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Hul Diwas 2023: अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ आदिवासियों ने लगा दी थी जान की बाजी, वीर बलिदानियों की शहादत को नमन

आज हूल क्रांति दिवस के अवसर पर उन वीर आदिवासियों की शहादत को नमन किया जा रहा है जिन्‍होंने महज तीर-धनुष से अंग्रेजों के गोले-बारूदों का सामना किया था। यह 1857 की क्रांति से भी पहले किया गया विद्रोह था जिसने अंग्रेजी शासन की नींव हिलाकर रख दी थी। इस विद्रोह का मूल कारण आदिवासियों से 50 से 500 प्रतिशत तक खेती-कर वसूलना था।

By Arijita SenEdited By: Arijita SenUpdated: Fri, 30 Jun 2023 11:37 AM (IST)
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आज आदिवासियों की शहादत को याद कर मनाया जा रहा हूल दिवस।
जासं, रांची। देश भर में 30 जून को हूल क्रांति दिवस (Hul Kranti Diwas 2022) मनाया जाता है। इस दिन उन महान क्रांतिकारियों को नमन किया जाता है, जिन्‍होंने अंग्रेजों के छक्‍के छुड़ा दिए थे। 30 जून 1855 को आदिवासी भाइयों सिद्धो-कान्‍हो और चांद-भैरव के नेतृत्‍व में मौजूदा साहिबगंज के भोगनाडीह में लगभग 50 हजार आदिवासियों ने अंग्रेजी शासन के अधीन महाजनी प्रथा व बंदोबस्‍ती नीति के खिलाफ जंग का ऐलान किया था। 

1857 की क्रांति से भी पुराना है किस्‍सा

आमतौर पर 1857 की क्रांति को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला विद्रोह माना जाता है, लेकिन इससे पहले भी 1855 को संथाल विद्रोह ने अंग्रेजी शासन की नींव हिलाकर रख दी थी। इस विद्रोह का मूल कारण आदिवासियों से 50 से 500 प्रतिशत तक खेती-कर वसूलना था।

आदिवासियों ने अंग्रेजों के छुड़ाए छक्‍के

अंग्रेजों के इस शोषण के खिलाफ आदिवासियों ने एकजुट होकर आवाज उठाई और तय कर लिया खुद को स्‍वतंत्र घोषित करेंगे और भू-राजस्‍व नहीं देंगे। इसकी प्रतिक्रिया में अंग्रेजी सरकार की तरफ से आए स्थानीय जमींदार, पूंजीपतियों, सूदखोरों को मौत के घाट उतार दिया गया। उन्‍होंने अपना नारा "जुमीदार, महाजन, पुलिस राजदेन आमला को गुजुकमाड़" यानी कि जमींदार, महाजन, पुलिस और सरकारी अमलों का नाश हो, बुलंद किया। 

इन विद्रोहियों को सबक सिखाने के लिए अंग्रेजों ने नृशंसता की सारी हदें पार कर दीं। एक तरफ चांद और भैरव को अंग्रेजों ने मृत्‍यु दंड दिया। इसके बाद सिद्धो और कान्हो को भोगनाडीह में ही पेड़ से लटकाकर 26 जुलाई, 1855 को फांसी दे दी गई। कहा जाता है कि 20 हजार आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

दिग्‍गजों ने शहादत को किया नमन

आज हूल दिवस के मौके पर देश के प्रमुख नेताओं व दिग्‍गजों ने संथाल आदिवासियों की शहादत को नमन किया है। देश की महामहिम राष्‍ट्र‍पति द्रौपदी मुर्मू ने अमर बलिदानियों सिदो-कान्हू, चांद-भैरव तथा फूलो-झानो को नमन किया है।

हूल क्रांति के महानायक अमर वीर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो समेत अमर वीर शहीदों को शत-शत नमन।

हूल जोहार!

झारखण्ड के वीर शहीद अमर रहें!

जय झारखण्ड! - मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन

झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री एवं केंद्र में मंत्री रहे बाबूलाल मरांडी ने भी इस मौके पर आदिवासियों के बलिदान का स्‍मरण करते हुए उन्‍हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।

झारखंड के राज्‍यपाल सी. पी. राधाकृष्णन लिखते हैं, ''ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक 'हूल दिवस' पर सिदो-कान्हू, चांद-भरैव, फूलो-झानो समेत सभी वीर शहीदों को कोटि-कोटि नमन! इनकी गौरव गाथाएं भावी पीढ़ियों को सदैव मातृभूमि की सेवा के लिए प्रेरित करती रहेंगी।''

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