Champai Soren: आखिर भाजपा को क्यों है चंपई सोरेन की जरूरत, अगर साथ आए तो क्या होगा नफा-नुकसान?
चंपई सोरेन की राजनीतिक और वैचारिक पृष्ठभूमि के लिहाज से भाजपा में उनके शामिल होने को नफा-नुकसान के तराजू पर तौला जाना भी स्वाभाविक है। ऐसे में सबसे पहले झारखंड में भाजपा की कमजोर कड़ी को ध्यान में रखना होगा जो पहली बार 2019 में हुए विधानसभा चुनाव और हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उभरकर सामने आया।
प्रदीप सिंह, रांची। सर्च इंजन गूगल पर बीते 19 अगस्त को लगातार 24 घंटे तक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन छाए ही नहीं रहें, बल्कि टॉप ट्रेंड में बने रहे। उसी दिन वे कोलकाता से नई दिल्ली पहुंचे थे। जब उन्होंने दल में ही बने रहने की बात की तो सामान्य तरीके से सबकुछ चल रहा था, लेकिन जैसे ही उनका रुख स्पष्ट हुआ, ट्रेंड ग्राफ में उछाल आ गया।
तब तक यह स्पष्ट हो गया था कि राज्य में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के इस प्रमुख नेता ने अलग राह चुनने का निर्णय किया है। वे भाजपा में शामिल होंगे। यह इस दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है कि इसी वर्ष राज्य में विधानसभा का चुनाव है और पूरे देश की नजर यहां चल रही राजनीतिक गतिविधियों पर है।
बीजेपी को क्या होगा नफा-नुकसान?
चंपई सोरेन की राजनीतिक और वैचारिक पृष्ठभूमि के लिहाज से भाजपा में उनके शामिल होने को नफा-नुकसान के तराजू पर तौला जाना भी स्वाभाविक है। ऐसे में सबसे पहले झारखंड में भाजपा की कमजोर कड़ी को ध्यान में रखना होगा, जो पहली बार 2019 में हुए विधानसभा चुनाव और हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उभरकर सामने आया।भाजपा के हाथ से खिसका आदिवासी समुदाय!
पांच वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा 28 में से सिर्फ दो आदिवासी सुरक्षित विधानसभा सीटों पर कामयाब हो पाई थी। हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा राज्य की सभी पांच आदिवासी सुरक्षित सीटों पर हार गई। इससे यह स्पष्ट है कि चुनाव में जीत-हार में सर्वाधिक भूमिका अदा करने वाला आदिवासी समुदाय भाजपा के हाथ से फिसल चुका है।
इसकी भरपाई की शुरुआत वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद ही भाजपा ने आरंभ भी कर दी थी। इसी वजह से भाजपा से 14 साल बाहर रहने वाले बाबूलाल मरांडी की उनकी शर्तों पर शानदार वापसी हुई, लेकिन वैसा प्रभाव नहीं दिखा।
यहां काम आएंगे चंपई सोरेन
भाजपा नेताओं का आकलन है कि चंपई सोरेन आदिवासियों को आकर्षित करने में सहायक साबित हो सकते हैं। वे झामुमो की खूबी और खामी को बखूबी जानते और समझते भी हैं। 14 विधानसभा सीटों वाले कोल्हान प्रमंडल इलाके में उनकी गहरी पैठ भी है। पृथक राज्य के आंदोलन में उनका सक्रिय योगदान रहा है। उनकी अपील कारगर हो सकती है।
एक वरीय भाजपा नेता के मुताबिक, झामुमो में उनसे सहानुभूति रखने वाले काफी संख्या में हैं। चंपई आदिवासी सुरक्षित सीटों पर भाजपा का आंकड़ा बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं। इसका एक और फायदा इस मायने में होगा कि भाजपा के पक्ष में चुनाव में माहौल बन सकता है।चंपई के माध्यम से भाजपा यह संदेश देने का भरसक प्रयास करेगी कि आदिवासी समुदाय से आने वाले एक वरीय नेता के साथ ज्यादती हुई। फिलहाल इस नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी कि चंपई आदिवासियों का रुख मोड़ने में सफल ही होंगे। इसकी एक बड़ी वजह झामुमो का चुनाव चिह्न तीर-कमान भी है, जिसकी पैठ आदिवासी समुदाय में भीतर तक है और वे इससे भावनात्मक तौर पर भी जुड़े हुए हैं।
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