Jharkhand Politics: कौन जीतेगा जंग? पहली बार आमने-सामने होगा सोरेन परिवार, BJP की स्ट्रेटजी से बदली सियासत
पांच दशक से भी अधिक समय से बिहार-झारखंड की राजनीति में धमक रखने वाले कद्दावर नेता शिबू सोरेन के परिवार की लड़ाई अब रुठने-मनाने के दायरे से बाहर निकलकर चुनावी मैदान तक पहुंच गई है। झारखंड में झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने से पहली बार स्थिति बनी है कि इस परिवार के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में आमने-सामने होंगे।
प्रदीप सिंह, रांची। पांच दशक से भी अधिक समय से बिहार-झारखंड की राजनीति में धमक रखने वाले कद्दावर नेता शिबू सोरेन के परिवार की लड़ाई अब रुठने-मनाने के दायरे से बाहर निकलकर चुनावी मैदान तक पहुंच गई है। झारखंड में सत्तारूढ़ क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अध्यक्ष शिबू सोरेन की बड़ी बहू विधायक सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने से पहली बार स्थिति बनी है कि इस परिवार के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में आमने-सामने होंगे।
भाजपा के लिए आदिवासी वोट हासिल करने में सीता सोरेन कारगर साबित हो सकती हैं। इसी लिहाज से उनका उपयोग करने की भी तैयारी है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि सीता सोरेन अपनी वजह से भाजपा को आदिवासी वोटों का कितना लाभ पहुंचा पाती हैं, क्योंकि झामुमो और कांग्रेस का ज्यादा जोर राज्य में लोकसभा चुनाव के दौरान पांच आदिवासी सुरक्षित सीटों पर कब्जे की है।
पिछले चुनाव में JMM-कांग्रेस ने दो सीटें जीती थी
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद गठबंधन ने दो सीटों राजमहल और सिंहभूम पर जीत दर्ज की थी। इसके अलावा खूंटी और लोहरदगा में कम अंतर से हार हुई थी। उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में आदिवासी सुरक्षित सीटों पर भाजपा बुरी तरह पिछड़ गई थी। 28 आदिवासी सुरक्षित सीटों में भाजपा के पाले में महज दो सीटें ही आ सकी।यही वजह है कि सीता सोरेन को अपने पाले में करने के बाद भाजपा उनका व्यापक पैमाने पर उपयोग करना चाहेगी। उनके निशाने पर शिबू सोरेन का पूरा कुनबा होगा। झामुमो छोड़ते वक्त उन्होंने अपनी उपेक्षा, साजिश से लेकर पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन को लेकर भावनात्मक बातें उठाई तो इसकी वजह यही थी कि वह झामुमो को चौतरफा झटका देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगी। इससे मुकाबले के लिए कल्पना सोरेन सामने होंगी।
सीता सोरेन पर सीधे प्रहार करने से बचेगा झामुमो
झामुमो सीता सोरेन पर सीधे प्रहार करने से बचेगा। यही वजह है कि भाजपा में शामिल होने के बाद झामुमो ने उनपर आक्रमण करने की बजाय सधे शब्दों में अपनी बातें रखीं। यह भी संदेश दिया गया कि उन्हें पति के निधन के बाद पूरा सम्मान दिया गया। स्वयं शिबू सोरेन ने उन्हें मनाने की कोशिश की। सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने से झामुमो के चुनावी प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन की यह चुनौती होगी कि वे अपने कुनबे को सहेज कर आगे बढ़ें।बिना नाम लिए कल्पना सोरेन ने साधा निशाना
बगैर नाम लिए जवाब दिया कल्पना सोरेन ने सीता सोरेन के आरोपों पर हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का पलटवार करते हुए कहा कि हेमंत सोरेन राजनीति में नहीं आना चाहते थे।स्वर्गीय दुर्गा सोरेन उनके लिए सिर्फ बड़े भाई नहीं बल्कि पितातुल्य अभिभावक के रूप में रहे। 2006 में ब्याह के उपरांत इस बलिदानी परिवार का हिस्सा बनने के बाद मैंने हेमंत सोरेन का अपने बड़े भाई के प्रति आदर तथा समर्पण और दुर्गा सोरेन का हेमंत सोरेन के प्रति प्यार देखा।
हेमंत सोरेन राजनीति में नहीं आना चाहते थे परंतु दुर्गा सोरेन की असामयिक मृत्यु और बाबा (शिबू सोरेन) के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें राजनीति के क्षेत्र में आना पड़ा। हेमंत सोरेन ने राजनीति को नहीं बल्कि राजनीति ने हेमंत सोरेन को चुन लिया। उन्होंने आर्किटेक्ट बनने की ठानी थी। उनके ऊपर झामुमो की विरासत तथा संघर्ष को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी थी।झारखंड मुक्ति मोर्चा का जन्म समाजवाद और वामपंथी विचारधारा के समन्वय से हुआ था। हेमंत सोरेन जेल चले गए। वे झुके नहीं। उन्होंने एक झारखंडी की तरह लड़ने का रास्ता चुना। वैसे भी हमारे आदिवासी समाज ने कभी पीठ दिखाकर और समझौता कर आगे बढ़ना सीखा ही नहीं है। झारखंडी के डीएनए में ही नहीं है झुक जाना।
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