे दिन पास के धोबना गांव का फुकाई पुजहर मवेशी चराता हुआ पहुंचा। वहां का दृश्य देखकर वह भयभीत हो गया। वहां से तुरंत वापस लौट गया। उसी रात उसे सपना आया। सपने में एक रात पहले की घटना उसने देखी। उससे कहा गया कि वह उस स्थान पर बेदी स्थापित करे और देवी की नमक एवं बताशा से पूजा करे।

दूसरे दिन उसने आसपास के भी गांव वालों को बुलाया और सपने वाली बात सबको बताई। सबकी राय से उसने नदी के तट तक दलदल के बगल में साल के विशाल वृक्ष के नीचे देवी का पिंड बनाया और पास के गर्म जल कुंड में स्नान कर देवी और पास के गर्मजल कुंड में स्नान कर देवी को नमक और बताशा चढ़ाया। तभी से इस नदी का नाम नूनबिल और देवी का नाम नूनबूढ़ी पड़ा।

नमक और बताशा बेचने आते हैं कारोबारी

यहां नूनबुढ़ी देवी की नमक और बताशा से पूजा होने लगी। यहां मेला लगने लगा जिसमें दूर-दूर से नमक के कारोबारी आने लगे और यहां नमक-बताशा बेचने लगे। अब भी दूर-दूर से व्यापारी इस मेला में नमक बेचने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां नमक बेचने से कारोबारी जीवन में उन्नति आती है। नदी के तट पर जहां नूनबिल देवी का पिंड है उसके पास ही अब भी दलदल है। इसके पास ही गर्म जल का स्रोत है। आज भी चर्म रोग जैसी बीमारियों से मुक्ति की कामना लिए हजारों लोग यहां आते हैं और इस गर्म जल कुंड में स्नान करते हैं। हालांकि समय के साथ मेला का स्वरूप बदल गया है और श्रद्धालुओं की भीड़ पर भी असर जरूर पड़ा है। अब यहां अपेक्षाकृत पहले से कम भीड़ उमड़ती है।

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