Sarna Dharam Code: क्या है सरना धर्म, झारखंड में क्यों हो रहा सरना धर्म कोड पर विवाद, जानें पूरी बात
What is Sarna Dharma Code 2021 के जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग से धर्म कोड की मांग ने तूल पकड़ा है। यह एक अलग धर्म के रूप में पहचान कायम करने की कवायद का भी हिस्सा है।
By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Sat, 26 Sep 2020 06:26 PM (IST)
रांची, [प्रदीप सिंह]। अगर आप पहली बार झारखंड आएं तो यहां के शहरों और कस्बों के चौक-चौराहों पर उजला और लाल रंग वाला झंडा बहुतायत में देखकर जिज्ञासा होगी। यह झंडा झारखंड में लगभग 27 फीसद आबादी वाले आदिवासी अथवा जनजातीय समुदाय का पवित्र प्रतीक चिन्ह है। इसे सरना झंडा कहा जाता है। सरना आदिवासियों के पूजा स्थल को भी कहा जाता है, जहां वे अपनी मान्यताओं के अनुसार विभिन्न त्योहारों के मौके पर एकत्रित होकर पूजा-अर्चना करते हैं।
इसमें मूर्ति पूजा की बजाय प्रकृति पूजा का विधान है। अबतक आदिवासियों के बारे में यह मान्यता रही है कि आदिवासी कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। आदिवासी समुदाय की ज्यादातर आबादी हिंदू धर्म की मान्यताओं व संस्कारों के करीब है। इनके पूजा-पाठ के विधि-विधान औऱ रहन-सहन आदि की परंपराएं भी सनातन हिंदू धर्म के अनुरूप हैं। ये भी आदि काल से हिंदुओं के आराध्य देवी-देवताओं की पूजा करते रहे हैं। पेड़-पौधे और पहाड़ों की ये भी ये पूजा करते हैं।
इन सबके बावजूद आदिवासियों के लिए अलग से जनगणना में धर्म कोड की मांग हाल के वर्षों में जोर-शोर से उठी है। बड़े वोट बैंक को देखते हुए झारखंड में सक्रिय सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे को हवा देते हैं। तमाम प्रमुख दलों ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सरना धर्मकोड की वकालत की है। हाल ही में संपन्न हुए झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में इस बाबत अनुशंसा केंद्र सरकार को भेजने का प्रस्ताव अंतिम समय में टल गया।
हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से स्पष्ट किया है कि जल्द ही राज्य सरकार एक प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजेगी। प्रस्ताव में आग्रह किया जाएगा कि 2021 में होने वाली जनगणना के दौरान आदिवासियों के लिए अलग से धर्म कोड का कॉलम दिया जाए।
पहले केंद्र सरकार ठुकरा चुकी है प्रस्तावझारखंड के आदिवासियों को जनगणना में अलग से धर्म कोड का प्रस्ताव केंद्र सरकार ठुकरा चुकी है। पूर्व में इस संबंध में विभिन्न आदिवासी संगठनों के आग्रह पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कहा था कि यह संभव नहीं है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने कहा है कि पृथक धर्म कोड, कॉलम या श्रेणी बनाना व्यावहारिक नहीं होगा। अगर जनगणना में धर्म के कॉलम के अतिरिक्त नया कॉलम या धर्म कोड आवंटित किया गया तो बड़ी संख्या में पूरे देश में ऐसी और मांगे उठेंगी। फिलहाल जनगणना में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन इन छह धर्मो को 1 से 6 तक के कोड नमंबर दिए जाते हैं।
ईसाई मिशनरियों की है दिलचस्पीझारखंड में ईसाई मिशनरियां भी राजनीति में खूब दिलचस्पी लेती हैं और दखलंदाजी करने का कोई मौका नहीं चूकतीं। ज्यादातर नेता इनके शरणागत होते हैं। सरना धर्म कोड को मान्यता दिलाने के सवाल पर भी इनकी सक्रियता देखते बनती है। हालांकि बड़े पैमाने पर जनजातीय समुदाय का ईसाई धर्म में धर्मांतरण कराने वाली मिशनरियों के कर्ताधर्ता इस बात से इतफाक नहीं रखते कि सरना को मान्यता मिलने के बाद वे धर्मांतरित आदिवासियों को सरना धर्म में वापसी को मान्यता देंगे।
चर्च ऑफ इंडिया छोटानागपुर धर्मप्रांत के बिशप नोएल हेम्ब्रम कहते हैं-सरना धर्म कोड लागू होने के बाद भी अगर कोई आदिवासी समाज के लोग ईसाई धर्म को स्वीकार करते हैं तो उसे ईसाई ही माना जाएगा। इसमें कहीं कोई विवाद अथवा विभेद नहीं है। मांडर के विधायक बंधु तिर्की सरना धर्म कोड के मुद्दे को चर्च और ईसाई मिशनरी से जोड़ने को मूल मुद्दे से भटकाने की साजिश करार देते हैं। उनका तर्क है कि आदिवासियों की अलग पहचान है और यह किसी भी मत को मानने से प्रभावित नहीं होता। चर्च का हवाला देकर और ईसाई मिशनरियों पर दोष मढकर इस मुद्दे को डाइवर्ट नहीं किया जा सकता।
आदिवासियों को बरगलाया जा रहा : कड़िया मुंडा लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष और खूंटी लोकसभा क्षेत्र से आठ बार सांसद रहे कड़िया मुंडा सरना धर्म कोड को लेकर झारखंड में चल रही राजनीति को अनुचित मानते हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में किसी भी देश में किसी पूजा स्थल के नाम पर धर्म या फिर धर्म कोड नहीं है। कुछ लोग भोले-भाले आदिवासियों को बरगलाने के लिए सरना धर्म कोड की वकालत कर रहे हैं।
हिंदू मंदिर में पूजा करते हैं तो क्या मंदिर धर्म है? ईसाई गिरिजाघर में पूजा करते हैं, तो क्या गिरिजाघर धर्म है? इसी तरह मस्जिद, गुरुद्वारा या फिर अन्य उपासना स्थल के नाम पर धर्म नहीं है। ये तो सीधे हमारी आस्था से जुड़े हैं। किसी की आस्था के साथ राजनीति नहीं की जानी चाहिए। इसी तरह सरना झारखंड के आदिवासियों का पूजा स्थल है।अन्य राज्यों में इसके अलग-अलग नाम एवं स्वरूप हैं तो क्या अन्य राज्यों के आदिवासियों के लिए अलग-अलग धर्म कोड बनाया जाएगा? धर्म कोड कोई सामान्य चीज नहीं होती। संविधान के प्रावधानों के तहत ही इसका निर्माण किया जा सकता है। हर राज्य एवं घर के लिए अलग-अलग धर्म कोड नहीं हो सकता। यह पूरे देश के लिए होता है। झारखंड में लगभग एक करोड़ आदिवासी हैं।
इसमें लगभग 20 लाख ईसाई बन गए हैं, जबकि देश में करीब 10-12 करोड़ आदिवासी हैं। सरना धर्म कोड से आदिवासियों को कौन सी सुविधाएं बढ़ जाएंगी? जहां तक आदिवासी संस्कृति की बात है? तो इस पर पहले खुद ईमानदार एवं वफादार बनना होगा। बाहर में सरना की बात करें और प्रार्थना करने गिरिजाघर पहुंचे। दोनों कैसे हो संभव नहीं है। 2011 की जनणना में 40,75,246 लोगों ने खुद को बताया था सरना धर्मावलंबी
भारत की 2011 की जनगणना में पूरे देश में 40,75,246 लोगों ने अपना धर्म सरना दर्ज कराया था। इसमें सर्वाधिक झारखंड में 34,50,523, ओडिशा में 3,53,520, पश्चिम बंगाल में 2,24,704, बिहार में 43,342, छत्तीसगढ़ में 2450 और मध्य प्रदेश में 50 लोगों ने खुद का धर्म सरना बताया था। 32 जनजातीय समुदाय हैं झारखंड में देश में आदिवासियों की आबादी झारखंड से राजस्थान और अंडमान से अरुणाचल तक है। झारखंड और इसके पड़ोसी राज्यों में मौजूद जनजातीय समुदाय के लोग खुद को सरना धर्म से जुड़ा बताते हैं, लेकिन बहुतायत राज्यों के आदिवासी अलग-अलग मान्यताओं से जुड़े हैं। प्रख्यात शिक्षाविद और विचारक स्वर्गीय रामदयाल मुंडा आदि धर्म की वकालत करते थे।
झारखंड में 32 आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं, जिसमें संताल, मुंडा, खड़िया, गोंड, कनबार, उऱांव, खड़िया, कोल, सावर, असुर, बैगा, बंजारा, बथूड़ी, बेदिया, बिंझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक बड़ाईक, गोराइत, हो, करमाली, खरवार, खोंड, किसान, कोरा, कोरबा, लोहरा, महली, माल पहाड़िया, पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया और भूमिज शामिल हैं।
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