Unique wedding: यहां दुल्हन लेकर जाती है बरात... दरवाजे पर खुद नाचकर स्वागत करते हैं दूल्हे वाले
Unique wedding Tradition रोचक परंपरा की यह कहानी आदिवासी हो समाज की है। यहां बेटियां काफी अहम स्थान रखती हैं। यहां दूल्हा के बदले दुल्हन बरात लेकर जाती है। समान गोत्र में यहां शादी नहीं होती है। यही नहीं लड़की पक्ष को यहां गोनोंग दिया जाता है।
By M EkhlaqueEdited By: Updated: Wed, 27 Apr 2022 02:33 PM (IST)
खूंटी, (दिलीप कुमार)। दूल्हा बरात लेकर लड़की के घर जाता है। दहेज भी लेता है और दुल्हन भी अपने घर लाता है। यह आम बात है। लेकिन आदिवासी हो समाज में ऐसा नहीं होता है। यहां दुल्हन बरात लेकर दूल्हे के घर जाती है। दूल्हा पक्ष के लोग दरवाजे पर पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाकर खूब नाचते गाते हैं। बरात का स्वागत करते हैं। झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में यह रोचक परंपरा आज भी जीवित है। आदिवासी हो बहुल इस इलाके में बेटियाें का स्थान बेटों से कहीं अधिक मायने रखता है। उन्हें बेहद सम्मान दिया जाता है।
इस समाज में शादी की परंपरा बेहद रोचक है। वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है। सबसे खास बात यह है कि इस समुदाय की शादी में दहेज का चलन बिल्कुल नहीं है। बल्कि, दूल्हा पक्ष ही दुल्हन के परिवार वालों को एक जोड़ा बैल, गाय और नकद राशि देता है। शादी के बाद दूसरे दिन बरात वापस लौट आती है, जबकि दुल्हन अपने पति के घर में ही रुक जाती है।
लड़की पक्ष को दिया जाता है गोनोंग आदिवासी हो समाज के आंदी यानी शादी-विवाह में लड़का पक्ष लड़की पक्ष को मूल्य चुकाता है। वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष को कन्या धन देने का रिवाज है। इस प्रथा को गोनोंग कहते हैं। इसमें अनिवार्य रूप से एक जोड़ा बैल और 101 रुपये नकद के साथ कहीं-कहीं पर एक गाय भी लड़की वालों को देने की प्रथा है। लड़के वाले अगर लड़की पक्ष को 101 रुपये देते हैं तो विवाह के दौरान दुल्हन को सजाने आभूषण आदि की जिम्मेदारी दूल्हा पक्ष की ही होती है। अगर राशि अधिक रही तो दुल्हन को उसके मायके वाले ही सजाते हैं।
समान गोत्र में नहीं होती शादी आदिवासी हो समाज में प्राय: एक विवाह का चलन है, लेकिन बहुविवाह पूर्ण रूप से निषेध नहीं है। झारखंड का जनजाति समाज अमूमन अपनी-अपनी जाति में ही विवाह करता है। समान गोत्र में विवाह करना पूरी तरह वर्जित है। जनजातियों में आम तौर पर बाल विवाह का प्रचलन नहीं है। प्राय: परिवार एक विवाही होते हैं, लेकिन कोल्हान क्षेत्र में एक पति और दो या दो से अधिक पत्नियों के कई किस्से मशहूर हैं।
बाला यानी मंगनी में तय होती है राशि शादी के पूर्व लड़का पक्ष बाला यानी मंगनी के लिए लड़की पक्ष के घर जाते हैं। लड़की पक्ष को मिलने वाली राशि बाला यानी मंगनी के दौरान तय होता है। लड़के वाले जब लड़की का हाथ मांगने जाते हैं तब परिवार व रिश्तेदारों की उपस्थिति में यह राशि तय होती है। अब लोग बैल के बदले नकद राशि देने लगे हैं। लड़की वाले जब मंगनी करने लड़के वालों के घर आते हैं, तब तय की गई राशि का भुगतान किया जाता है। गोनोंग में मिली राशि को लड़की वाले मंगनी के दौरान उपस्थित अपने सगे-संबंधियों के बीच बांटते हैं, ताकि शादी के दौरान सभी उनका सहयोग करें।
दोनों घरों के बीच समान दूरी पर होती है ग्रह शांति पूजा आंदी यानी शादी के पूर्व वर और वधु पक्ष के घरों के बीच समान दूरी पर ग्रह शांति के लिए पूजा कराई जाती है। समाज के पुजारी यानी देवां दोनों परिवार और वर-वधु की सलामती हेतु आवश्यकता अनुसार बकरा या मुर्गा की बलि देते हैं। मंगनी में जाने के दौरान रास्ते में घटने वाली घटनाओं के आधार पर ग्रह दोष निकाला जाता है। दोनों परिवार घटानाओं का जिक्र करते हैं, जिसके आधार पर देवां ग्रह दोष निकालकर पूजा संपन्न कराता है।
शादी के एक दिन पूर्व वर पक्ष से जाते हैं 10-15 लोग शादी के एक दिन पहले वर पक्ष से 10 से 15 लोग लड़की वालों के घर जाते हैं। वे अपने साथ दुल्हन को सजाने के लिए आभूषण, कपड़े आदि लेकर पहुंचते हैं। दूसरे दिन दुल्हन के साथ बराती के साथ वापस लौटते हैं। बरात के पहले ही दुल्हन वाले जाने वाले लोगों की संख्या बताते हुए उसके हिसाब से खस्सी, चावल और हंडिया की मांग करते हैं। दुल्हन के बरात लेकर आते ही दूल्हे वाले खस्सी के साथ चावल और हंडिया उन्हें देते हैं। इसके बाद शादी की रस्म शुरू होती है।
मंडप बनाने में इस्तेमाल करते हैं साल व जामुन की डाली शादी के लिए दूल्हे की भाभी नए वस्त्र पहनकर जाहेर थान से मिट्टी लाती है। मंडप बनाने के लिए साल और जामुन पेड़ की डाली अनिवार्य रूप से इस्तेमाल होता है। इसी मंडप पर देवां दूल्हा-दुल्हन की शादी कराता है। शादी के लिए दूल्हे और दुल्हन को नई चटाई पर बैठाया जाता है। यह चटाई भी विशेष रूप से बनवाई जाती है, जिसपर सात पट्टी बने होते हैं। शादी की रस्म पूरी होने के बाद दुल्हन और दूल्हे को आदिम आदि यानी पूजा घर में ले जाया जाता है। जहां अपने देवता और देवी से नए वधु का परिचय कराया जाता है। इसके बाद दोनों को सात बार घर में अंदर-बाहर किया जाता है।
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