Guru Purnima 2019: यहां व्यक्ति नहीं, भगवा ध्वज को मानते हैं गुरु Ranchi News
Jharkhand. राष्ट्रीय स्वयंंसेवक संघ झारखंड के प्रांत प्रचारक रविशंकर ने कहा कि भगवा ध्वज त्याग समर्पण का प्रतीक है। गुरु को समर्पण दान व उपकार नहीं यह हमारा परम कर्तव्य है।
By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Tue, 16 Jul 2019 06:14 PM (IST)
रांची, [संजय कुमार]। Guru Purnima 2019 - राष्ट्रीय स्वयंंसेवक संघ RSS प्रति वर्ष गुरु पूर्णिमा उत्सव अपनी सभी शाखाओं पर मनाता है। संघ के छह उत्सवों में से एक गुरु पूर्णिमा भी है। मंगलवार को झारखंड सहित देश की सभी शाखाओं पर स्वयंसेवक इस उत्सव को मनाएंगे। संघ के स्वयंसेवक किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि भगवा ध्वज को अपना गुरु मानते हैं। उस दिन भगवा ध्वज की पूजा करने के साथ-साथ गुरु के प्रति जो भी बनता है, समर्पण भी करते हैं।
इस संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ झारखंड के प्रांत प्रचारक रविशंकर ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा कि अपने राष्ट्र और समाज जीवन में गुरु पूर्णिमा अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास आदिगुरु हैं। उन्होंने मानव जीवन को गुणों पर निर्धारित करते हुए उन महान आदर्शों को व्यवस्थित रूप में समाज के सामने रखा। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने भी स्वयंसेवकों के लिए गुरु पूजा प्रारंभ की। यह गुरु कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि भगवा ध्वज है। संघ तत्व पूजा करता है, व्यक्ति पूजा नहीं।
हजारों सालों से चली आ रही है श्रेष्ठ गुरु की परंपरा
रविशंकर ने कहा, अपने समाज में हजारों सालों से श्रेष्ठ गुरु की परंपरा चलती आई है। व्यक्तिगत रीति से करोड़ों लोग अपने-अपने गुरु को चुनते हैं। श्रद्धा से भक्ति से वंदना करते हैं। अनेक अच्छे संस्कारों को पाते हैं। इसी कारण अनेक आक्रमणों के बाद भी अपना समाज, देश, राष्ट्र आज भी जीवित है।
त्याग एवं समर्पण का प्रतीक है भगवाध्वज
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने गुरु के स्थान पर भगवाध्वज को स्थापित किया है। भगवाध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं, इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है।
समर्पण में ही जीवन की सार्थकता हैरविशंकर ने कहा कि गुरु को समर्पण दान व उपकार नहीं, यह हमारा परम कर्तव्य है। समर्पण में ही अपने जीवन की सार्थकता है। परिवार के लिए काम करना गलत नहीं है, परंतु केवल परिवार के लिए ही काम करना गलत है। समर्पण भाव से ही सारे समाज में एकात्म भाव भी बढ़ जाएगा। इस भावना से ही लाखों स्वयंसेवक अपने समाज के विकास के लिए, हजारों सेवा प्रकल्प चलाते हैं। समाज में भी अनेक धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थानों के कार्यकर्ता समाज सेवा करते हैं। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने स्वयं अपने जीवन को अपने समाज की सेवा में अर्पित किया था, ध्येय के अनुरूप अपने जीवन को ढाला था।
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