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महर्षि वाल्‍मीकि से प्र‍ेरित विजय की कहानी, नक्सलियों से पंगे लेने वाला अब कर रहा हनुमानजी की सेवा

सनलाइट सेना के कमांडर विजय सिंह की कहानी बेहद दिलचस्‍प है। कभी इनके सिर पर 50 से ज्यादा मुकदमे थे और जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए झारखंड पुलिस ने 25 हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा था लेकिन अब यह प्रभु की शरण में जिंदगी बिता रहे हैं।

By Mritunjay PathakEdited By: Arijita SenUpdated: Tue, 07 Feb 2023 05:03 PM (IST)
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हनुमान मंदिर के सामने खड़े विजय उर्फ बलभद्राचार्य
मृत्युंजय पाठक, पलामू। रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि की कहानी तो हम सब जानते हैं। वह रत्नाकर डाकू से साधु बने थे। कुछ इसी तरह की कहानी पलामू के पांडू ब्लाक के कजरू खुर्द के 61 वर्षीय विजय सिंह की है। कभी इनके सिर पर 50 से ज्यादा मुकदमे थे और जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए झारखंड पुलिस ने 25 हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा था। अब विजय से बलभद्राचार्य बन महावीर मंदिर रामानुज मठ सिलदिली में हुनामन जी की सेवा में लगे हैं। जाति-पाति और राग-द्वेष से ऊपर उठकर सनातन समाज में एकजुटता के लिए लोगों को संदेश देते हैं।

मलवलिया नरसंहार में हुए थे आरोपित

विजय सिंह की कहानी तीन दशक पहले 1990 में शुरू होती है। रोजगार के लिए ठेकेदारी शुरू की तो नक्सलियों ने लेवी मांगी। इसके बाद अंदर का विद्रोह जाग उठा। तब बिहार में उग्रवादी और जातीय हिंसा चरम पर थी। नक्सलियों से लोहा लेने के लिए वह सनलाइट सेना में शामिल हो गए और देखते ही देखते कमांडर बन गए। पलामू के ऊंटारी रोड प्रखंड में बहुचर्चित मलवलिया नरसंहार हुआ। डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए। इसमें विजय सिंह भी आरोपित हुए। एक दशक से ज्यादा समय तक इलाके में सनलाइट सेना के अगुआ बने रहे। अंतत: 2003 में पलामू कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। 5 साल तक जेल में रहने के बाद 2007 में सभी मामलों से बरी होकर बाहर निकले। इसके बाद से कभी हथियार उठाने की इच्छा नहीं हुई।

गया पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वेंकटेश प्रपन्नाचार्य से ली दीक्षा

विजय सिंह ने दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए कहा कि जेल से निकलने के बाद शादी कर घर बसाने की इच्छा थी। लेकिन जो छवि बन गई थी वह बाधक बन गई। इसके बाद समय-समय पर विश्रामपुर के विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी और हुसैनाबाद के विधायक कमलेश सिंह के भाई बिन्नू सिंह के साथ रहकर समय जाया किया। अंत में सबको छोड़कर गांव में रहने लगा। गांव में महावीर मंदिर मठ है। इसके लिए अंग्रेजी हुकूमत के समय जमींदार तारक नाथ सरकार ने 14 एकड़ की जमीन दी थी।

जमीन विवाद के कारण पुजारी को परेशान किया जाता था। कोई पूजा-पाठ करने को तैयार नहीं था। इसे लेकर कजरू खुर्द, सिलदिली और सिवनडीह के ग्रामीणों की बैठक हुई। ग्रामीणों ने मंदिर को किसी ट्रस्ट के हवाले कर देने का निर्णय लिया गया। लोग बिहार में गया पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वेंकटेश प्रपन्नाचार्य के पास गए। काफी अनुरोध के बाद उन्होंने महावीर मंदिर को अपने अधीन लेने की सहमति प्रदान की। वह गया से सिलदिली पहुंचे। कोई महंत बनने को तैयार नहीं था। प्रपन्नाचार्य ने मुझे माला पहना दिया और मंदिर में हनुमान जी की सेवा करने का निर्देश दिया। मैंने उनसे दीक्षा ली। उन्होंने ही मुझे बलभद्राचार्य का नाम दिया।

सब घटनाओं की जड़ में राजनीति

बलभद्राचार्य गुजरे जमाने को याद करते हुए काफी भावुक हो जाते हैं। वह बताते हैं कि 1999 में नक्सलियों ने बल लगाकर उनके घर को पूरी तरह उड़ा दिया था। आज उसी स्थान पर उन्‍होंने फिर से घर खड़ा किया है। वह तब की घटी और आज घट रही घटनाओं के लिए राजनीति को जिम्मेवार ठहराते हैं। साजिश के तहत एक जाति को दूसरी जाति से लड़ाया गया। आज भी लड़ाया जा रहा है। इससे किसी का फायदा नहीं है। यह हम सबको समझने की जरूरत है। वह कहते हैं कि अब जीवन का शेष हनुमान जी की शरण में है।

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