Draupadi Murmu: द्रौपदी मूर्मू के बारे में जानें सबकुछ... राष्ट्रपति उम्मीदवार बनीं, सबसे लंबी अवधि तक रहीं झारखंड की राज्यपाल
Draupadi Murmu द्रौपदी मुर्मू का नाम आदिवासियों के हित की चिंता करने वाली बेहद सजग महिलाओं में शुमार है। वे झारखंड में सर्वाधिक समय तक राज्यपाल रहीं। उन्होंने झारखंड में सीएनटी-एसपीटी संशोधन सहित कई विधेयकों को लौटाया। चांसलर पोर्टल पर सभी कॉलेजों के लिए एक साथ ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया।
By Alok ShahiEdited By: Updated: Wed, 22 Jun 2022 09:11 AM (IST)
रांची, जेएनएन। Draupadi Murmu द्रौपदी मुर्मू आज एक बार फिर से चर्चा में हैं। आदिवासी हितों की पुरोधा कही जाने वाली कद्दावर महिला शख्सियतों में शुमार द्रौपदी मूर्मू को झारखंड में सबसे लंबी अवधि तक राज्यपाल रहने का गौरव हासिल है। झारखंड में द्रौपदी मुर्मू का छह साल से अधिक का कार्यकाल विवादों से परे रहा। द्रौपदी मुर्मू झारखंड की एकमात्र राज्यपाल रहीं, जिन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। हालांकि वे पांच वर्ष का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी राज्यपाल पद पर बनी रहीं। उनका कार्यकाल 17 मई 2021 को समाप्त हो गया। द्रौपदी मुर्मू आदिवासियों, बालिकाओं के हितों को लेकर सजग रहीं। आदिवासियों से जुड़े मुद्दों पर वे कई बार सरकार को सीधे निर्देश देते हुए नजर आईं।
झारखंड में छह साल से अधिक अवधि तक रहीं राज्यपालझारखंड की पहली महिला राज्यपाल बननेवाली द्रौपदी मुर्मू का झारखंड में छह साल एक माह अठारह दिनों का कार्यकाल रहा। वे इस दाैरान विवादों से बेहद दूर रहीं। बतौर कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने कार्यकाल में झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर पोर्टल शुरू कराया। इसके जरिये सभी विश्वविद्यालयों के कॉलेजों के लिए एक साथ छात्रों का ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया। विश्वविद्यालयों में यह नया और पहला प्रयास था, जिसका लाभ सीधे विद्यार्थियों को मिला। उन्होंने राज्य सरकार के कई विधेयकों को लौटाने का साहसिक निर्णय भी लिया। भाजपा की रघुवर दास सरकार में द्रौपदी मूर्मू ने सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक सहित कई विधेयकों को सरकार को वापस लौटाने का कड़ा कदम उठाया। हेमंत सोरेन की सरकार में भी द्रौपदी मूर्मू ने कई आपत्तियों के साथ जनजातीय परामर्शदातृ समिति के गठन से संबंधित फाइल लौटाई।
जानिए कौन हैं द्रौपदी मुर्मू...
द्रौपदी मुर्मू ओडिशा प्रदेश से आती हैं। उनका जन्म 20 जून 1958 को हुआ। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू और पति का नाम श्याम चरम मुर्मू है। द्रौपदी मुर्मू ओडिशा की संथाल परिवार से आती हैं। मयूरभंज जिले के कुसुमी ब्लॉक के उपरबेड़ा गांव में उनका लालन-पालन एक आदिवासी परिवार में हुआ। द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के राजरंगपुर जिले में पहली बार पार्षद चुनी गईं। इसके बाद बीजेपी की ओडिशा ईकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष बनीं।
राजनीति में आने से पहले शिक्षक रहीं द्रौपदी मुर्मूद्रौपदी मुर्मू राजनीति में आने से पहले शिक्षक रहीं। उन्होंने श्री अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक के तौर पर सेवा दी। वे कुछ दिनों तक सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में भी काम कर चुकी हैं। द्रौपदी मुर्मू ने साल 2002 से 2009 तक ओडिशा के मयूरभंज के भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया है।
दो बार भाजपा से विधायक, नवीन पटनायक सरकार में रहीं मंत्रीद्रौपदी मुर्मू ओडिशा में भाजपा के टिकट पर दो बार विधायक चुनी गईं। वे बीजू जनता दल और बीजेपी के गठबंधन में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुकी हैं। द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा विधान सभा ने सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया है। द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली महिला राज्यपाल रहीं। द्रौपदी मुर्मू ने जीवन में पति और दो बेटों को खोने के बाद हर बाधा का डटकर मुकाबला किया। द्रौपदी मुर्मू को आदिवासी उत्थान के लिए 20 वर्षों से अधिक समय तक काम करने का अनुभव है। वे भाजपा के लिए वर्तमान समय में सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा कही जाती हैं।
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